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Rashmi Trivedi

Romance

4  

Rashmi Trivedi

Romance

कश्मकश

कश्मकश

4 mins
548

शेखर और रेणु समुंदर के किनारे बैठे थे। समुंदर की लहरों की आवाज़ रेणु को बहुत पसंद थी। वो दोनों अक्सर यही आकर बैठ जाया करते थे।

रेणु ने शेखर का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, "मैं तुम्हारी परिस्थिति समझ सकती हूँ शेखर!! कल तुम बच्चों से मिलने जा रहे हो ना ? अपने दिल पर कोई बोझ लेकर मत जाना। जो भी हो फैसला तुम्हें ही करना है। मेरी ओर से तुम हमेशा आज़ाद हो। तुम जो भी फैसला करोगे मुझे मंज़ूर होगा"।

शेखर और रेणु इसी समुंदर के किनारे पहली बार मिले थे। भले ही दोनों में बारह वर्षों का अंतर था लेकिन प्रेम ने कब उम्र का लिहाज़ किया है!! दोनों को पता ही नही चला, कब वो दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। रेणु जानती थी, शेखर शादीशुदा था और उसके दो बच्चे भी है। लेकिन वो यह भी जानती थी कि शेखर और मीरा की शादी किन परिस्थितियों में हुई थी।

मीरा के पिताजी शेखर के गुरु रह चुके थे, मरने से पहले उन्होंने शेखर से वादा लिया कि वो मीरा का हाथ थामेगा। मृत्युशय्या पर लेटे गुरु को शेखर मना नही कर पाया। शादी तो हो गई लेकिन मीरा का निस्तेज, ठंडा स्वभाव शेखर के दिल में हमेशा खलता रहा।

शादी के बंधन में जहाँ शेखर ने प्रेम और अपनेपन की उम्मीद की थी वो उसे कभी मीरा से मिला ही नही। वो हमेशा मीरा में एक प्रेयसी को ढूंढता रहता लेकिन मीरा केवल एक पत्नी बनकर रह गई। वो शेखर के तन को तो छू सकी, लेकिन उसके मन को वो कभी छू नही पायी।

शेखर ने बड़ी निराशा से रेणु से पूछा, "रेणु, तुम मुझे पहले क्यूँ नही मिली" ?

रेणु ने भी शेखर का मूड ठीक करने के लिए मज़ाक में कहा, "अगर मैं तुम्हें पहले मिली होती तो तुम मुझसे पूछते, "बेटा, तुम्हारी मम्मी कहाँ है" ?

अपने ही बात पर वो ज़ोरज़ोर से हँसने लगी। शेखर ने कहा, "इसका मतलब अब मैं तुम्हें बूढ़ा लगने लगा हूँ" ?

रेणु : क्या करूँ, मुझे इस बूढ़े से ही प्यार हो गया।

शेखर : रेणु, मज़ाक करना छोड़ो। एक हफ्ते बाद कोर्ट का फैसला आ जायेगा और पता चल जाएगा बच्चों की कस्टड़ी किसे मिलेगी। मैं अभी भी कशमकश में हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ, अपने बच्चों के साथ और मीरा के साथ ठीक कर रहा हूँ ?? या मुझे यही रुक जाना चाहिए ?

रेणु : मैंने कहा ना, तुम्हारा जो भी फैसला होगा मुझे मंज़ूर होगा।

दूसरे दिन शेखर, मीरा और बच्चों से मिलने गया। अब मीरा को भी शेखर से कोई शिकायत नही थी, वो बस बच्चों को अपने पास रखना चाहती थी।

मीरा: शेखर, तुम्हारे पास तो रेणु है लेकिन मेरे पास मेरे बच्चों के अलावा कुछ नही बचेगा। प्लीज शेखर, मुझे मेरे बच्चों से अलग मत करो। मैंने तुम्हें समझने की पूरी कोशिश की, इस शादी को बचाने की भी कोशिश की, लेकिन तुम्हारे साथ दस साल बिताने के बाद भी अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें समझ नही पायी तो इसकी सज़ा मेरे बच्चों को मत दो, शेखर !

शेखर : मीरा, मैं भी बच्चों को उतना ही चाहता हूँ जितना कि तुम !

वो दोनों भी जानते थे इस बहस का कोई अंत नही था।

जब शेखर अपने बच्चों से मिला, उनका एक ही कहना था, पापा, वापिस घर चलिये, हमें और मम्मी को आपकी ज़रूरत है।

उस रात शेखर सो ही नही पाया, उसे रह रहकर अपराधी सा महसूस हो रहा था, उसका दिल भारी हो चला था, जैसे धड़कने धीमी हो रही हो। उसने एक काग़ज़ पर लिखा,

"रेणु, मुझे माफ़ कर दो। मैं मीरा और बच्चों के पास लौट रहा हूँ"।

लिखने के बाद उसने फिर कुछ सोचा, नही, मैं रेणु के बिना नही रह पाऊँगा!!

उसने उस काग़ज़ को वही बिस्तर पर छोड़ रेणु को फ़ोन किया।

"रेणु, मैं कल तुम्हारे पास आ रहा हूँ हमेशा हमेशा के लिए। मुझसे वादा करो, तुम मुझे बिल्कुल अपने जैसी एक बेटी दोगी"!!

रेणु के आँखों में भी आँसू आ गए, उसने बस कहा, "आय लव यू शेखर" !

रेणु से बात कर शेखर अपने बिस्तर पर लेट गया, लेकिन फिर कभी ना उठने के लिए!!

रिश्तों की कश्मकश में उसके दिल ने उसका साथ छोड़ दिया था।

सुबह मीरा शेखर के कमरे में आई तो उसे देख चीख़ पड़ी। डॉक्टर को बुलाया गया। पता चला कार्डियक अरेस्ट से शेखर की जान चली गयी।

मीरा के हाथों में शेखर का लिखा वो काग़ज़ आया जिसे वो फाड़ना भूल गया था। मीरा यह जान बहुत दुखी हुई कि आखिरी समय में भी उसे बच्चों की और उसकी फ़िक्र थी और वो उनके पास लौट आना चाहता था।

रेणु को जब खबर मिली, वो बदहवास सी शेखर को देखने पहुँची। शेखर को देख उसके आँखों से अश्रुधारा रुकने का नाम ही नही ले रही थी। वो रात को शेखर से हुई बात को याद कर रही थी।

ना मीरा ने रेणु को उस आख़री ख़त की बात बताई औऱ ना ही रेणु ने मीरा को उस आख़री फ़ोन कॉल के बारे में कुछ बताया।

वो दोनों ही अपने अपने हिस्से के शेखर के प्यार को याद कर रोती रही......


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