करवा चौथ
करवा चौथ
"प्रभात जल्दी से नाश्ता कर लो तुम्हारे पापा भी इंतजार कर रहे हैं......."
"सॉरी मम्मी; आज मुझे देर हो गई है, मैं ऑफिस में कुछ खा लूंगा।" यह कहकर प्रभात ऑफिस जाने के लिए बाहर निकल गया।
"देख रहे हैं आप, कुछ समझ में आया ?" प्रभात की मम्मी ने अपने पति से कहा।
"देर हो गई है, इसमें समझने वाली क्या बात है? ऑफिस में खा लेगा; कोई बच्चा तो है नहीं वो।" प्रभात के पापा बोले।
"बहुत बड़ा हो गया यही तो समझा रही हूँ आपको......."
"पिछले दस साल से देख रही हूँ शादी के बाद से ही करवा चौथ के दिन ऐसे देर हो जाती है; और प्रभात ऑफिस में खा लेगा बोल कर चला जाता है, जैसे कि हम कुछ समझते नहीं है। एक आप हैं इस दिन तो दो गुना, तीन गुना खाते हैं।"
"अरे ये आज-कल के बच्चे क्या समझेंगे हमारे प्रेम को, मैं तो इसलिए दो गुना, तीन गुना खाता हूँ ताकि तुम को भूख ना लगे; मेरी अर्धांगिनी हो ना, मेरे खाने से तुम्हारा पेट भर जाएगा।"
"हा हा यह भी खूब कही आपने......."
"ऐ मेरी जोहरा जबी तुझे मालूम नहीं........" प्रभात के पापा गाना गाने लगे।
"अरे आप भी न.....बहू सुन लेगी,आपको कोई लिहाज नहीं है; बिल्कुल सठिया गए हैं...."
"मम्मी जी मैंने कुछ नहीं सुना, गाने दीजिए ना पापा जी को......" दिशा अंदर रसोई से बोली।
सब जोर से हंस पड़े मम्मी शर्मा गईं और सोच में पड़ कि उसका धीर-गंभीर बेटा प्रभात, प्रेम के वशीभूत इसलिए व्रत करेगा क्योकि उसकी अर्धांगनी दिशा आज उसके लिए करवा चौथ का व्रत रख रही है।