Priyanka Gupta

Drama Inspirational Children

4.5  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Children

कितनी लापरवाह माँ है !

कितनी लापरवाह माँ है !

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"अरे यार, इस बार तो पाखी की परफॉरमेंस पिछले साल से नीचे गिर गयी है। 4th क्लास में उसके 92% मार्क्स थे और 5th क्लास में तो इस बार 91% ही आये हैं।" किटी पार्टी में बच्चों के मार्क्स पर जारी चर्चा में एक ने कहा

"हाँ यार एक-एक अंक के लिए कितनी मेहनत करानी पड़ती है। जब बच्चों के एग्जाम होते हैं तो लगता है कि हमारे एग्जाम हैं। अच्छा है आज मिसेस शर्मा नहीं आयी, नहीं तो अपने बच्चों के मार्क्स के बारे में बता-बता कर सबको शर्मिंदा करती रहती हैं। पता नहीं उनके बच्चों के कभी 98% से कम मार्क्स ही नहीं आते। मेरा तो हमेशा ही बीपी हाई कर देती हैं।" दूसरी ने कहा।

"कितना शो ऑफ करती हैं न अपने बच्चों के मार्क्स का।" किसी ने कहा।

"अरे संध्या, तुम्हारी बच्ची भी तो स्कूल में ही है अभी। " किसी एक ने पूछा।

"हाँ जी, अभी तो फिफ्थ क्लास में ही है।" संध्या ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"तुम्हारी बेटी के कितने मार्क्स आये इस बार?" फिर किसी ने पूछा।

" याद नहीं, उसके मार्क्स पर कभी ज्यादा गौर नहीं किया।" संध्या ने विनम्रता से जवाब दिया।

संध्या के इस जवाब ने वहां बैठी महिलाओं में संध्या को समझाने और उसकी गलती बताने की होड़ सी मच गयी।

" तुम इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हो ?" एक आवाज़ आयी।

"माना तुम्हारी बच्ची के अच्छे मार्क्स नहीं आ रहे होंगे, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम उसके मार्क्स याद ही न रखो। याद नहीं रखोगी तो सुधार कैसे करोगी?" दूसरी आवाज़ ने उसे अपनी समझ से समझाने का प्रयास करते हुए कहा।

"आज के इस कम्पटीशन के दौर में तुम्हे अपनी बच्ची के भविष्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। कहीं तुम भी तो उस दकियानूसी सोच को तो नहीं मानती कि लड़कियों को कौनसा पढ़-लिखकर नौकरी करनी है, संभालना तो घर ही है, तो कैसे भी मार्क्स आये उससे क्या फर्क पड़ता है?" संध्या को जाने बिना ही उन लोगों ने उसे अपने सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया था।

"मैं अपनी बेटी के मार्क्स भले ही याद नहीं रखती, लेकिन मैं यह जरूर देखती हूँ कि वह रोज़ नया क्या सीख रही है ?उसकी समझ विकसित हो रही है या नहीं ?वह अपनी जिम्मेदारियों को समझती है या नहीं ?उसकी रूचि किस विषय में है ?" संध्या ने बड़े ही सधे शब्दों में कहा।

"मैं अपनी बेटी को यह नहीं जतलाना चाहती कि एकमात्र मार्क्स ही उसकी प्रतिभा का आंकलन करेंगे। मैं उसके मार्क्स की तुलना किसी और बच्चे से नहीं करना चाहती। "संध्या बता रही थी कि तभी किसी ने कहा, " हम तो बस उन्हें और अच्छे नंबर लाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। इसीलिए मार्क्स की बात करते हैं। "

" माफ़ करना, आप उन्हें प्रेरित नहीं करते, उन पर जाने-अनजाने में दबाव बनाते हैं। हर समय केवल बच्चों से मार्क्स की बात करना, उनके मार्क्स पूछते रहना ;उन्हें दबाव में लाता है। पहले हम अपने बच्चों के मार्क्स बताते हैं और फिर दूसरों से उनके बच्चों के मार्क्स पूछते हैं। कई बार तो रिजल्ट्स के दिनों में हम बच्चों से बार -बार मार्क्स पूछकर, यदि उनके मार्क्स कम हैं तो उन्हें हीनता और मायूसी की तरफ धकेल देते हैं। "संध्या ने पानी पीने के लिए विराम लिया।

" मैं अपनी बेटी को सिर्फ यह सिखाने की कोशिश करती हूँ कि उसकी प्रतिस्पर्धा अपने आप से ही है। उसे रोज़ अपने आपको बीते हुए कल से बेहतर बनाना है। वह जो भी सीखे बिना दबाव के सहजता से सीखे। हो सकता है, आप जिसे कामयाबी मानते हैं, वह उस कामयाबी को प्राप्त न करें, लेकिन कम से कम वह ज़िन्दगी को सही मायनों में जीना तो सीखेगी। सफलता और असफलता दोनों ही सहज भाव से लेना सीखेगी। " संध्या ने कहा

"यह तो संध्या, तुम्हारा समस्या से मुँह फेरना है। ज़िन्दगी इस तरह के उपदेशों से नहीं चलती। बेटी को पढ़ाई में मदद करने की बजाय तुम अपनी लापरवाही को जस्टिफाई करने की कोशिश कर रही हो। " संध्या की सोच पर सवाल उठाते हुए किसी ने फिर कहा।

"मेरी बेटी के मार्क्स पर मैं ध्यान नहीं देती, आपने इससे यह कैसे मतलब निकाल लिया कि वह पढ़ाई में पिछड़ रही है। उसके मार्क्स जितने मेरे आते थे, उससे तो कहीं ज्यादा आते हैं। मार्क्स की बार -बार चर्चा बच्चों को मायूस करती है और मैं अपनी बेटी को मायूस नहीं करना चाहती। अब चाहे आप इसे सही माने या गलत। लेकिन मैं ऐसा ही सोचती हूँ। मेरी बेटी के लौटने का वक़्त हो रहा है, मैं निकलती हूँ। " संध्या ने अपनी बात को विराम दे, अपना पर्स उठाते हुए कहा।


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