कोई लौटा दे बीते हुए दिन
कोई लौटा दे बीते हुए दिन
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी
ख्वाबों ही में हो चाहे, मुलाक़ात तो होगी
बीते हुए लम्हों की।
भले ही वर्तमान में कितनी भी दुश्वारियां हो, लेकिन बीते हुए कल की कोई ना कोई खूबसूरत बात दिल की गहराई में इस कदर समा ही जाती हैं कि उसको कभी भुलाया नहीं जा सकता। जिंदगी की आपाधापी में परत दर परत नई नई बातें दिल और दिमाग में अपनी कितनी भी पैठ जमा ले, फिर भी जिंदगी का वह टर्निंग प्वाइंट उभरकर आ ही जाता है और हम बस यही कह पाते हैं कि काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। गुजरते वक्त के साथ-साथ खुद को एडजस्ट नहीं किया तो यह तय है कि वह बीती हुई खूबसूरत बात इस कदर उभर कर आती है कि जीना दुश्वार हो जाता है। इस खूबसूरत बात को मिटाने के लिए इससे बड़ी कोई दूसरी खूबसूरत बात की जरूरत होती है। छोटी लकीर की अहमियत को कम करने के लिए बड़ी लकीर का होना जरूरी होता है। बड़ी लकीर खींचने के लिए खुद को समय के साथ अपडेट रखने की जरूरत होती है। गुजर गया वो दौर जब महीनों सालों की मशक्कत के बाद कोई बदलाव होता था। अब जिंदगी फास्ट ट्रैक पर चलती है जहां बदलाव बहुत तेजी से होता है।
पहले रिश्ते भी बहुत मुश्किल से बनते थे लेकिन बेजोड़ होते थे, क्योंकि उनमें ज्वाइंट फैमिली का फेविकोल होता था। अब डिजिटल वर्ल्ड में रिश्ते भी यूज एंड थ्रो की स्टाइल में जितनी तेजी से होते हैं उतनी ही स्पीड से उनमें दरारें भी पड़ जाती है। अपवाद हो सकते हैं यह अलग बात है। इसके लिए किसी को दोषी ठहराना उतना ही मुश्किल होता है जितना खुद को सही साबित करना।