कमरा नहीं, घर देंगे
कमरा नहीं, घर देंगे


समय का पहिया चला जा रहा था और कब मेरी नन्ही सी गुड़िया समझदार युवती बन गई पता ही नहीं चला। धीरे धीरे उसकी पढ़ाई भी पूरी होने को आ रही थी। बी॰ ए॰ का अंतिम वर्ष था और आम माता-पिता की तरह हम भी उसके लिए सही वर के चुनाव में जुटे थे। पहचान वाले सभी को बोल रखा था की अच्छा रिश्ता दिखने पर बताए। रिश्तेदारों को भी बोला था अच्छा लड़का बताने। जब भी कोई रिश्ता बताता तो साथ में पूछता कितने का बजट है आपका। पहली बार तो समझ ही नहीं आया कि किसका बजट। मेरे पति ने तो कह भी दिया कि शादी कितनी भी धूम से करो दस-बारह लाख में तो हो ही जाना चाहिए। इस पर बताने वाले ने बताया कि मैं तो लेन -देन कि बात कर रहा था। तब हम समझ पाए की बजट किस बात को परिभाषित करता है।
जब भी कोई पसंद का रिश्ता मिलता हम उनसे मिलते। सभी गोल-मोल, घूमते-घूमते लेन-देन पर आते। हम उनकी चाहत पूछते और विचार करके बताने की बात बोलकर घर आ जाते। हाँ लड़की देखने-दिखने की बात भी की गई कई जगह। अभी कल ही हम दोनो एक परिवार से मिल कर आए है। उनकी बात करने और माँगने का तरीक़ा बड़ा ही अनूठा था।
हम कल उनके घर पहुँचे, हमारे उन परिचित के साथ जिन्होंने इनके बारे में बताया था। दोनो पति-पत्नी ने बड़े ही उल्लास के साथ हमारा स्वागत किया लगा जैसे हमारे पूराने जानकर हो। अभी हाल-चाल, शहर की बातें शुरू हुई ही थी की भाईसाहब ने मेरी तरफ़ इशारा करते हुए भाभी जी से कहा, "इन्हें ज़रा घर तो घुमा दो, अब तो रिश्ता होने वाला है हमारा।" मैं असमंजस में थी कि अभी तो हमने रिश्ते की कोई बात भी नहीं करी है और रिश्ता हो गया। ख़ैर मैं भाभी जी के साथ चाल पड़ी। बैठक, किचन, दो बड़े कमरे, स्टडी, स्टोर, लॉन नीचे के माले के सब दिखाया उन्होंने। ये भी बताया की नीचे हमारा कमरा है और दूसरा कमरा मेहमानों के लिए है।दूसरे माले पर ले गई वहाँ भी बड़ा हॉल, तीन कमरे, छत और स्टोर दिखाया। कमरे यहाँ भी बाँटे गए थे, एक सास-ससुर के लिए और एक माता-पिता के लिए जब वे आएँगे तो। तीसरा नौकर के लिए जो सास-ससुर, माता-पिता के आने पर रखा जाएगा। अब हमलोग तीसरे माले पर गए। सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मैंने पूछा "लल्ला जी का कमरा कहाँ है?" तो भाभी जी ने कुछ जवाब नहीं दिया। तीसरे माले पर आ कर मैं समझ पाई कि अभी तक जो दिखाया गया है वह तो प्रस्तावना है। असली कहानी तो इस तीसरे माले पर है। यहाँ एक आधा बना कमरा था और कुछ मकान बनाने वाले समान पड़े थे। अब भाभी जी ने चुप्पी तोड़ी और कहा "आप पूछ रही थी ना लल्ला का कमरा तो ये है अधूरा पड़ा है। पैसे पूरे ना हो पाने की वजह से। अभी तो बिचारा नीचे महमनो के कमरे में किसी तरह रह रहा है। बहु आएगी तो क्या उसे भी मेहमानों के कमरे में रखेंगे। उसका भी तो अपना कमरा होना चाहिए ही ना। अब लल्ला को बड़ा शौक़ है आधुनिक सविधाओं वाले कमरे का, बड़े होटलों जैसे बाथरूम का। सब कुछ मिला कर हमने बजट बनाया है की लल्ला के पसंद के कमरे को बनवाने में कम से कम तीस-बतीस लाख तो लग ही जाएँगे। अब आपलोग भी तो चाहेंगे की आपकी बेटी ठाठ से रहे। तो देखिए आप कुछ कर सकती हैं तो। वैसे भी ये तीन मंज़िला घर की मालकीन भी तो आपकी बेटी ही होगी। हमारा तो बस एक ही लल्ला है। उसके पीछे हमने कितना खर्च भी किया है। आप तो जानती ही हैं लड़के के माता-पिता लड़के को अच्छा पढ़ाते-लिखाते तो इसलिए ही हैं ना। फिर मेरा लल्ला तो इनजीनीयर है। आप समझ रही है ना मैं क्या कह रही हूँ। "
मैंने कहा ,हाँ भाभी जी नीचे चलते हैं। आगे की बात वहीं होगी। हमलोग नीचे आ गए, बैठक में। आते ही भाईसाहब ने पूछा। अच्छे से घर दिखाया ना, क्या बोला भाभी जी ने।"
अब जवाब देने की बारी मेरी थी। मैंने कहा, "सुनो इनके घर में इनके बेटे के लिए कोई जगह नहीं है, मेरा मतलब है कमरा नहीं है। ऊपर एक कमरा बनवाना चाहते हैं जिसे बनाने में इनके बजट अनुसार तीस-बतीस लाख लगेंगे। हमसे मदद माँग रहे है। मदद यानी उधार।" तभी टप्प से भाईसाहब टपक पड़े "उधार नहीं, उधार नहीं आप तो समझ रहे होंगे हम क्या कहना चाहते है।" अब तक मेरे पति भी समझ गए थे माजरा क्या है सो उन्होंने कहा "भाईसाहब ऐसा करते हैं बिटिया के नाम से मैंने मेरे घर के बग़ल में एक प्लाट ले रखा है, उसपर पर ही इन पैसों से एक घर बना देते हैं यहाँ तो बस कमरा ही हो पाएगा। फिर मेरी बेटी और आपका बेटा शादी के बाद वहाँ ही रह लेंगे। वैसे भी आपके घर में तो उसके लिए कोई कमरा तो है नहीं। बिचारा यहाँ कैसे रह पाएगा। वहाँ अपने घर में रहेगा। आपको अच्छा लगे तो खबर करिएगा। अभी हम चलते है। और हमलोग वापस चले आए।"
हम दोनो सोंच रहे थे कि क्यों अब भी बेटी की शादी माता-पिता के लिय एक कठिन ज़िम्मेदारी क्यों है। अगर बेटी अपनी पसंद की शादी करे तो समाज को अच्छा नहीं लगता और अगर वह माता-पिता पर छोड़ दे तो माता-पिता समाज की लेन-देन की रीत में पिस जाते हैं।