NOOR EY ISHAL

Action Inspirational Children

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NOOR EY ISHAL

Action Inspirational Children

खुशियों का आसमाँ

खुशियों का आसमाँ

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आज दिनभर गर्मी बहुत थी लेकिन शाम होते ही मौसम ठण्डा हो गया था। मैं कॉफी का मग लेकर छत पर आ गयी थी। अँधेरी रात में तारों भरे आकाश को चमकते हुए चाँद के साथ देखना पता नहीं क्यूँ हमेशा से अच्छा लगता है। आज भी छत पर वही देखने आयी थी... मन भी कुछ उदास था या फिर सफ़र की थकान थी।कुछ तो था जो मन को बेचैन किये हुए था।आज चाँद को देख ज़रूर रही थी लेकिन मन में सवालों का तूफ़ाँ आया हुआ था। कुछ आवाजें बीते वक़्त से आकर कानों में टकरा रही थीं। "मैडम, आप मुझे भूल तो नहीं जाओगे।" आँखों में नमी लिये मासूम सा बद्री पता नहीं मुझसे क्या वादा लेना चाह रहा था "दीदी, ये पंखे आपके लिये लायी हूँ .. यहाँ लाइट बहुत जाती है.. आप का चेहरा गर्मी से बहुत लाल हो जाता है।" इन आवाज़ों का शोर सुन मेरे आँखों से आँसू बहने लगे थे.. शायद मुझे क्या हुआ है ये पता चल गया था... मुझे उन सबकी याद आ रही थी जो एक हफ्ते में ही अपने से बन गये थे। एक प्रोजेक्ट था जिसे मैंने कुछ महीने पहले ही शुरू किया था। जिसमें क्लास एक से पाँच तक के बच्चों के लिये कुछ प्रेजेंटेशन्स बनाने थे। जिसमें अंग्रेजी, हिन्दी, कला और गणित विषयों की दो घंटे की क्लास ऐक्टिविटीज होती थी।

ये प्रेजेंटेशन ऑनलाइन क्लासेज के लिये थे।मैंने प्रेजेंटेशन वर्क तय सीमा पर जमा करवा दिया था। अब अगला पड़ाव इस प्रेजेंटेशन वर्क को व्यवहारिक रूप में दिखाना था। इसके लिये हमारी टीम को एक स्कूल में जाकर ये प्रेजेंटेशन वर्क दिखाना था। मेरी टीम में कुल दस सदस्य थे। हम सबने गाँव के एक स्कूल को चुना था.. इसके दो कारण थे एक तो ये कि शहर और कस्बों के स्कूल में तो ऑनलाइन पढ़ाई फिर भी पटरी पर आ गयी थी लेकिन गाँव के स्कूल आज भी संघर्ष कर रहे थे। दूसरा कारण ये था कि अभी तक इस तरह के प्रेजेंटेशन वर्क को गाँव के स्कूल में सफलता के साथ संचालित करने के लिये किसी ने पहल नहीं की थी। अगर हम इसमें सफल हुए तो गाँव की शिक्षा पद्धति में सुधार के मार्ग खुल सकते थे यही सब सोचकर हम सब अपने एक ऐसे सफर के लिये निकल पड़े जहांँ मंज़िल तो साफ़ दिख रही थी लेकिन रास्ता कितना दुश्वार होगा इसका कुछ भी अंदाजा हम में से किसी को भी नहीं था। हम कोरोना काल में एक ऐसे गाँव में ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे जहाँ बिजली एक हफ्ता दिन में दी जाती थी तो कभी एक हफ्ता रात में बिजली दी जाती थी। किसी के पास लैपटॉप या आधुनिक टीवी भी नहीं थे। हाँ मोबाइल थे पर इन्टरनेट सुविधा बहुत कम ही लोगों के पास थी। हम सबने अपनी जरूरत का सारा सामान रख लिया था और इसके अलावा प्रोजेक्टर्स, बैटरीज, एक्सटेंशन बोर्ड्स, लैपटॉप और एक टीवी जिसमें नेट कनेक्ट किया जा सकता था, हमारे साथ था। टीवी रखने का सुझाव मेरा था जिसको लेकर मेरी और जौन की बहस हो गयी थी। उसका कहना था कि टीवी की कोई जरूरत वहाँ नहीं पड़ेगी, प्रोजेक्टर्स काफी होंगे। पर मेरा कहना ये था कि जब सब सामान लेकर जा रहे हैं तो एक टीवी एहतियातन रखने में क्या हर्ज है.. ख़ैर काफी देर बहस के बाद सब टीवी ले जाने के लिये तैयार हो गये थे। जौन से मेरी बातचीत बहुत ज्यादा नहीं थी। मेरी टीम में वही एक सदस्य ऐसा था जिससे मैं बहुत कम बात करती थी।

उसकी वजह ये थी कि जब भी वो किसी से बात करता था तो या तो उसका लहजा तन्जि़या होता था या फिर सीधे सवाल का उल्टा जवाब देना उसकी वाजिबात में से था। मुझे बात करने के ये लहजे बिलकुल पसंद नहीं हैं। इसीलिए मैं उससे दूर ही रहती थी क्यूँकी अगर मैंने उससे बात की तो ये सौ प्रतिशत तय था कि हमारी बहस होनी ही है। टीवी ले जाने की बात पर भी बहस वहाँ से शुरू हुई जब उसने मेरे सुझाव पर ये कहा कि इतना दहेज ले जाने की क्या जरूरत है?पूरी टीम के सदस्य उससे बहस करने से बचते थे। मुझे ये बिलकुल अंदाजा नहीं था कि ये शुरुआत थी.. आगे एक हफ्ता हर दिन उससे एक दो बार बहस होनी तय थी... क्यूँकी काम करते समय वो इतना बौखलाया सा रहता था कि दूसरे लोगों का दिमाग घोलकर पी जाता था। दोपहर के लगभग ढाई बजे हम उस गाँव में पहुँच चुके थे। वहाँ के मुखिया से हमारी टीम के सदस्य हमारे आने से पहले ही बात कर चुके थे। उन्होंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार हमारी मदद करने का वादा किया था, वो भी इस बात को लेकर उत्साहित थे कि उनके गाँव के बच्चे भी अब ऑनलाइन पढ़ाई कर पाएँगे।उन्होंने हमारे रहने के लिये दो छोटे मकान खाली करा दिये थे। एक मकान हमारी टीम की महिला सदस्यों के लिये था और दूसरा पुरुष सदस्यों के लिये था। यहाँ भी जौन अपनी विशेष टिप्प्णी देने से नहीं चूका... उसके अनुसार वो पहले दोनों मकान देखेगा जो उसे अच्छा लगेगा फिर पुरुष सदस्य उसी में रहेंगे। उसकी इस बात पर हमारी टीम की सीनियर सदस्या जया जी को बहुत गुस्सा आ गया लेकिन हम लोगों ने उनको सम्भाल लिया कि जाने दीजिये उसको मकान देखने दीजिए। उसने अपनी मर्जी के मुताबिक मकान लिया और फिर हम लोग दूसरे मकान में चले गये। हमारी टीम के पुरुष सदस्य भी जौन की इस हरकत से नाराज़ थे, पर मुखिया जी के सामने कोई तमाशा नहीं चाहता था इसीलिये सब चुप रहे। हमारे मकानों के पास वाले घर से हमारे खाने पीने की व्यवस्था की गयी थी। बाकी चाय, कॉफी और स्नैक्स का इन्तेजाम हम ख़ुद ही करके आये थे।

मकान ठीक ही था. .. एक आदिवासी गाँव में आप जितने अच्छे मकान की कल्पना कर सकते हैं उतना ही अच्छा था। सबसे अच्छी ये बात हुई कि हमारे मकान के एक तरफ़ घने छायादार पेड़ों की कतारें थीं और एक छोटे से तालाब का नज़ारा था। जौन अपनी अक्लमंदी के चलते हमें खुद ही अच्छा मकान दे चुका था।हम सब अपना कमरा जल्दी जल्दी सेट कर रहे थे क्यूँकी शाम को साढ़े पाँच बजे हमें मुखिया जी के साथ गाँव के सर्वे पर जाना था। मुखिया जी के आने में सिर्फ़ एक घंटा था। हमारा भी काम लगभग हो चुका था इसीलिये मैं तालाब की ओर खुलने वाली बालकनी पर आकर खड़ी हो गयी थी। तालाब में कुछ छोटे बच्चे नहा रहे थे और किसी कुशल तैराक की तरह पानी में तैर रहे थे,हमारी बालकनी की छाया में कुछ गायें बँधी थीं... मुझे उन बच्चों को देखकर बहुत मजा आ रहा था, तभी मेरी नजर उनमें से एक बच्चे पर गयी जो तैरना छोड़कर मेरी तरफ ही देखे जा रहा था.. वह बच्चा आठ या नौ साल का ही लग रहा था। उसका देखना मैंने यूँ नजरअंदाज कर दिया क्यूँकी मैं यहाँ नयी थी और ये बच्चे शायद यहाँ रोज़ आते होंगे, इसीलिये मुझे यहाँ देखकर हैरान होंगे कि मैं कौन हूँ? जया जी अंदर बुला रहीं थी तो मैंने मुस्कराकर उस बच्चे की तरफ हाथ हिलाकर उसे हैलो कहा और अंदर वापस आ गयी। जया जी और बाकी सब तैयार हो रहे थे उन्होंने मुझसे कहा, "नूर, जल्दी तैयार हो जाओ मुखिया जी बस आते ही होंगे" "मैं ऐसे ही चलूँगी, I'm ready." मैंने थोड़ी लापरवाही से कहा "ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जया जी तैयार होने चलीं गयी और मैं अपने सामान से कुछ छोटी-छोटी चॉकलेट्स निकालकर अपनी जीन्स की पॉकेट्स में रखने लगी थी। तभी बाहर से जौन के चिंघाड़ने की आवाज़ आयी अरे जया जी कहाँ हैं आप सब, जल्दी करिये... सर्वे पर जाना हैं किसी बारात में नहीं आये हैं। अभी पाँच बजा था मुखिया जी के आने में आधा घंटा था। मुझे उसपर बहुत ज़ोर से गुस्सा आ गया मैंने दरवाज़ा खोलकर उससे कहा, "क्यूँ चिल्ला रहे हो इतना.. क्या मुसीबत आ गयी? बारात में तो नहीं आये हैं लेकिन तुम्हारे लिये यहीं से रिश्ता ढूँढकर ज़रूर जाएँगे.." मैं ये कहकर वापस आ गयी.. जौन भी इस अचानक हमले के लिये तैयार नहीं था.. कुछ जवाब नहीं देते बना तो वहाँ से चुपचाप चला गया। मुखिया जी ठीक साढ़े पाँच बजे आ गये थे और हम सब बाहर ही उनका इन्तेज़ार कर रहे थे।गाँव का सर्वे हम सब कर रहे थे और पूरा गाँव हमारा सर्वे कर रहा था... बहुत मजेदार दृश्य था.. छोटे छोटे बच्चों की कतारें हमारे पीछे पीछे चल रहीं थीं.. मैंने उन बच्चों को चॉकलेट देना चाहा तो जया जी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे कान में बोलीं, "इस समय रहने दो नूर, बच्चे बहुत ज्यादा है, बच्चों की भीड़ लग जाएगी यहाँ " उनका कहना बिल्कुल सही था। सर्वे लगभग ख़त्म होने को ही था और आज के दिन का टार्गेट भी पूरा हो गया था, हमने ये दिन गाँव के निरीक्षण के लिये रखा था ..

अब कल से हमें बिना समय गंवाए अपना काम शुरू करना था। हमसब अपने मकानों के बाहर आ चुके थे और बाहर ही खड़े होकर ये तय कर रहे थे कि थोड़ी देर में यही बाहर कुर्सियाँ बिछाकर कल की प्लानिंग कर लेते हैं कि कैसे और कहाँ से काम शुरू करना है। थोड़ी देर आराम करने के बाद फ़्रेश होकर हम सब बाहर आ गये थे। पड़ोस के घर से शाम की चाय देने एक बच्चा आया था.. मैंने उस बच्चे से उसका नाम पूछा , "क्या नाम है तुम्हारा" "बद्री" उसने मेरी ओर एकटक देखते हुए कहा... उसके इस तरह देखने से मुझे याद आया कि शायद ये वही बच्चा है जो दोपहर में तालाब पर नहा रहा था मैंने फिर भी उससे पता किया, "वहाँ तालाब पर तुम ही नहा रहे थे जिसे मैंने हाथ हिलाकर हैलो कहा था।" "जी, ये बताकर वह मुस्कराते हुए वहाँ से भाग गया उसके इस तरह भागने से हम सबको भी हँसी आ गयी थी।

अगले दिन सुबह सवेरे ही हम सब गाँव के प्राथमिक विद्यालय पहुँच गये थे। लेकिन वहाँ के हालात देखकर हम सबको बहुत निराशा हुई क्यूँकी वहाँ प्रोजेक्टर काम नहीं कर सकते थे। स्कूल बहुत जर्जर स्थिति में था। वहाँ पर ऑनलाइन क्लास नहीं हो पायेगी ये पता चल गया था। उस समय तो हम सब वापस मुखिया जी के यहाँ आ गये थे और वहीं बैठकर सोचने लगे कि क्या किया जा सकता है। जौन काफी नाराज था क्यूँकी उसको लगता था कि हमारा यहाँ गाँव में आकर प्रोजेक्ट करने का फैसला ही गलत था।वह गुस्से से बोला, "मुझे तो वहीं लग रहा था कि जितनी आराम से सब प्लानिंग कर रहे हैं ये फेल ही हो जायेगी।" "तो फिर तुमने हाँ क्यूँ किया था.. तुम मना भी कर सकते थे, और जब कोई काम शुरू करते हैं तो मुश्किलें आती ही हैं, इस वक़्त फालतू बातें छोड़कर बेहतर यही है कि इस समस्या का हल सोचा जाये.. औऱ हाँ एक बात और अगर किसी को टीम छोड़कर जाना है तो वो जा सकता है.. फ़िलहाल अब मेरे लिये मेरे प्रोजेक्ट से ज्यादा इन मासूम बच्चों के चेहरों की ख़ुशी ज़्यादा अहमियत रखती है " मैंने भी बहुत इत्मीनान के साथ जौन के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए बोला जौन वहाँ से उठकर वापस अपने मकान में आ गया था.. हम सब वहीं बैठे रहे.. मुखिया जी भी थोड़े से उदास नजर आ रहे थे मैंने उनसे कहा," आप परेशान ना हो, कोई भी परेशानी ऐसी नहीं होती है जिसका हल ना हो .. हाँ उस हल तक पहुँचने में थोड़ा समय लगता है लेकिन रास्ता ज़रूर मिलता है ।" हम सब भी अपने मकान में वापस आ गये थे। सभी अपनी अपनी जगह इस समस्या का हल ढूँढने में लगे हुए थे.. मैं कमरे से उठकर वापस उसी बालकनी में आकर खड़ी हो गयी और तालाब की तरफ़ देखने लगी थी। आज भी बच्चे वहाँ खेल रहे थे और मुझे देखते ही ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे," मैडम जी, मैडम जी" उन बच्चों के चेहरों की चमक और उत्साह मुझे थोड़ा सा भावुक कर गया। उसी वक़्त मैंने सोच लिया था कुछ भी हो जाये ये प्रोजेक्ट अधूरा वापस नहीं जायेगा.. एक उपाय दिमाग में आ चुका था। मैं तेज़ी से अंदर कमरे में जया जी के पास गयी और उनसे बोली, " कैसा हो अगर हम स्कूल ही शिफ्ट कर दें.. बच्चे इतने ज्यादा नहीं हैं... अगर हम किसी एक मकान को खाली करवा लें तो हमारा काम बन सकता है।" मेरे उपाय में दम था.. सबकी उम्मीदें वापस आ गयी थी हम सब जल्दी से बाकी सदस्यों के पास पहुँचे और उनको इस बात से अवगत कराया.. सभी को इस उपाय से काफी उम्मीदें हो गयीं थी.. इसीलिये बिना समय व्यर्थ किये हुए जया जी और हमारे सीनियर कमल जी फौरन ही इस विषय पर मुखिया जी से बात करने चले गये..अब हम सब उन दोनों के वापस आने का बहुत बेसब्री से इन्तेज़ार कर रहे थे। बात बन गयी थी मुखिया जी ने अपनी पूरी बैठक स्कूल के लिये दे दी थी। ये बैठक बढ़िया मजबूत और अच्छी बनी हुई थी इसमें अंदर की तरफ़ तीन कमरे भी बने हुए थे.. एक तरफ़ बड़ा सा बाथरूम भी बना था। बैठक के आगे बड़ा सा कच्चा हरियाली से भरा आँगन भी था.. कुल मिलाकर बैठक स्कूल बनाने के लिये बिलकुल बढ़िया जगह थी। शाम होने को थी... आज की कामयाबी से हम सब ही बहुत खुश थे. जौन का मूड भी सही हो गया था.. सभी ने तय किया कि आज शाम की चाय बाहर सब एक साथ पियेंगे।

साढ़े पाँच बजे हम सब बाहर कुर्सियों पर बैठे हुए चाय का इन्तेज़ार कर रहे थे जो कि पड़ोस के घर से आने वाली थी.. आज बद्री अपनी अम्मां के साथ चाय देने आया था। चेहरे पर बड़ी शर्मीली सी मुस्कराहट थी और अपनी अम्मां के पीछे छुपा हुआ था पर हर बार की तरह वो मुझे ही देख रहा था.."अरे, बद्री, हमारे पीछे क्यूँ छुपे जा रहे हो, अब मिल लो मैडम जी से" बद्री की अम्माँ उसे आगे खींचते हुए बोलीं। लेकिन बद्री फिर से अपनी अम्माँ के पीछे छुप गया। हम सब हँसने लगे.. मैंने बद्री की अम्माँ से पूछा,"इसको क्या हुआ है, क्या इसको कोई बात करना है?" "मैडम, जब से आप आयीं हैं ना.. बस यही कह रहा है.. अम्माँ मैडम जी तो हमारी राधा से भी सुन्दर हैं, इनको लगता था कि इनकी राधा सबसे सुंदर है.." बद्री की अम्माँ हँसते हुए बताने लगी "राधा कौन है" मैंने उत्सुकतावश पूछा "इसकी सफ़ेद रंग की गाय है जिसके पीछे दुनिया के काम छोड़ सकता है ये "बद्री की अम्माँ थोड़ी फ़िक्र के साथ बोलीं हम सब हँसने लगे थे। " बद्री, तुम्हारी राधा ही सुंदर है, तुम परेशान ना हो.. कल हम सब तुम्हारी राधा से मिलने आएँगे।" मैंने बद्री से कहा बद्री की अम्माँ चाय रखकर जाने लगीं तो बद्री उनके साथ जाने लगा लेकिन मैंने उसे रोक लिया, "बद्री, अभी थोड़ी देर में जाना.. तुम्हारे लिये चॉकलेट लाए हैं लेकर जाना । " तो वो रुक गया। जया जी बोली," अच्छा बद्री, कौनसी कक्षा में पढ़ते हो? " " तीसरी में आ गये थे लेकिन पढ़ नहीं पाये.. स्कूल बंद हो गये हैं" बद्री ने जवाब दिया "बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? "मैंने उससे पूछा " हम कुछ नहीं बनना चाहते बस एक जमीन खरीदना चाहते हैं" उसने कहा "ज़मीन क्यूँ खरीदना चाहते हो? "इस बार जौन ने उससे पूछा " हमें बाबा का ईंटों के भट्टे पर मजदूरी करना अच्छा नहीं लगता है, हम चाहते हैं बाबा भी मुखिया जी की तरह अपने खेतों में नौकरों से काम करवाने जाएँ "बद्री उदास होते हुए बोला "अच्छा, चलो मैं तुम्हारे लिये चॉकलेट लेकर आती हूँ। "मैंने बात बदली.. हममें से किसी को भी उसका उदास होना अच्छा नहीं लगा था उसके जाने के बाद हम सब भी आराम करने के लिये अंदर आ गये थे।अगले दिन के काम की तैयारियां और प्लानिंग पूरी हो चुकी थी.. डिनर के बाद सब सोने चले आये लेकिन मुझे और जया जी को नींद नहीं आ रही थी.. जया जी ने मुझे आवाज़ देकर कहा, "नूर, क्या जाग रही हो?" "नहीं, सोने की नाकामयाब कोशिश कर रहीं हूँ" मैंने कहा "चलो थोड़ी देर हम दोनों बाहर बालकनी में बैठते हैं" जया जी ने कहा "चलिये" मैं भी उठकर उनके साथ बाहर बालकनी में आ गयी थी। बाहर बहुत अँधेरा था.. अभी सिर्फ़ नौ बज रहे थे लेकिन गाँव में रात के बारह बजे के बाद वाला सन्नाटा फैल गया था.. पर अच्छी बात ये थी कि चाँदनी रात थी और लग रहा था कि चाँद भी अपने रौशन नूर के साथ शायद हमारी बातें सुनने के लिये बेचैन होकर हमारा इन्तेज़ार कर रहा था.. मैंने जया जी से पूछा, "क्या आपको हनुमान चालीसा आती है" "क्या???" जया जी हैरान थी कि मैं क्या पूछ रहीं हूँ "जी, मुझे आयतल कुर्सी याद है और अगर आपको हनुमान चालीसा याद नहीं है तो गूगल से सर्च करके मोबाइल में उसे ऑन रखिये" मैंने हँसते हुए पेड़ों की कतारों की तरफ़ इशारा किया जो रात में अँधेरे की वजह से डरावने लग रहे थे " उफ्फ्फ, नूर तुम भी कभी कभी हद करती हो,तुमने तो डरा ही दिया मुझे "जया जी गहरी साँस छोड़ते हुए बोलीं " वैसे क्या आपको नहीं लगता है जया जी, इस समय जो इतने सन्नाटे में हमने बालकनी में आने की दिलेरी दिखाई है वो ठीक नहीं है।" मैंने दूर जंगल से भेड़ियों की आती हुई आवाजें सुनते हुए कहा "तुम कभी नहीं सुधरोगी नूर, ख़ुद तो डर रही हो और मुझे भी डरा दिया.. चलो अंदर जाकर सोते हैं..

औऱ हाँ बालकनी का दरवाजा सही से बंद कर लेना "जया जी अंदर आते हुए बोलीं मैं सिर्फ़ मुस्करा रही थी। " अच्छा जया जी, क्या कल सुबह बद्री के घर नाश्ता लेने हम दोनों चलें? आज बद्री की बातें सुनकर बड़ा अफसोस हो रहा था.. मुझे इन लोगों की प्रॉब्लम्स जानना हैं.. कुछ देर बातें करके आते हैं " " ठीक है" जया जी बोलीं..सुबह मैं और जया जी बद्री के घर नाश्ता लेने आ गये थे। अभी हमारी टीम के सदस्य सो रहे थे तो हमारे पास बद्री के परिवार से बात करने का समय था, सबसे पहले हमलोग बद्री की राधा से मिले.. सही में राधा बहुत सुन्दर और बहुत शांत थी। हमें देखकर बद्री बहुत ख़ुश था.. हमलोग आँगन में पडी चारपाई पर बैठ गये.. मौसम अच्छा था लेकिन धूप की गर्मी फिर भी महसूस हो रही थी। मैंने बद्री के पिता से पूछा, "क्या सिर्फ़ मुखिया जी के यहाँ ही खेती होती है?" "नहीं मैडम, जिनके पास अपनी ज़मीन है वो भी खेती करते हैं बाकी सब या तो भट्टे पर मजदूरी करते हैं या किसी के भी खेत में मजदूरी कर लेते हैं... पूरे गाँव में दो ही ट्रैक्टर हैं तो सब बारी बारी किराया देकर अपने खेतों में फसल की कटाई बुआई का काम कर लेते हैं।" " क्या, ट्रैक्टर को लेकर आप लोगों में कभी कोई बहस या लड़ाई झगड़ा नहीं होता है? "मेरा सवाल बड़ा अजीब था मगर मैं अपनी उत्सुकतावश पूछ बैठी थी " मैडम जी, यहाँ ख़ुद को और अपने परिवार को बाकी रखने के लिये हर रोज हम सब हालात से, गरीबी से लड़ते हैं.. इस तरह की बहसबाज़ी का यहाँ कोई अस्तित्व नहीं है.. यहाँ कोई जात पात, ऊँच नीच नहीं है.. सब एक दूसरे की मदद करते हैं,भगवान की कृपा से हमारे मुखिया जी बहुत अच्छे हैं और हर सम्भव प्रयास करते हैं कि गाँव में कोई बेरोज़गार ना रहे। " बद्री के पिताजी की बात बिलकुल सही थी..एक व्यस्त व्यक्ति के पास अपने कार्य में मेहनत करने के अलावा सोचने को कुछ नहीं रह जाता है.. मेरी नजर में ये मुखिया जी की दूर दर्शिता थी कि उन्होंने सबसे पहले इस बात का ख्याल रखा कि गाँव में कोई बेरोजगार ना हो.. उसके बाद मुखिया जी अपने गाँव में शिक्षा का माहौल बनाने हेतु प्रयासरत थे.. उनके इन्हीं प्रयासों और लगन की वजह से हमारा यहाँ आना हुआ था। गर्मी अब बढ़ गयी थी.. आँगन में बैठना बहुत मुश्किल हो रहा था..

तभी एक लड़की दो बहुत सुन्दर से पंखे लेकर आयी और बोली, "दीदी ये पंखे ले लीजिये.. गर्मी के कारण आपका चेहरा लाल हो गया है" इससे पहले कि मैं उस लड़की के बारे में पूछती बद्री बोल उठा, "मैडम जी, ये हमारी बहन गीता है.. ये पंखे गीता ने अपने हाथ से कढ़ाई करके बनाये हैं.. हम और बाबा इन पंखों को बस स्टैंड पर जाकर बेचते हैं।" पंखे बहुत ही सुंदर थे, मैंने बद्री के परिवार से कहा," इतने सुन्दर उपहार के लिये बहुत धन्यवाद.. अब हम चलेंगे.. सब जाग गये होंगे.. नाश्ते की प्रतीक्षा में होंगे। " मैंने गीता से कहा," गीता आज रात को खाना लेकर तुम और बद्री आ जाना।अभी तुम लोगों से और बातें करनी हैं.. अभी मन नहीं भरा लेकिन काम भी बहुत जरूरी है.. रात को मिलते हैं " बद्री का चेहरा खुशी से खिल चुका था हम सब उसको देखकर हँसने लगे..जया जी और मैं नाश्ता लेकर वापस आये तो सब तैयार हो चुके थे और नाश्ते की प्रतीक्षा में थे...सभी नाश्ता करने लगे लेकिन जौन को हमारा वहाँ जाना अच्छा नहीं लगा था.. जया जी की वजह से उस समय कुछ नहीं बोला लेकिन मुखिया जी के घर जाते समय आखिर उसने अपने दिल के छाले फोड ही दिये। "हमें बचपन में सिखाया गया था कि अजनबियों से दूर ही रहना चाहिये.. लोग पता नहीं बड़े होने पर ये बात कैसे भूल जाते हैं.. औऱ हर जगह रिश्तेदारी निकालने बैठ जाते हैं।" जौन मुँह सिकोड़ते हुए बोला "पिछले चार दिनों से गले तक भर-भर के उन्हीं अजनबियों के हाथ का खाना और नाश्ता खा रहे हो.. ये बात तुम कैसे भूल सकते हो.. और सभी एक दूसरे के लिये अजनबी होते हैं.. धीरे-धीरे ही जान पहचान होती है.. दिल में थोड़े एहसास रखा करो जौन.. नहीं तो सभी तुम्हारे लिये अजनबी रह जाऐगें। " मैंने भी उसी की तरह मुँह बनाते हुए जवाब दिया तो वो चुप हो गया। मुखिया जी का घर आ गया था.. आज का दिन हमारे लिये काफी खास था.. आज ही हमें सब प्रोजेक्टर और टीवी लगाने थे.. कल का दिन बच्चों की क्लास के लिये था और परसों हमें वापस जाना था.. समय बिलकुल नहीं था ऐसे में जौन का ताना देना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा था। नये स्कूल में काम शुरू हो गया था.. हमने कमरों को क्लास की तरह दोपहर तक व्यवस्थित कर दिया था.. बाकी टीम के सदस्य प्रोजेक्टर और टीवी लगा चुके थे.. अब सिर्फ़ उन सब को चलाकर देखना बाकी था। शाम होने को थी.. नेट कनेक्शन और जेनरेटर की व्यवस्था मुखिया जी ने करवा दी थी...

शाम को पूरा गाँव मुखिया जी के घर पर आ चुका था.. कुछ जरूरी बातें सब गाँव वालों को बतानी थी इसलिये सबको शाम को आने के लिये सूचित कर दिया गया था। "सबको कल सुबह अपने बच्चों को उनके नये स्कूल में भेजना है.. मैंने अपने घर का ये भाग स्कूल को दे दिया है.. अब हमारे गाँव के बच्चे यहीं पढ़ेंगे.. सभी बच्चों को मास्क लगा कर आना है.. स्कूल से ही बच्चों को कॉपी, पेंसिल आदि दिया जायेगा. सभी बच्चे बस अपना खाना लेकर आएँगे।सभी अभिभावक एक-एक करके अपने बच्चे का स्कूल में पहला दिन आकर देख सकते हैं.. क्यूँकी दो साल से हमारे बच्चों ने पढ़ाई नहीं की है इसीलिये अभी फिलहाल बच्चों को एक विशेष पाठ्यक्रम टीवी पर दिखाया जायेगा.. उसके बाद बच्चों की योग्यता के अनुसार उन्हें कक्षाएँ दी जायेंगी। मैं अपनी ओर से और अपने गाँव की तरफ़ से इस टीम का बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ कि इन्होंने अपने प्रोजेक्ट के लिये हमारे गाँव को चुनकर हमें हमारे बच्चों को पढ़ाने की एक नयी राह दिखायी है और हमारे बच्चों को एक उज्जवल खुशियों का आसमाँ दिया है। " मुखिया जी की आंखों में खुशी के आँसू थे.. पूरा गाँव हमारे लिये तालियां बजा रहा था.. सब बहुत ख़ुश थे और हम?? हम भी बहुत ख़ुश थे और दुआ कर रहे थे कि कल का दिन भी ऐसे ही कामयाबियाँ लेकर आये।आज का दिन भी बहुत कामयाबी के साथ पूरा हुआ था। हम सभी काफ़ी थक गये थे बस डिनर की प्रतीक्षा कर रहे थे.. थोड़ी देर बाद बद्री और गीता खाना लेकर आ गये थे। "मैडम जी, अभी रुकेंगे नहीं, कल स्कूल का पहला दिन है तो माँ ने कहा है कि जल्दी आ जाना।" गीता ने खाना देते हुए कहा "ठीक है, कल स्कूल के बाद हम सारा दिन साथ रहेंगे.." मैंने उससे कहा "जी, ज़रूर " उसने जल्दी से कहा और बद्री का हाथ पकड़कर वहाँ से चली गयी। हमसब भी डिनर के बाद सोने चले गये क्यूँकी आज पूरे गाँव को और हमें कल सुबह का बड़ी शिद्दत से इन्तेज़ार था। आज पूरे गाँव में किसी त्यौहार का समाँ लग रहा था.. मुखिया जी की सख्त हिदायत थी कोई बिना मास्क के स्कूल नहीं आयेगा। हम सब भी बस चाय पीकर जल्दी ही मुखिया जी की तरफ आ गये थे.. बच्चे आना शुरू हो गये थे.. थोड़ी देर में क्लास शुरू होने वाली थी। प्रोजेक्टर और टीवी ऑन हो गये थे..

बच्चे हैरानी से वीडियो देख रहे थे पूरी क्लास में शांति थी.. बाकी दो क्लास में भी ऐसा ही सन्नाटा था.. इस समय मेरी तीन प्रजेंटेशनस् दिखाई जा रही थी.. आधे घंटे के बाद वीडियो रोककर हमसब बच्चों से पूछना चाह रहे थे कि उन्हें वीडियो कैसा लगा लेकिन कोई भी बच्चा इसके लिये तैयार नहीं हुआ और वीडियो पूरा देखने के लिये कहने लगे। जैसे ही एक घंटे बाद वीडियो ख़त्म हुई तो सभी बच्चे उत्साहित होकर तालियां बजाने लगे थे.. बच्चे क्लास में खुशी से उछल कूद कर रहे थे। उस समय मुखिया जी, मैं, जया जी और जौन वहाँ कुछ अभिभावकों के साथ खड़े होकर बच्चों की ख़ुशी देख रहे थे.. मेरी आँखें खुशी के आँसू से भर आयी थीं.. मैं जल्दी से वहाँ से हटना चाह रही थी कि कोई मेरे ये आँसू ना देख ले.. तभी जौन की आवाज़ मेरे कानों में आयी.. इन आँसुओं को मत छुपाओ नूर.. मैंने उसकी आवाज़ पर पलटकर देखा तो मुखिया जी समेत सभी की आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे। मैं मुस्कराने लगी.. "बहुत शुक्रिया मैडम अपने प्रोजेक्ट को यहाँ करने की ज़िद के लिये।" जौन ने मुस्कुराते हुए कहा प्राथमिक स्कूल क़े अध्यापकों को इस नए स्कूल की जिम्मेदारी मिल चुकी थी..मुखिया जी के पास हमारी टीम का नंबर था जिससे भविष्य में स्कूल से सम्बंधित कोई परेशानी हो तो उसको हल किया जा सके, प्रोजेक्टर और टीवी हमने स्कूल को ही दे दिया था और आपस में तय किया कि इसकी पूरी कीमत हम सब अपनी अपनी एक महीने की तनख्वाहें संस्था को देकर पूरी कर देंगे। अध्यापकों को सारी जानकारियां देने के बाद हम सब वहाँ से वापस अपने मकान में आ गये थे। स्कूल के बाद हम सब बद्री और गीता के साथ पूरा दिन गाँव में और गाँव के बाहर घूमते रहे.. बद्री बहुत ख़ुश था उसने और गीता ने हमसे वादा किया कि वो बहुत मन लगाकर पढ़ेंगे। शाम हो चुकी थी.अब हमें अपना सामान पैक करना था क्यूँकी कल सवेरे ही हमें वापस निकलना था.. पैकिंग करते करते रात हो गयी थी। रात को बद्री का पूरा परिवार खाना लेकर हमसे मिलने आया था। "मैडम जी, आप वापस जाकर मुझे भूल तो नहीं जाएँगी।" बद्री बहुत उदास और दुखी था.. "नहीं बद्री.. कभी नहीं मैं हमेशा तुम्हें और इस गाँव को याद रखूँगी और हम सब फोन करके भी तुमसे बात करते रहेंगे बस तुम बिलकुल उदास मत होना और फिर राधा है ना।" मेरी बात सुनकर वॊ थोड़ा सा मुस्कुराया था पर जल्दी ही वो मुस्कराहट गायब हो गयी थी "गीता तुम्हारे दिये पंखे मैं हमेशा अपने पास रखूँगी, तुम भी मन लगाकर पढ़ना। "मैंने उदास खड़ी गीता से कहा बद्री और उसका परिवार देर रात तक वहीं बैठा रहा. हमने इस पूरे सप्ताह के खाने पीने के लिये उनका हिसाब भी कर दिया था,

और कुछ अलग से मदद भी कर दी थी। सुबह सवेरे मुखिया जी, स्कूल के शिक्षक, बद्री और उसका परिवार हमें विदा करने के लिये आ गये थे सभी बहुत उदास थे। हम सब का भी यही हाल था.. पता ही नहीं चला कि एक अजनबी सा गाँव कब अपना बन गया था "बद्री ये तुम्हारे लिये..ये मेरा सबसे अच्छा पेन है और मैं हमेशा इसे अपने साथ रखती थी लेकिन आज से ये पेन तुम्हारा हुआ " मैंने उसे अपना एक पेन देते हुए कहा।बद्री के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान फैल गयी थी. सबसे विदा कहकर हम सब जल्दी से गाड़ी में बैठ गये क्यूँकी वहाँ ज़्यादा देर हमसे भी रुका नहीं जा रहा था। रास्ते भर हमने आपस में एक दूसरे से कोई बात नहीं की.. वापस पहुँचकर सभी अपने दुखी मन का हाल छुपाते हुए, एक दूसरे से नज़रें चुराते हुए अपने अपने घर आ गये थे। शाम को अजीब सी तबीयत होने के कारण मैं कॉफी लेकर ऊपर छत पर आ गयी थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ यादें फिर बद्री और उसके गाँव चलीं गयी थीं। हमारी टीम को सम्भलने में थोड़ा समय लगा..हमारा प्रोजेक्ट नंबर वन पोजीशन पर आया था, नंबर वन टीम का इनाम भी हमारे ही पास आया था और मेरी प्रजेंटेशनस् को भी बेस्ट प्रजेंटेशन का अवार्ड मिल गया था। संस्था ने हमसे टीवी और प्रोजेक्टर की कोई कीमत नहीं ली बल्कि अच्छी बात ये हुई कि बद्री के गाँव को संस्था ने गोद ले लिया था। मुखिया जी की ईमानदारी और मेहनत रंग लाई थी। उन्होंने हम सब को फोन करके हमारी कामयाबियों के लिये बहुत बधाईयाँ दी. बद्री से भी बात हुई.. वह बहुत ख़ुश था.. स्कूल में बच्चे बहुत अच्छी तरह पढ़ रहे थे। मेहनत,ईमानदारी और सबका एकजुट होकर कामयाबी के लिए प्रयास करना .. यही तो मेरे स्वदेस की ख़ासियत है। 


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