Anshu Shri Saxena

Romance

2.0  

Anshu Shri Saxena

Romance

ख़ुशियों के फूल

ख़ुशियों के फूल

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बबिता का मन आज बहुत उद्विग्न था, रह रह कर उसकी आँखों के सामने सुबह का मंज़र घूम रहा था जब उसने पाँच वर्ष के राहुल को मोहित के साथ देखा था। आज जब वह कक्षा में जाने के लिये स्टाफ़ रूम से निकल रही थी तभी उसकी नज़र प्रिन्सिपल साहब के कमरे से निकल रहे मोहित और नन्हें से राहुल पर पड़ी थी। मोहित और बबिता एक दूसरे को देख कर ठिठक गये थे और फिर मोहित बिना कुछ बोले राहुल को साथ लेकर चला गया था।

“ओह....कितना बड़ा हो गया मेरा कलेजे का टुकड़ा।“

बबिता का मन हो रहा था कि वह दौड़ कर जाये और नन्हे राहुल को अपने सीने में भींच ले....राहुल को अपनी ममता की बारिश में नहला दे....पर मोहित ने ऐसा मौक़ा ही नहीं दिया था। बबिता का मन विद्यालय में नहीं लग रहा था इसलिये वह प्रिन्सिपल साहब से तबियत ठीक न होने की बात कह वापस घर चली आयी थी।

घर आकर बबिता बिस्तर पर निढाल सी पड़ गयी। उसकी आँखों में बीती हुई जिन्दगी किसी फ़िल्म की तरह चल रही थी। मोहित से विवाह हो जाना उसके लिये किसी सपने के सच होने जैसा था। मोहित और बबिता दोनों पड़ोसी थे और बचपन से एक दूसरे को चाहते थे। बड़े होने के साथ साथ उनके दिलों नें एक दूसरे के लिये प्यार परवान चढ़ने लगा था। जब दोनों के परिवार वालों को उनके रिश्ते की भनक लगी तो दोनों की ज़िन्दगी में जैसे तूफ़ान आ गया था। बबिता और मोहित, दोनों के घर वाले उनके रिश्ते के सख़्त ख़िलाफ़ थे। कोई उपाय न देख कर बबिता और मोहित ने परिवार वालों की मर्ज़ी के बग़ैर कोर्ट में विवाह कर लिया था और नये सिरे से अपना जीवन सँवारने में जुट गये थे। 

बबिता और मोहित की ज़िन्दगी ख़ुशहाल चल रही थी और लगभग दो साल के बाद राहुल के आ जाने के बाद उनकी ख़ुशियों में चार चाँद लग गये थे पर यह ख़ुशियाँ ज़्यादा दिनों तक टिक नहीं पाईं। कुछ दिनों से मोहित ऑफ़िस से देर से घर आने लगा था। बबिता जब भी मोहित से कारण पूछती तो वह हँस कर टाल जाता या यह कह कर बबिता को बहलाने की कोशिश करता कि ऑफ़िस में बहुत ज़्यादा काम है। 

एक दिन बबिता अपनी किसी सहेली के साथ बाज़ार गई थी। ख़रीदारी करने के बाद दोनों सहेलियाँ कॉफ़ी पीने के लिये कॉफ़ी शॉप में चली गईं। वहाँ अंदर घुसते ही बबिता की नज़र सामने बैठे मोहित पर पड़ी। वह किसी महिला के साथ बैठा कॉफ़ी पी रहा था। बबिता धड़धड़ाते हुए मोहित के पास गई और ग़ुस्से से चिल्लाते हुए बोली “तो ये है तुम्हारा ऑफ़िस का काम ? तुम इसी के कारण ऑफ़िस से देर से आते हो ? शादीशुदा होकर भी किसी औरत के साथ रंगरेलियाँ मनाते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती ?”

“ये क्या कह रही हो बबिता ? बोलने से पहले कुछ सोच लिया करो....ये मेरी ऑफ़िस की सहकर्मी सुनन्दा जी है...सबके सामने यहाँ तमाशा करने की कोई ज़रूरत नहीं “ मोहित ने भी ऊँचे स्वर में जवाब दिया।

“ मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी “ कह कर बबिता पैर पटकती हुई कॉफ़ी शॉप से बाहर निकल गई। 

बबिता पूरी तरह क्रोध से वशीभूत हो घर पहुँची। वह यही सोच रही थी....

“ मुझसे कहाँ ग़लती हुई जो मोहित किसी दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गया....मैंने मोहित से टूट कर प्रेम किया....घर वालों से झगड़ा कर मोहित से शादी की...क्या इसी दिन के लिये ? मैं मोहित जैसे दग़ाबाज़ को कदापि माफ़ नहीं करूँगी....उसने मेरे प्रेम का अपमान किया है...अब मैं मोहित के साथ बिलकुल नहीं रहूँगी.... मैं पढ़ी लिखी हूँ....कहीं भी कोई भी नौकरी कर लूँगी....किसी तरह से अपना और अपने बच्चे राहुल का पेट पाल लूँगी “

वह अपना और राहुल का सामान समेट ही रही थी कि मोहित भी हाँफता हुआ सा घर पहुँचा। उसने बबिता को समझाने की बहुत कोशिश की...

“ ये पागलपन मत करो बबिता.... तुम जो सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं....मेरे दिल में तुम्हारे अलावा और कोई नहीं...वो सुनन्दा.....”

“ उसका नाम मत लो मेरे सामने....आज से मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं....मुझे तुम्हारी कोई सफ़ाई नहीं सुननी....मैं और राहुल तुम्हारी ज़िन्दगी से बहुत दूर जा रहे हैं....“ क्रोध में अंधी हो चुकी बबिता ने कहा।

कोई रास्ता न देख मोहित ने आख़िरी दाँव चला....

“ठीक है....तुम मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो तो जाओ , पर मैं राहुल को नहीं ले जाने दूँगा....वह मेरा भी बेटा है...उसे मैं तुम्हारे साथ धक्के खाने के लिये नहीं छोड़ सकता।“ 

मोहित को लगा था कि बबिता अपने जिगर के टुकड़े, अपने बेटे को छोड़ कर कहीं नहीं जायेगी।

पर बबिता पर तो जैसे भूत सवार हो गया था, वह ग़ुस्से में भर कर बोली...

“ठीक है...रख लो राहुल को....तुम दो दिन भी नहीं संभाल पाओगे उसे....खुद ही तुम राहुल को मेरे पास ले कर आओगे....वैसे भी मैं कोर्ट में राहुल की कस्टडी के लिये केस कर दूँगी...राहुल की छोटी उम्र को देखते हुए कोर्ट भी मेरे ही हक़ में फ़ैसला देगा “

बबिता को उस दिन अपनी बात ही सही लग रही थी, वह बना सोचे समझे अपना सामान लेकर मोहित का घर छोड़ यहाँ डलहौज़ी आ गई थी और एक बोर्डिंग स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगी थी। मोहित को न राहुल को लेकर आना था, न वह आया। बबिता को राहुल की बहुत याद आती और अक्सर मोहित की भी। कई बार उसका मन डलहौज़ी छोड़ कर वापस अपने घर जाने को करता पर उसकी ज़िद और अहं उसके क़दम रोक देते। वह फिर सोचती....

मैं क्यों वापस जाऊँ ? मुझे अपनी भावनाओं के आगे कमज़ोर नहीं पड़ना है..जब मैंने कोई ग़लती की ही नहीं तो मैं क्यों झुकूँ ? मोहित ने बेवफ़ाई की है तो माफ़ी भी मोहित को ही माँगनी पड़ेगी।”

उसने कोर्ट में राहुल की कस्टडी का केस भी दायर कर दिया था पर कोर्ट की तारीख़ें मिलने में ही बहुत समय लग रहा था और हर तारीख़ पर मोहित राहुल को लेकर आता भी नहीं था। ऐसे ही धीरे धीरे समय गुज़रता गया और तीन साल बीत गये और आज ये स्कूल में राहुल और मोहित....

अब बबिता की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, उसके मन में मोहित और राहुल के बारे में जानने की लालसा बलवती होती जा रही थी, क्या मोहित ने सुनन्दा से विवाह कर लिया है ? क्या उसका अपना ख़ून राहुल उसे भूल चुका है ? ये सारे सवाल बबिता को पीड़ा पहुँचा रहे थे। पर वह क्या करे ? कहाँ से उन दोनों के बारे में पता लगाये ? इसी उधेड़बुन में वह वापस स्कूल जा पहुँची और सीधे प्रिन्सिपल महोदय के कमरे में चली गई

“ क्या हुआ बबिता जी ? आपकी तो तबियत ठीक नहीं थी ? आप तो छुट्टी लेकर घर गईं थीं, फिर वापस कैसे आ गईं ? प्रिन्सिपल महोदय ने आश्चर्य से पूछा।

“ जी सर , आपसे कुछ ज़रूरी बात पूछनी थी....आज सवेरे जिस बच्चे का ऐडमिशन हुआ है उसके परिवार के बारे में “ बबिता के चेहरे पर उत्सुकता और बेचैनी के मिलेजुले भाव थे।

“पर हम ऐसे तो जानकारी नहीं देते....आपको उस बच्चे में इतनी दिलचस्पी क्यों है ?” प्रिन्सिपल महोदय आश्चर्य से बोले। 

बबिता ने अपनी पूरी कहानी प्रिन्सिपल महोदय को कह सुनाई।तब प्रिन्सिपल महोदय ने बताया कि “ हाँ बच्चे के पिता कुछ दिनों पहले ही यहाँ डलहौज़ी स्थानांतरित होकर आये हैं, वे अपने बच्चे राहुल के साथ अकेले ही रहते हैं.....उन्होंने यहाँ अपना आवासीय पता नहीं दिया है , पर हाँ अपने बैंक का पता दिया है जहाँ वे काम करते हैं।“

“ बहुत बहुत धन्यवाद सर, मैं बैंक जाकर ही मोहित के बारे में पता करती हूँ “ कह कर बबिता बैंक की ओर चल पड़ी।

टैक्सी में बैठी वह सोच रही थी “ चलो अच्छा हुआ मोहित ने सुनन्दा से शादी तो नहीं की है।“

जब बबिता बैंक पहुँची तो मोहित ऑफ़िस में नहीं था , शायद लंच ब्रेक में खाना खाने गया हुआ था।बैंक मैनेजर के कमरे के बाहर मोहित के नाम की नेमप्लेट लगी हुई थी। बबिता ने वहाँ बैठे एक कर्मचारी से पूछा....

“ मुझे मैनेजर साहब से मिलना है...कब तक आयेंगे ?”

“ साहब घर गये हैं खाना खाने ? मैं साहब को कई सालों से जानता हूँ......मैं भी वहीं से ट्रान्सफर होकर आया हूँ जहाँ से साहब आये हैं.....साहब दिल के हीरा हैं हीरा....वह हर किसी की सहायता करते हैं....उन्होंने सुनन्दा मैडम की कितनी सहायता की जब उनके पति की मृत्यु हो गई थी....सुनन्दा मैडम को अनुकम्पा नौकरी भी मैनेजर साहब के अथक प्रयासों के बाद ही मिली....हमारे इतने अच्छे साहब को उनकी पत्नी पता नहीं क्यों छोड़ कर चली गईं....साहब ने किसी तरह क्रेच में रख कर और आया की मदद से छोटे से बच्चे को पाला है।“

मोहित के उस सहकर्मी ने सारी रामकहानी सुना दी थी। 

“ ओह....मैं क्या सोच रही थी और बात क्या निकली....मैंने तो मोहित को सफ़ाई देने का मौक़ा ही नहीं दिया....मैंने बिना सोचे समझे मोहित पर कितने सारे अनर्गल आरोपों की झंडी लगा दी थी....मैं कितनी ग़लत थी “

सोचते सोचते बबिता की आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बह निकले। 

बबिता मोहित के आने की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगी।थोड़ी ही देर मेँ मोहित आ गया , उसे शायद अंदेशा था कि शायद बबिता ऑफ़िस आयेगी। वह बबिता पर एक नज़र डाल सीधे अपने कमरे में चला गया। बबिता भी उसके पीछे पीछे कमरे में आ गई। कमरे में आते ही बबिता ने मोहित के पैर पकड़ लिये....

“मुझे माफ़ कर दो मोहित....मैं अपने किये पर बहुत शर्मिन्दा हूँ....मुझे प्लीज़ अपने घर बुला लो....मैं अब तुम्हारे और राहुल के बिना एक पल भी नहीं रह सकती “ कह कर बबिता ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। 

“वो घर आज भी तुम्हारा है.....और प्लीज़ ये रोना बंद करो....तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे आँसू नहीं देख सकता” कह कर मोहित ने बबिता को गले से लगा लिया।मोहित के सीने से लगी बबिता को अब यह अच्छी तरह से समझ आ गया था कि सच्ची ख़ुशी परिवार के साथ ही है और प्रेम विश्वास और समर्पण ही पारिवारिक जीवन की सफलता की कुंजियाँ हैं।अब इन कुंजियों के साथ बबिता भी पुन: परिवार के साथ रहने को तैयार थी। उसके जीवन में ख़ुशियों के फूल फिर से खिल गये थे। 


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