कृष्णा कहाँ है तू
कृष्णा कहाँ है तू


कृष्ण कहाँ है वो मिलता नहीं लेकिन साथ तो रहता है, उसकी वह प्यारी आँखे जो दूसरे को दीदार करने के लिए मजबुर करती हैं, एक बार कृष्ण जी गुम हो गए गोपियां कृष्ण को ढूंढने के लिए इधर से उधर बस कृष्णा को ढूंढ रही थीं मटकी भरी हुई थी लेकिन कृष्णा नहीं थे आज कृष्णा का जन्मदिन और आज ही कृष्णा गायब गजब की बात है यशोदा मईया भी खोजें कहाँ गया नंदकिशोर,
फिर अचानक से बासुरी की आवाज आई देखा कृष्णा तो पेड की डाल पर बैठे है वहीं जाकर पूरा वृंदावन बैठ गया बस कृष्णा की वह प्यारी आंँखे देखना चाहते थे लेकिन उस भीड़ में सोदामा नजर नहीं आया. कृष्ण जी भागते भागते सोदामा के घर पहुंँचे देखा सोदामा की मईया बीमार है,
सोदामा बोलता - "ए! मित्र तू सबकी मदद करता है आज मेरी भी कर दे ."
कृष्ण जी बोले -" अगर सब मेरे हाथ में होता तो ठीक कर देता लेकिन मेरे हाथ भोलेनाथ ने बाध रखे है ए मित्र तुम्हे भोलेनाथ से बात करनी होगी बस सोदामा लग जाता भोले भक्ति में ." सोदामा- "ए भोलेनाथ तेरी भक्ति से अच्छे अच्छे के जीवन सुधरे है आज मेरा सुधार दो ,मेरी मां की तबीयत ठीक कर दे." भोलेनाथ प्रकट होते और बोलते "क्या विप्ती है ."
सोदामा बोला - "मेरी माई न कुछ खा रही है न कुछ बोल रही है बस एक जगह लेटी हुई है."
भोलेनाथ जी बोले - "तुम्हारी मईया ने एक गलती की थी उन्होंने मेरे द्धारा भेजे हुए सांप को मार दिया वह प्यासा था इसलिए दूध पीने आया तो तुम्हारी मईया डर गई और उसको मार दिया ये उसी का दंड है."
सोदामा बोलता -" ए ईश्वर वह डर गई थी अगर मै भी होता तो डर जाता. अपने प्राण कितने जरूरी है आप नहीं समझते. क्योंकि आपके तो बहुत से भक्त है आपको किस चीज का भय."
भोलेनाथ सोदामा की बात से क्रोधित होने लगे. फिर कृष्ण जी के समझाने पर भोलेनाथ का क्रोध शांत हुआ. भोलेनाथ जी ने एक भभूत दी और ये भभूत अपनी मईया के सर पर लगा देना वह ठीक हो जाएगी. बस सोदामा वह भभूत अपनी मईया के लगा दी और वह ठीक हो गई. कृष्ण जी यह देख कर खुश हो गए और मित्र को गले लगा लिया. कृष्ण जी का जन्मउत्सव था तैयारी बड़ी जोरो सोरो की चल रही थी लेकिन अब राधा गायब हो गई कृष्ण जी इधर उधर राधा को खोजने लगे. राधा कृष्ण जी के लिए घी से भरी मिठाई तैयार कर रही थी कृष्ण जी ने देखा राधा पेड़ की छाव के नीचे बैठकर मिठाई बना रही थी कृष्ण जी वहीं पहुंच गए और बोलते - राधे तुम क्या कर रही हो मै तुम्हे कहाँ कहाँ नहीं खोजा. तो राधा बोली - "कृष्ण एक बार ये मिठाई खा कर देखो और बताओ कैसी लगी."
कृष्ण जी बोले - ये" मिठाई तुम्हारी वाणी की तरह मीठी है तुम सखी मेरे लिए इतनी प्रिय हो तुम नहीं जानती." कृष्णा को ढूंढते ढूंढते उसके मित्र भी वहीं आ जाते.और राधा की मिठाई का लुप्त उठाते.