Ragini Pathak

Abstract Drama

4.5  

Ragini Pathak

Abstract Drama

खूबसूरत लम्हें जिंदगी के!!

खूबसूरत लम्हें जिंदगी के!!

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"खुशी वो आपकी दादी है बेटा और वो आपके भले के लिए ही डांटती है" रचना ने अपनी बेटी से कहा

"माँ ! जब आपकी दादी भी मेरी दादी की तरह होती तो आपको पता चलता जब देखो तब मुझे ही डाँटती रहती है।" रचना की बारह वर्षीय बेटी खुशी ने अपनी माँ से कहा

दादी पोती में अकसर ही बहस हो जाती। किसी ना किसी बात को लेकर दादी से खुशी को डांट पड़ ही जाती। आज खुशी की इस बात ने रचना को उसकी दादी की याद दिला दी। रचना को अपनी दादी के साथ बिताए गए जिंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हें आज याद आ गए रचना दादी से जुड़ी अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हें को आज भी याद करती है तो खुशी से झूम उठती है क्योंकि आज रचना अगर आत्मनिर्भर बन पाई तो सिर्फ अपनी दादी की प्रेरणा की वजह से----

"रचना! दिनभर ऑनलाइन रहना बंद करके थोड़ा घर गृहस्थी के काम में अपनी माँ का हाँथ भी बंटा लिया करो" सुमित्रा जी ने अपनी पोती से कहा|

"दादी! पूरा दिन आप बस मेरे ही पीछे पड़ी रहती हो, मुझे नहीं पसंद घर के काम करना" रचना ने मोबाइल देखते हुए कहा|

"अच्छा फिर जब तू शादी कर के जाएगी तो वहाँ कौन बेड पे चाय और तुझे सारी चीजें देगा कभी सोचा है"? सुमित्रा जी में कहा|

"ओफ्फो दादी, आप तो बस" रचना ने कहा|

कि तभी सुमित्रा जी के फोन की घण्टी बजी उन्होंने देखा तो उनकी बेटी रमा का फोन था।

"हाँ बेटा, कैसी है सब कुछ बढ़िया?" सुमित्रा जी ने कहा|

"ठीक हूं माँ, वो मेरी जेठानी जी की माँ (गीता) आ रही थी कुछ दिन के लिए बनारस बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन करने| उनका प्रोग्राम बना है अपने पोते (आकाश) के साथ पहली बार तो बोला कि आप लोगों से भी मिल लेंगी" रमा ने कहा|

"ठीक है बेटा" सुमित्रा जी ने कहकर फ़ोन रख दिया।

इधर रचना ने अपनी माँ सुमन जी को फुसफुसाते हुए कहा "महान है आपकी सासुमां और मेरी दादी जी जो दिनभर मेरे पीछे ही पड़ी रहती हैं।"

सुमन ने कहा "चुपकर तेरी दादी है तेरे भले के लिए समझाती है| लेकिन आजकल के बच्चों को बात समझ आये तब ना?"

तभी सुमित्रा जी ने सुमन को आवाज देते हुए कहा "बहु मेहमान आने वाले हैं तो उनके रहने का इंतजाम देख लेना"|

"जी माँजी आप चिंता मत कीजिये सब हो जाएगा" सुमन ने कहा|

सुमित्रा जी के परिवार में सभी सदस्यों के बीच आपसी प्यार विश्वास था कारण सुमित्रा जी की सोच और व्यवहार था जो वो सबके मन और विचार को टटोलने के बाद ही कोई निर्णय लेती थी।

रचना आधुनिक विचारों की 20 साल की उनकी पोती थी जिससे उनके कभी कभी वैचारिक मतभेद होते रहते थे लेकिन रचना में उनकी जान बसती थी, वो पोते से ज्यादा अपनी पोती को प्यार करती थी लेकिन जताती नहीं थी।

अगले दिन मेहमान घर पर आ गए, सबसे मिलना जुलना हुआ।

सुमित्रा जी ने औपचारिक बात चीत करते हुए गीता जी से पूछा" बहन जी रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई , सफर कैसा रहा"

गीता जी ने कहा"नहीं नहीं बहन जी सब ठीक था बहुत दिनों से दर्शन का मन था लेकिन किसी को समय ही नहीं था तो पोते ने ये इच्छा भी पूरी कर दी बोला दादी ऑफिस के काम से जा रहा हु तो आपको दर्शन भी करा दूंगा।"

"जी बहुत अच्छा किया आपने" सुमित्रा जी ने कहा

घूमने फिरने के बाद अंतिम दिन दोपहर में गीता जी ने मौका पाकर सुमित्रा जी से कहा" बहन जी आज शाम तो हम चले जायेंगे तो एक बात बिना लाग लपेट के सीधे अपने दिल की बात कहती हूं मैं रचना को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूँ, हमारे घर के बारे में तो आप सब जानती है, परिवार में दौलत की कोई कमी नहीं नौकर चाकर सब हैं पोता भी मल्टीनेशनल कम्पनी में मैनेजर है, और हमारा परिवार भी एक दूसरे को अच्छे से जानता है बेटियों की शादी जाने पहचाने घर मे हो तो अच्छा रहता है वरना तो आप जानती है कि लोग शादी में कितने झूठ बोलते है ,सोचा जाते जाते ये खुशी भी साथ ले जाऊं, आप क्या बोलती है।"

"गीता जी! मेरी पोती अभी पढ़ाई कर रही है, हमें कोई जल्दी नहीं शादी की"

सुमित्रा जी की बात को बीच में काटते हुए गीता जी ने कहा"कि अरे! तो हम कौन सा उसकी पढ़ाई रोक देंगे, शादी के बाद करती रहे |अपनी पढ़ाई हमारी तरफ से कोई पाबंदी नहीं, हमारे घर में बहु और बेटी में कोई फर्क नहीं होता, मैं तो सोच रही थी कि हमारी आंखे बंद होने से पहले हम दोनों भी अपने पोते पोती की शादी देख लेते मेरी तो ये अंतिम इच्छा है।"

कमरे के दरवाजे के पीछे से दोनो लोगों की सब बातें सुमन और रचना सुन रही थी।

तभी सुमित्रा जी ने नम्रतापूर्वक थोड़ा गम्भीर होकर कहा"गीता जी जब लडकिया अपने मायके में अपने मन का नहीं कर पाती तो ससुराल में क्या कर पाएंगी। जब मायके में लड़कियों पर अनगिनत पाबंदी होती है तो ससुराल में नहीं होगी ये कैसे मान लूं, कितनी सारी पाबंदी तो मैंने लगा रखी है उसपर पता है कि गलत करती हूँ लेकिन क्या करूँ सामाजिक दबाव जो है।"

आज आपकी अंतिम इच्छा पोते की शादी देखना है, शादी के बाद आपकी अंतिम इच्छा परपोते का मुँह देखना होगा तो फिर रह गयी मेरी पोती की पढ़ाई और उसके सपने।

"मतलब आप नहीं चाहती कि आपके रहते आपके पोती की शादी हो जाये, ये तो हर दादी का अंतिम सपना होता है" गीता जी ने कहा

"माफ कीजिएगा बहन जी मेरी तो इच्छा मेरी पोती को आत्मनिर्भर बनाना है, वो पढ लिखकर पहले अपने सपने पूरे करेगी उसके बाद ही उसकी शादी होगी। आपकी अंतिम या किसी की भी अंतिम इच्छा के लिए मैं अपने पोती के सपने और अरमान नहीं तोड़ सकती, मेरी पोती कोई वस्तु नहीं जो आपने मांगा और मैंने दे दिया । शादी से लेकर शिक्षा तक सब वो अपनी पसंद से करेगी। आपकी ट्रेन का समय हो रहा है आपसे मिलकर अच्छा लगा" सुमित्रा जी ने कहते हुए हाँथ जोड़ लिया

रचना को आज अपनी दादी पर गर्व महसूस हो रहा था कि जिनको वो पुराने ख्यालों की और बेटा बेटी में भेदभाव वाली सोच रही थी उनकी सोच इतनी ऊंची और अच्छी है।

उनलोगों के जाते ही रचना अपनी दादी के गले लगते हुए कहा"दादी मुझे माफ़ कर दो, मुझे तो लगा ही नहीं था कि आप इतना अच्छा सोच रखती हो मेरे बारे में आज तो मुझे आप पर गर्व हो रहा है।"

"अच्छा!अब बातें ना बना जा के रसोई में मेरे लिए चाय बनाकर ला पहले बड़ा सिरदर्द करा दिया बहन जी की सोच ने, अभी तेरी उम्र सिर्फ मेरी डांट खाने की है सासुमां की डांट में अभी बहुत समय है पहले तो खुद को संभालना सीख ले और मेरी अंतिम इच्छा भी तो पूरी करनी है तुझे आत्मनिर्भर बनकर" सुमित्रा जी कहते हुए ठहाके लगा के हँसने लगी

"दादी ये आपकी अंतिम इच्छा बिल्कुल नहीं हो सकती अभी तो आपको बहुत दिनो तक रहना है मेरे बच्चों को भी तो पता चले कि मेरी दादी कैसी थी और उनकी मम्मी ने कितनी डांट खायी है, उन्हें भी तो मिलनी चाहिए आपकी परवरिश" रचना ने शरारत में सुमित्रा जी को छेड़ते हुए कहा

"बदमाश लड़की पहले चाय जाकर बना"

"बस दो मिनट अभी लायी आपकी पसंद की तुलसी वाली चाय"

दूर खड़ी सुमन दादी पोती के इस प्यार को देखकर मन ही मन खुश और अपनी सास पर गर्व महसूस कर रही थी।


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