Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Tragedy

3.5  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Tragedy

कमजोर तिनके

कमजोर तिनके

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"तू सच में अपने पापा- मम्मी और दादा -दादी जी के अलावा ताऊ-ताई, चाचा-चाची और उनके बच्चों, सभी के साथ एक ही घर में रहता है ?"

उदय ने अचम्भे से पूछा।

"हाँ भाई हाँ ! अब तू साथ चल रहा है न खुद ही अपनी आँखों से देख लेना। वैसे ऐसा कुछ खास नहीं होता साथ रहना। तू जाने क्यों इतना उतावला हो रहा है। "

समीर ने कंधे उचकाए।

उदय कल्पना करने लगा कि समीर के कितने मजे हैं। साथ खेलने, घूमने और गप मारने के लिए सारे चचेरे भाई बहन सदा साथ रहते हैं। वो खुद तो अपने चचेरे भाई-- बहनों से मुश्किल से महीने में एक -दो बार ही मिल पाता है, जब किसी का जन्मदिन हो या किसी और वजह से एक दूसरे के घर जाना हो। कितना मजा आता है तब। सब बड़े भी उसे कितना प्यार करते हैं। उसका बस चले तो सब को एक ही घर में रहने को कहे।

कैब रुकी तो समीर के पीछे -पीछे उदय खुशी -खुशी उतरा। मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ा ही था कि समीर ने उसका हाथ खींच लिया।

"ये दरवाजा ताऊ -ताई जी के कमरे में ले जाता है। हमें पीछे के दरवाजे से घुसना है। "

पीछे के दरवाजे से वो बैठक में पहुंचे तो ड्राइंग रूम के सोफे की हालत देख कर उदय अचंभित हो गया। सोफे की जर्जर हालत बता रही थी कि वह लगभग बीस पच्चीस साल से बैठने वालों का बोझ सहन कर बुरी तरह टूट चुका है। समीर का परिवार इतना गरीब है क्या कि नया सोफा नहीं खरीद सकता ?

बैठक में रुके बिना, समीर उसे सीधे अपने कमरे में ले गया। एक बड़े कमरे को पार्टीशन कर उसका कमरा निकाला गया लगता था। कमरा छोटा था पर लेटेस्ट टीवी, कंप्यूटर , म्यूजिक सिस्टम -सब था वहाँ।

थोड़ी देर में समीर की माँ उनके लिए वहीं जलपान भी ले आयी।

"यार पहले नहाने का मन है। मैं कॉलेज से घर पहुँचते ही पहले नहाता हूँ, उसके बाद ही कुछ खाता हूँ। "

उदय ने समीर से कहा तो समीर ने उसके हाथ में एक तौलिया और एक प्लास्टिक का जिप लॉक बैग पकड़ाया। बैग में शैम्पू , साबुन देख उदय को अजीब लगा। ये सब सामान तो बाथरूम में होना चाहिए था ।

पर जब बाथरूम की हालत देखी तो उदय की ऑंखें फटी की फटी रह गयी। टॉयलेट की पीली पडी सीट पर दरारें भी दिख रही थी। सालों से उसकी पुताई भी शायद नहीं हुयी थी।

किसी तरह नहा कर वो वापस कमरे में आया।

"समीर बुरा न मानो तो एक बात पूछूं। तुम्हारा कमरा तो बेहद सुंदर है फिर ये बैठक और बाथरूम इतने गंदे से क्यों हैं ? "

"यार कमरा तो हमारा है न सो हम इसे ठीक -ठाक रखते हैं। बैठक , बाथरूम और रसोई तो सब की है, सो दादा जी को ही उन्हें ठीक हालत में रखना चाहिए। पर रिटायरमेंट के बाद से वो बेहद कंजूस हो चले हैं। लाखों रुपये हैं उनके पास पर सब पर कुंडली मार कर बैठे हैं । कुछ कहो तो यही कहते हैं कि अपनी और दादी की हारी -बीमारी के लिए रखा है। "

समीर का जवाब सुन कर उदय स्तब्ध रह गया। कुछ सोचकर बोला -

"यार फिर तुम लोग अपने अलग घर में क्यों नहीं रहने लगते ?"

उस का सवाल सुन कर समीर हंसने लगा।

"उदय तू बस किताबी कीड़ा है। दीन -दुनिया की कुछ खबर नहीं है। इस कोठी की कीमत आज चालीस करोड़ है। हम ये छोड़ कर चले गए और कल को प्रॉपर्टी ताऊ -चाचा ने मिल कर हड़प ली तो ?"

फिर थोड़ा फुसफुसाते हुए बोला -

"दादा -दादी तो अब बेहद बूढ़े हो चले हैं। बस कुछ साल और जियेंगे। बस उनके बाद इस कोठी को बेच कर सब में पैसे बंट जाएंगे। फिर तो पापा -मम्मी और मैं किसी बढ़िया से चार शयनकक्ष वाले फ्लैट में शिफ्ट हो जाएंगे। फिर देखना मेरा बाथरूम। जकूजी भी लगवाऊंगा।"

उदय से वहां और रुका नहीं गया। वापस निकलते हुए उसकी नजर बैठक के सोफे पर धंसे हुए समीर के दादा -दादी पर पडी।

दो कमजोर तिनके।

जल्द ही वो टूट जाएंगे और

उन पर टिका, ये बस नाम का संयुक्त परिवार भी।


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