NOOR E ISHAL

Romance

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NOOR E ISHAL

Romance

मेट्रो

मेट्रो

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201


हमारी रोज़ मुलाकात शाम की मेट्रो ट्रेन में ही होती थी।दोनों एक दूसरे को देखते ही बस एक तकल्लुफ़ भरी मुस्कुराहट अपने अपने चेहरों पर ले आते थे और अगले ही क्षण बिजली की गति से अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो जाते थे।

कभी ना तो उसने मेरा परिचय जानने की कोशिश की और ना ही कभी मैंने उसमें दिलचस्पी दिखाई कि उसे जाना जाये। पता नहीं दिल ने इश्क़ के गलियारों का रास्ता कब बंद कर दिया पता ही नहीं चला।

शायद इश्क़ की हक़ीक़तों से अच्छी तरह वाबस्ता होने की वजह से या फिर अपने घर में माँ बाबा को मेरे दूसरी लड़की होने का ताना सुन सुनकर कुछ कर दिखाने की धुन ने ये रास्ता कभी खुलने ही नहीं दिया था।

जो भी था मगर मैं अपने आप में बहुत खुश थी।उस दिन भी हम रोज़ की तरह मेट्रो में साथ ही चढ़े थे लेकिन उस दिन अलग ये हुआ कि हम दोनों को साथ में ही सीट मिल गयी थी।

हम दोनों तब भी ख़ामोश थे।लेकिन कुछ सेकंडस् के बाद ही एक मवालियों की टोली ट्रेन में चढ़ चुकी थी.... औऱ ये सभी अपनी आदत से मजबूर थे और उस वजह से ट्रेन में बैठी अकेली महिलाओं से बदतमीजी कर रहे थे....जाहिलों की तरह हँसना, गंदे,भद्दे कमेन्टस् करना सब शुरू कर दिया था।

कुछ लोगों ने इसका विरोध किया तो दो तीन से उनकी हाथापाई भी हो गयी थी।

लगभग एक मिनट के बाद हमारे आगे वाली सीट खाली हो गयी थी। उस टोली के सबसे बदतमीज लड़के धप्प से उस सीट पर आ बैठे। दोनों अब हम दोनों को देख रहे थे.... शायद कुछ अंदाजा लगाने की कोशिश थी कि हम साथ में हैं या फिर अलग अलग....

मैं अपने मोबाइल में बिजी होने का नाटक कर रही थी जबकि मेरा पूरा ध्यान उन लड़कों की हरकतों पर था। अभी वो लड़के कुछ समझ पाते कि अचानक मेरे साथ बैठा वह लड़का मुझसे बोला,

"मीनू, माँ को दवाई देकर आयी थी या भूल गयी...."

मैं हैरानी से उसे देखने लगी तो फिर वह गुस्से से बोला,

"मुझे पता था तुम भूल जाओगी.... मेरी माँ की भला तुम्हें क्यूँ फ़िक्र होने लगी।"

मुझे कुछ कुछ समझ आने लगा था....

"मैंने दवाई लता दीदी को बता दी थी वो दे देंगी। "मैं बस इतना कह पायी।

मगर हमारी बातें सुनकर दोनों लड़के सीधे होकर बैठ गये। तब तक किसी ने उन लड़कों की शिकायत कर दी थी और सिक्युरिटी टीम भी आ चुकी थी....उन लड़कों की अच्छी खासी क्लास लग गयी थी और अगले स्टेशन पर पुलिस ने उन्हें ट्रेन से उतार लिया था। उनके जाते ही ट्रेन में सबने सुकून की साँसें ली।

"माफ़ कीजिये, मैंने आपसे इस तरह बात की।" उस लड़के ने कहा

"कोई बात नहीं.... बल्कि मुझे आपको धन्यवाद कहना चाहिए कि आपने अपनी सूझबूझ से मेरी मदद की है "

"अच्छा सुनिये, रब के करम से मेरी माँ को फिलहाल दवाइयाँ नहीं चाहिए.... वो पुलिस में हैं।"

"तो इसका मतलब ये सिक्युरिटी टीम तुम्हारी शिकायत पर आयी थी।" मैंने हैरान होकर अंदाजा लगाया

" जी, आपने सही समझ लिया है। "वह पहली बार खुलकर मुस्कुराया था

" एक बात तो मुझे भी तुम्हें बतानी थी, मैंने लता दीदी को कोई नहीं बतायी थी। "मैं हँस रही थी

" जी, मैं समझ चुका था क्यूँकी मेरे कोई बहन नहीं है हम तीन भाई हैं.... औऱ मम्मी डैडी हैं। मेरे माता पिता दोनों पुलिस में हैं.... मेरा नाम आमिर है "उसने बताया

हमारा स्टेशन आ चुका था। ट्रेन से उतरकर उसने कहा,

" अगर इजाज़त दें तो आपको घर छोड़ दूँ। आज टैक्सी वालों की हड़ताल हो गयी है.... शाम को कोई झगड़ा हुआ था जिसमें कुछ पुलिस वालों ने टैक्सी वालों की पिटाई कर दी थी जिससे नाराज़ होकर वो सभी हड़ताल पर चले गये हैं।"

मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था.... मैंने बाबा को फोन लगाकर बाबा को सारी बात बता दी। बाबा ने आमिर से बात की और उससे पूछताछ करके तसल्ली करने के बाद मुझे उसके साथ आने की इजाज़त दे दी।

" वैसे आपके बाबा भी पुलिस वालों से कम नहीं लगे। "वह मुस्कुरा रहा था।

" दरअसल वो....।" मुझे कुछ जवाब नहीं सूझ रहा था।

"नहीं.... कुछ कहने की जरूरत नहीं है.... मैं बहुत अच्छी तरह समझ सकता हूँ.... मुझे आपका अपने बाबा को फोन करके सारी बात बताना और फिर उनका मुझसे सारी डिटेल्स लेना अच्छा लगा.... काफी समझदार हैं आप.... ये बिलकुल सही है आजकल बिना सोचे समझे जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। "

" बस यही रोक दिए.... मेरा घर सामने है। "मैंने उसकी बात काटते हुए कहा बाबा बाहर ही खड़े थे।

वह मेरे साथ गाड़ी से उतरा और बाबा के पास जाकर उन्हें सलाम किया

" अंकल,कैसे हैं आप? "वह मुस्कुराकर बाबा से पूछ रहा था

" मैं ठीक हूँ बेटा.... बहुत शुक्रिया। बेटा सुनो क्या आप रौशन खान को जानते हो.... "बाबा की पूछताछ में अभी शायद कमी बाकी थी।

"जी मेरे सगे मामू हैं। पर आप कैसे जानते हैं।" वह हैरान था

"अरे.... फिर तो तुम हमारे ही बच्चे निकले....वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है। तुम्हारी मदर का नाम सुनते ही मैं समझ गया था। "बाबा ने उसे गले लगाते हुए कहा

"जी मामू यहाँ से अगली कॉलोनी में ही रहते हैं।" उसने बताया

" हाँ, बेटा.... हमारी हफ्ते में दो चार बार मुलाकात हो जाती है।"

"अरे वाह.... फिर तो आप सबसे मुलाकात होती रहेगी। अंकल अब मैं चलता हूँ.... रात काफी हो गयी है। "उसने बाबा से कहा

"ठीक है बेटा, जाओ, घर पहुँचकर हमें भी फोन कर देना। मेरा नंबर ले लो। "बाबा ने उससे कहा तो उसने नंबर नोट कर लिया।

आज भी हम रोज़ की तरह साथ ही मेट्रो ट्रेन में बैठे थे.... आज भी वही मुख़्तसर सी मुस्कुराहट हमारे बीच रही। फिर अपने अपने मोबाइल में बिजी हो गए। लेकिन मुझे उसका बर्ताव हैरान कर रहा था....

इतनी जान पहचान निकालकर कोई वापस अजनबी जैसे कैसे बन सकता है। मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा.... आज फोन में ध्यान कम आमिर के बर्ताव पर ज़्यादा था। वह बहुत ख़ामोश बैठा था ऐसा लग रहा था जैसे कि बहुत टेंशन मेें है।

मेरी हिम्मत नहीं हुई कि उससे उसकी परेशानी और खामोशी की वजह जान सकूँ। हमारी वापसी भी उसी खामोशी और अजनबीपन के साथ हुई। मैं घर आ गयी थी।

" नाज़िया, जल्दी से तैयार हो जाओ, बाबा के दोस्त डिनर पर आ रहे हैं।" माँ ने बताया

"ठीक है माँ.... कुछ काम कराना है तो बता दिए...."

"नहीं बेटा तुम थकी हुई हो.... मैंने सब बना लिया है। बस तुम तैयार हो जाओ।"

मेहमान आ चुके थे.... सबसे दुआ सलाम के बाद मैंने डिनर लगा दिया था। बाबा के दोस्त की फॅमिली बहुत पढ़ी लिखी और अच्छी थी। हम सभी एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे।

बाबा अपने और उनकी दोस्ती के क़िस्से हम सभी को सुना रहे थे।एक हँसी खुशी का माहौल बना हुआ था।

बाबा के दोस्त के साथ उनकी बहन की फॅमिली भी आयी हुई थी। सभी बहुत अच्छे अख़लाक़ के मालूम हो रहे थे।

साढ़े दस बजे उन सभी ने जाने की इजाज़त ली.... फिर मिलने का वादा करके वो जा चुके थे। मैंने माँ के साथ पूरा किचन सही कराया और अपने रूम में आ गयी।

नमाज़ को देर हो रही थी तो मैं जल्दी से वुजू करके

नमाज़ पढ़ने आ गयी। नमाज पढ़के थोड़ा सा कुरान पढ़ रही थी तभी मुझे आमिर का ख्याल आ गया.... उसका बर्ताव आज मुझे दुखी कर गया था.... क्यूँ.... मुझे भी नहीं पता था। और इस वक़्त उसका ख्याल आना मुझे हैरान कर गया।

मैंने उस ख्याल से बाहर निकलकर दुआ करने के लिए हाथ बुलंद किये ही थे कि पास में रखे मोबाइल में आमिर का मैसेज दिखा....

" लेकिन क्या हम दोस्त बन सकते हैं"

मैं हैरान थी कि उसे क्या कहूँ उसने ऐसे वक़्त में अपनी हाजत माँगी थी जब मैं ख़ुद जा नमाज पर बैठकर अपने रब के सामने अपनी हाजतों के लिए हाथ फैलाये हुए थी।

दुआ माँगकर जल्दी से उसका मैसेज खोला....

"नाज़िया, मेरे कहने पर आज मम्मी डैडी आपके घर आये थे। उन्हें आप बहुत पसंद आयीं।मैं आपसे शादी करना चाहता हूँ.... मुझे आप बहुत पहले से पसंद थीं लेकिन उस दिन की मुलाकात ने जान पहचान कराकर मुझे ये फैसला करने में बहुत मदद की।

लेकिन इस फ़ैसले पर आपका भी पूरा हक़ है।आप इस बारे में सोच समझकर अपना फ़ैसला दे सकती है।आपका जो भी जवाब होगा मुझे मन्जूर होगा लेकिन क्या हम दोस्त बन सकते हैं।

आज सुबह आपसे बात नहीं कर पाया.... काफी टेंशन थी.... मम्मी डैडी को आपके घर भेजना था.... उसके बर्ताव के लिए मुझे माफ़ कर दियेगा।"

उसका मैसेज पढ़ते ही मुझे सारी बात समझ आ गयी.... मैं दौड़कर नीचे किचन में गयी माँ अभी भी वहीं थी

" माँ, ये लोग क्यूँ आये थे। "

" बेटा ये तुम्हारे रिश्ते के लिए आए थे। उस दिन जो लड़का तुम्हें घर छोड़ने आया था उसके वालिदैन हैं....तुम्हारे बाबा के दोस्त की बहन है। उन्हें तुम बहुत पसंद आयी हो और तुम्हारे बाबा को अमिर बहुत पसंद आया है।अब तुम्हारी मर्ज़ी हमें जानना है। "माँ मुस्कुराते हुए बोली

" माँ, जो भी आप फ़ैसला करें मुझे कुबूल होगा.... आप दोनों ख़ुश हैं तो मैं भी ख़ुश हूँ। "मैंने माँ के गले लगते हुए कहा

" मेरी प्यारी बेटी, मुझे अपनी बेटी पर नाज़ है। जाओ अब आराम करो.... कल उन्हें हाँ का जवाब देना है "माँ मुझे गले लगाते हुए मुस्कुराते हुए बोलीं

रात बहुत हो चुकी थी मैंने आमिर को कोई जवाब नहीं दिया।

आज फिर रोज़ की तरह मेट्रो ट्रेन में साथ थे.... आज इत्तेफ़ाक से सीट भी साथ में मिली थी। अभी कुछ देर गुज़री ही थी कि वही मनचलों की टोली उस ट्रेन में चढ़ चुकी थी। लेकिन आज बड़े शांत थे....।

सभी उनको देखकर मुस्कुरा रहे थे। हमारी सीट के पास आकर वो खड़े हो गये थे।आमिर हैरान सा मेरे जवाब का मुन्तजिर था....। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मैं ख़ामोश क्यूँ हूँ जबकि वह अपनी तरफ से सभी कुछ बता चुका था।

"आमिर, उस दिन आप ये कैसे कह सकते हैं कि आपकी माँ की देखभाल में मैं लापरवाही करुँगी.... कुछ बोलने से पहले आप सोच समझ लिया करें.... मेरी भी माँ हैं वो अब...." आखिरी लाइन पर मैंने ज़ोर देते हुए कहा

हैरान से आमिर को सब समझ आ गया था....। वह मेरे जवाब से इतना ज़्यादा ख़ुश था कि उसने अपने पास खड़े मनचलों के उस सरदार को कसकर गले लगा लिया जो उस दिन हमारी सीट के आगे वाली सीट पर बैठा था....

" बहुत शुक्रिया मेरे दोस्त, तू ना होता तो आज आमिर की बात ना बनती।"

वह हैरान परेशान सा आमिर से ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था। उस गरीब को पता ही नहीं था कि मेट्रो ट्रेन की एक छोटी सी प्यारी सी लव स्टोरी उसकी वजह से शुरू होकर happy ending तक पहुँच गयी है।



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