Bhavna Thaker

Abstract

4.5  

Bhavna Thaker

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कलयुग

कलयुग

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दुर्योधन को अगर द्रौपदी के चीरहरण पर गांधारी ने खिंच कर दो थप्पड़ लगाएँ होते तो एक कुविचार वहीं पर दफ़न हो गया होता भरी सभा में परिवार के बुजुर्गों से लेकर कुल गुरू तक की उपस्थिति में दुर्योधन ने अपनी घटिया सोच ओर हरकतों का सरेआम प्रदर्शन किया, काश उसी वक्त ही सबने कोई कदम उठाया होता।

द्रौपदी का अपमान हो रहा था तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए।

सदियाँ बीत गई पर कुछ भी तो नहीं बदला तब भी चीरहरण होता था आज भी चीरहरण होता है, तब भी अँधे बहरे ठेकेदार थे,आज भी अंधा बहरा कानून है। 

आज तो पूरा समाज बलात्कारियों के ख़िलाफ़ चिल्ला-चिल्ला कर नारे लगा रहे है प्रताड़ित मासूमों को न्याय दिलाने नपुंसक बहरे समाज के ठेकेदारों को गुहार लगाते क्यूँ एक रोम तक नहीं काँपता, जली हुई बेटी की लाश मिली, पहचान हो गई, दरिंदे गिरफ्तार है, जुर्म कबूल लिया है अब कोर्ट में बहस का क्या मतलब है ??

फांसी क्यूँ नहीं देते क्यूँ न्याय के नाम पर इतनी लंबी कारवाई होती है जब गुनाहगार गिरफ्त में होते है।

एसे कड़े कानून बनने चाहिए की गुनाह करने से पहले ही गुनहगारों की रूह काँपने लगे, किसी एक को सज़ा के तौर पर जला ड़ालों फिर देखो।

जब दुशासन ने पूरी सभा के सामने ही द्रौपदी की साड़ी उतारना शुरू कर दी। सभी मौन थे, पांडव भी द्रौपदी की लाज बचाने में असमर्थ हो गए। तब द्रौपदी ने आंखें बंद कर वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया, भगवान के कान उस वक्त साबूत थे जो द्रौपदी की पुकार पर दौड़ते चले आए।

आज कलयुग में अत्याचार के हाहाकार के शोर के आगे शायद भगवान तक कोई पुकार पहुँचती नहीं, कोई कृष्ण नहीं आएगा कोई टुकड़ा साड़ी का नहीं फेंकेगा उठो, जागो लड़कीयों, नारियों शीत चाँदनी नहीं खुद को आफ़ताब की लौ बनाओ तुम्हारे वजूद से आँख मिलाने वाला जलकर ख़ाक़ हो जाएँ उतनी तपिश जगा लो, खुद की रक्षा खुद ही करने जितना सक्षम बनाओ खुद को, हर माँ बाप से बिनती है बेटियों को सुरक्षा कवच के तौर पर हर वो तालीम दिलाओ की एक दो हैवानों पर भारी पड़ जाए।

 पुत्र प्रेम में मोहाँध धृतराष्ट्र ने क्यूँ घर की इज्जत को नीलाम होने दिया क्या इतने संस्कार नहीं दिए गांधारी ने एक माँ होने के नाते की अपनी भाभी को सरेआम अपमानित करने का साहस जुटा पाया सोचिये उस वक्त तो सतयुग था सगी भाभी कुदृष्टि का शिकार हुई थी आज तो हर गली हर मोड़ पर दुर्योधन खड़े है,

कितने भी अनपढ़ माँ बाप क्यूँ ना हो अपने बेटों को इतने संस्कार तो दे ही सकते है की किसीकी बहन बेटियों का सन्मान करें, अगर अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में घर में घुसकर घर वालों के सामने ही राक्षस कुकर्म करने लगेंगे।

अब तो स्त्री विमर्श में लिखने के लिए शब्द भी नहीं मिल रहें, एसा क्या लिखें की समाज में घूम रहे राक्षसों के दिमाग से ये वहशियाना सोच समाप्त हो जाएँ।। 



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