कण्डुकेश्वर लिंग की कथा
कण्डुकेश्वर लिंग की कथा
विदल और उत्तपल नमक दो दैत्य थे । उन्होंने ब्रह्मा जी की कई वर्षों तक तपस्या करी । उनकी इस कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने दोनों दैत्यो से वरदान मांगने को कहा तब दैत्यो ने किसी पुरुष के हाथों से न मरने का वरदान मांगा । ब्रह्मा जी ने उन दोनो दैत्यो को उनका मनचाहा वरदान दिया ।
ब्रह्मा जी से वरदान पाकर उन दोनों दैत्यो ने त्रिलोकी पर हाहाकार मचा दिया । किसी पुरुष के हाथ से न मरने का वरदान पाने के कारण कोई भी देवता उन दैत्यो को मारने में सक्षम नही था । उन दोनों दैत्यो से भयभीत होकर समस्त देवगण ब्रह्मा जी की क्षरण में गए तब ब्रह्मा जी ने समस्त देवताओं को शिव व शिवा (पार्वती) को स्मरण करने के लिए कहा । देवो की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवा ने उन्हें आश्वासन दिया ।उन दोनों दैत्यो को शिवा के प्रति आकर्षण हो गया और वह दोनों शिवा का अपहरण करने की योजना बनाने लगे ।
उस समय भगवती शिवा गेंद उछाल रही थी तभी वह दोनों दैत्य गणों का रूप का धारण कर देवी शिवा के समीप आए तभी सर्वज्ञ शिव ने देवी शिवा को नेत्रों से संकेत कर दिया ।भगवती शिवा भी संकेत समझ गयी और उन्होंने अत्यंत पराक्रम से उस गेंद से उन दोनों दैत्यो को मार गिराया । उन दोनों दैत्यो का संघार करने वाली वह गेंद कन्दुकेश्वर लिंग के रूप में बदल गई ।