कलंकित जीवन
कलंकित जीवन
आज नीरजा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे ! उसे लग रहा था कि कहां से यह प्रलय उसके जीवन में आ गई।
कितना मनहूस लग रहा था आज उसको यह दिन और पूरी घटना चलचित्र की भांति उसकी आंखों के सामने घूमने लगी।
बारहवीं कक्षा का अंतिम प्रश्न पत्र था कितना खुशी खुशी घर वापस लौट रही थी ! क्योंकि उसके सारे पेपर बहुत अच्छे गए थे पर अचानक रास्ते में उसकी कक्षा का बचपन का सहपाठी रास्ता रोककर नीरजा से बोलता है की मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।
नीरजा क्रोधित होकर बोली मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी !
तुम यहां से जाओ वरना मैं शोर मचा दूंगी !
और यह क्या हुआ वहां अचानक लोगों का हुजूम इकट्ठा हो गया और लोग तरह तरह के इल्जाम लगाने लगे नीरजा के ऊपर !
नीरजा को तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया अचानक जरा सी बात और लोगों ने अफसाना बना दिया।
किसी तरह वह रोती हुए घर वापस आए और पिताजी को पूरा हाल कह सुनाया पिता को भी गुस्सा आया तो उन्होंने पुलिस थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवा दी।
अब तो और जितना मुंह उतनी बातें कि कुछ तो हुआ होगा जो पुलिस तक जाने की नौबत आई समाज में नीरजा का निकलना और जीना दूभर हो गया कहां वह अपने सुनहरे भविष्य के सपने बुनते हुए घर लौट रही थी और कहां यह कलंकित जीवन ?
उसके तो सारे सपने ही जैसे चूर चूर हो गए हों।
कितनी बार उसके मन में आया कि वह आत्महत्या कर ले क्योंकि वह लोगों के एक सवाल का जवाब देती तो दूसरा सवाल खड़ा हो जाता अब बिना किसी बात की वह किस किस को क्या क्या जवाब देती किसी ने उसकी मानसिकता को समझने की कभी कोशिश नहीं की।
क्या यही हमारा समाज है??
जहां नारी के अधिकार की बड़ी-बड़ी बातें की जाती है ।वहां छोटी सी बात पर भी उसे बदनाम कर दिया जाता और सफाई में कुछ कहने का मौका भी नहीं दिया जाता आखिर कब तक ? सीता की तरह अग्नि परीक्षा देनी पड़ेगी नारी को।