कोरंटाइन...
कोरंटाइन...
कभी कभी कुछ पल की दूरी भी जान ले लेती है... जनाब सोमवार को अपने कार्यक्षेत्र के लिए निकलते तो 6 दिन बाद लौटते.. पल पल सदियों से गुजरते हमारे. पर क्या करें पापी पेट का सवाल.. सुख साधन.. समाज में नाम प्रतिष्ठा आदि आदि.. ये सब के चलते नौकरी भी जरूरी है..
हम ये भी नहीं कह सकते
,,, तेरी दो टके की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए,,,
अजी कमाई ही लाखों की है तो ये बोलने का सवाल ही नहीं उठता.. हाँ तो हम बात कर रहे थे पापी पेट के लिए इनसे जुदाई हमे सहना पड़ता है.. वैसे भी कहा जाता है कि पति के दिल का रास्ता उनके पेट से होकर जाता है.. और इसमे तो हमें महारथ हासिल है.. कोई हमारी शक्ल भले भूल जाए पर हमारे हाथो से बने खाने का स्वाद नहीं भूल सकता..
उफ्फ हम भी न कोई मौका नहीं छोड़ते आत्मप्रशंसा की और देखा मुद्दे से हट गए न..
खैर वापस आते हैं.. तो हम बात कर रहे थे जनाब से दूरी की.. हमारी तो आदत ही बन चुकी थी शनिवार को प्रभु दर्शन की तो बस बाट जोह रहे थे.. पर गुरुवार को ही इनका फोन आया कि आ रहे हैं.. ये बात सुनकर हमारा दिल बल्लियों उछल पड़ा.. सच कहें तो खुशी से नाचने लगे.. हम कुछ कहते इस से पहले हमारी खुशियों पर वज्रपात हुआ..
" सुनो,,,,"
"जी कहिये,,,"
" हमारे एक सहकर्मी को कोरोना हो गया है.. और उसके संपर्क में आने वाले के साथ हमारा संपर्क हो गया.."
सुनकर तो हमारी धड़कन रुक सी गई.. पर वो जानते थे कि चूहे सा दिल है हमारा..
" देखो बिल्कुल परेशान होने की जरूरत नहीं है.. हम बिल्कुल ठीक हैं, अभी कुछ देर में घर आ रहे हैं.. हमारे लिए उपर का रूम साफ़ करवा दो.. हम एहतियात के तौर पर चार दिन वहीं रहेंगे.."
ये दूसरा वज्रपात था हमारे लिए,,
हमारी खामोशी से वो समझ गए कि हम पर क्या गुजर रही है... देखो ये सब सुरक्षा की दृष्टि से कर रहे हैं.. तुम बिल्कुल चिंता मत करो.. हम पहुंचते हैं कुछ देर में..
उफ्फ उन्हें कैसे बताएँ कि हम कैसे चिंता न करें.. हालांकि उन्होंने कभी सेवा का अवसर नहीं दिया.. और हम तो दिन रात उनकी सलामती के लिए ईश्वर की जान खाते रहते हैं तो जाहिर है उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता.. पर ये मरा कोरोना तो हमारी जान को ही हमसे दूर रख रहा था..
ख़ैर उनके आदेश का पालन करना था.. जल्दी से उनके रूम की सफाई करवाई और इंतजार करने लगे.. कुछ ही पल में गाड़ी के हॉर्न की आवाज से हम बाहर आए..
जनाब ने कार अंदर रखी.. मुस्कराते हुए बाहर आए तो हम ने हमेशा की तरह उनकी तरफ बढ़े.. जैसा कि हमेशा होता है आते ही उनका हमें आलिंगन में लेना और एक प्रगाढ़ चुम्बन...
पर ये क्या.. उन्होंने दूर से ही हमें रोक दिया..
हम सीधे अपने रूम में जाएंगे.. चार दिन खुद को कोरंटाईन करेंगे फिर तुमसे मिलेंगे..
पल भर को इनकी बेरहमी पर गुस्सा आया.. पर ये सब हमारे लिए ही कर रहे हैं ये सोचकर हम चुप रहे.. और हम इनके चाय पानी की व्यवस्था करने लगे.. तब तक जनाब फ़्रेश होकर पलंग में आँखे बंद किए लेट चुके थे.. हमारी आहट से मुस्कराते हुए उठ कर बैठ गए.. हमारे चेहरे से इन्हें अंदाजा तो लग चुका था कि हम कितने विचलित हैं..
पर एक बार फिर समझाया कि ये जरूरी है तुम्हारे और हमारे लिए भी.. और हम बिल्कुल ठीक हैं तुम बिल्कुल भी फिक्र मत करो. ये चार दिन यूं कट जाएंगे.. ये सोचो की हम आए ही नहीं..
हाय क्या बेरहमी है.. सामने बैठे हैं और कहते हैं सोचो की आए ही नहीं..हमने शांत रहकर ये जताया कि जी हम समझ गए.. और हम अपने रूम में आ गए.ना जाने क्या था इस दूरी में कि हम से ये सही नहीं जा रही थी..
कुछ देर में फिर इनके रुम में गए,, देखा तो मोबाइल में कुछ लिख रहे थे.. दरवाजे पर खड़े खड़े इन्हें देखते रहे.. अपने शौक में इतना खो जाते हैं कि हमारी मौजूदगी का एहसास नहीं कर पाते..
अजी क्या बताएँ आपको.. लेखक और गायक के साथ रहना बड़ा मुश्किल काम होता है..
दरवाजे पर खड़े खड़े सोचा कि हमारी तरफ देखेंगे.. पर नहीं कोई फायदा नहीं हुआ.. तो सोचा कि चलो इनकी भाषा में ही बात की जाए,, तो बस शुरू हो गए.. सुर तो हमारे भी ठीक ठाक हैं.. सारी मधुरता समेट कर हमने हम ने गाना शुरू किया..
,,,,,,,,, तड़प ये दिन रात की..
कसक ये बिन बात की.
भला ये रोग है कैसा..
सजन अब तो बता दे
अब तो बता दे.
और इन्होंने मुस्कराते हुए हमारी तरफ देखा... हमे लगा दौड़कर बाहों में भर लेंगे.. पर हाय रे हमारी किस्मत..
बड़े आराम से इन्होंने कहा... "आम्रपाली.. का गीत है बड़ा सुन्दर गीत है.. और बेहतरीन फिल्म है.. "
उफ्फ.. हद है.. सिर पीट लेने को दिल चाहा.. हम यहाँ अपनी भावनाएं और तड़प प्रदर्शित कर रहे हैं,, और जनाब अपना फिल्मी ज्ञान बघार रहे हैं..
खुद को संयत करके पूछा,,,,
" सुनिए,,,"
जी कहिये,,
" खाने में क्या बना दें??"
" आज कुछ हल्का सा बना दो,,"
"खिचड़ी बना दें,,,"
"हाँ यही ठीक रहेगा,",
"जी,,"
हम रसोई में आ गए.. दिल तो हमारा भी कोई पकवान बनाने का नहीं कर रहा था.. सो खिचड़ी बनाई और दे आए.. खाने के बाद इन्होंने कहा,, अब हम सोते हैं जरा हल्की सी थकान है.. तुम भी आराम करो.. शुभ रात्रि बोलकर एक हवाई चुम्बन हमारी ओर उछाला और सो गए.. हम से तो कुछ खाया भी नहीं गया.. जरा सा चखा और अपने बेडरूम में आ गए.. आँखों में नींद नहीं थी.. छत को घूरते घूरते कब पलकें बोझिल होकर मूँद गईं पता ही नहीं चला..
सवेरे उठकर चाय पानी लेकर इनके रूम में गए तो जनाब गाना गाने में व्यस्त थे.. अजी बताया न कि दो शौक हैं इनके.. और आजकल स्टार मेकर में ना जाने कितनों की छुट्टी कर चुके हैं..
हम ने व्यवधान डालना उचित नहीं समझा.. चाय रखी,, इशारा किया और चले आए..
तीन दिन हो चुके थे इनके कोरंटाईन के और जनाब ने खूब कहानियां लिखी और गाने गाए.. क्योंकि जब भी इनके कमरे में जाते,, या तो लिखते दिखते या गाते.. और हम वनवास काट रहे थे..
खैर एक दिन बचा था.. वो भी गुजर ही जाएगा.. ऐसा नहीं था कि इन्हें हमारी जुदाई ने नहीं सताया होगा.. पर जो भी कर रहे थे हमारे लिए ही था.. वैसे भी चार दिन की जुदाई के बाद जो प्यार की बरसात होगी उसके बारे में सोचकर हम सिहर से गए..
" उफ्फ,,, अब नहीं लिख पाएंगे.. उनका बुलावा आ गया है.."

