करोंदा
करोंदा
देख ! कितना ऊपर गया, रिमझिम ने हाथ में पकड़े जंगली फूल को फूँक मारते हुए, अपनी चमकीली आँखों से राजू को देखा।
अभी बताता हूँ ! राजू ने भी अपने हाथ में पकड़े फूल को फूँका। ज़ोर लगाने से ढेर सारा थूक चारों तरफ़ बिखर गया। पर फूल का एक भी रेशा हवा में नहीं उड़ा।
हे हे हे हे, एक भी नहीं उड़ा, बुद्दु हो तुम। ऐसे किनारे से पकड़ो, फिर प्यार से फूँको।ऐसे !!यह गया, देखो बादल को छू लेगा अभी। वो गया बादल के पास, मिल गया बादल से।
“बादल बहुत ऊपर होता है,” राजू चिड़ कर बोला। माँ ने बताया था, बादल तक तो पतंग भी नहीं पहुँच पाती। फिर यह छोटा सा सफ़ेद रेशा इतना ऊँचा कैसे जायेगा ? राजू ने थोड़े ग़ुस्से से पूछा।
“यही तो बात है ” पतँग डोर से बँधी होती है,वो डोर को छोड़ कर ऊपर नहीं जा सकती। जहाँ तक डोर वहीं तक पतँग। और पतँग भारी भी होती है, ऊँचे जाने के लिए हल्का होना ज़रूरी है। मेरे दादू कहते हैं, जितना हल्का रहोगे उतना ऊँचा उड़ोगे।
अच्छा आ !! मैं तुम्हें सिखाती हूँ, ऐसे डंडी पकड़, फूल को होंठों से थोड़ा सा ऊपर पास में रख, फिर ऐसे धीरे से, प्यार से साँस छोड़। वो गया, ऊपर। ज़ोर नहीं लगाना है।
राजू ने धीरे से फूँका “ अरे वाह , वो जा रहा है ऊपर, बहुत ऊपर। रिमझिम मेरे वाला भी बादल को छूँ लेगा। छूँ लेगा ना ?
“पक्का ” ! रिमझिम मुस्कुराई।प्यार से उड़ाया तो देखा, आसमान छू लिया।
गणित वाले मास्टरसाहब क्यों नहीं समझते यह बात। बहुत मारते हैं, जरा सी गलती और “ चटाक ” राजू ने गाल पर हाथ रखा। मानो अभी / अभी चाँटा पड़ा हो।
उनको समझाने वाली कोई रिमझिम जैसी दोस्त नहीं मिली होगी ना। इसलिए नही समझते प्यार की क़ीमत। और सब एक जैसे नही होते, कुछ लोगों को दूसरों को दुःख देने में ही मज़ा आता है। जैसे मेरे बापू को ही देख लो। “चलो करोंदे खाते हैं” रिमझिम ने बात बदली।
” तुम्हारे बापू ग़ुस्सा करते हैं ” ऐसा नहीं हो सकता। कितने अच्छे है। राजू ने अविश्वास से पूछा।
करते हैं, कभी / कभार। पर प्यार भी बहुत करते है। रिमझिम ने उठते हुए बात ख़त्म की।चल करोंदे खाएँ।
चल। दोनो काँटों से बच कर करोंदे इकट्ठे करने लगे।
काले / काले तोड़ना। हरे और लाल नहीं तोड़ना, खट्टे / कड़वे लगेंगे।और काँटें देखकर, रिमझिम आगे बड़ते हुये बोली।
काले मीठे होते है और लाल/ हरे खट्टे ? ऐसा क्यूँ। राजू ने करोंदे पत्ते के दोने में डालते हुए पूछा।
भगवान ने काले वाले करोंदें को वरदान दिया है। मेरी माँ कहती है, एक बार सारे करोंदे भगवान जी के पास गए। काले करोंदे ने शिकायत की “ इन दोनों को आपने इतना अच्छा रंग दिया और मुझे काला बना दिया, उसी झाड़ पर, मुझे कौन पसंद करेगा ? भगवान जी ने काले करोंदे को समझाया बेटा ! तुम मीठे बने रहना, तो सब तुमसे प्यार करेंगे, रंग से कुछ नहीं होता। बस काला करोंदा समझ गया, वो मीठा बन गया। अब देख लाल और हरे को भी मीठा बनना पड़ता है, तभी कोई उसको प्यार करता है। माँ बोलती है,मीठा बोलो, प्यार अपने आप मिलेगा। “ दोना भर गया, चल अब खाते है ”। रिमझिम पत्थर पर बैठते हुए बोली।
पर मेरा दोना अभी नहीं भरा।राजू बोला।
अरे बाँट कर खा लेंगे। रिमझिम ने प्यार से राजू का हाथ पकड़ कर बिठा लिया।मीठे करोंदे बन कर, मीठे करोंदे खाते हुए, दोनों मुस्कुरा दिए।