अगर तुम साथ हो..
अगर तुम साथ हो..
अगर तुम साथ हो..
"अगर तुम साथ हो तो हर मौसम प्यारा है चाहे दुख का हो या सुख का हो.सब एक ना दिन बदल जाना है पर तुम्हारे साथ से जो हिम्मत मिलती है वह नहीं बदलनी चाहिए.
तुमने साथ छोड़ दिया तो बिलकुल ऐसा होगा जैसे किसी मकान की नींव उसके नीचे से खींच ली गयी हो. "
रासुका जय की फोटो से बात करते हुए बोली.
" और भला मैं साथ क्यूँ छोडूँगा, ऐसी कोई वजह बनी नहीं है जो मैं अपनी रासु का साथ छोड़ दूँ. "जय उसके पीछे से आकर अपनी फोटो उसके हाथ से लेते हुए बोला.
" नहीं.. बस एक ख्याल दिल में था तो बोल दिया. "रासुका मुस्कुराते हुए बोली.
"अच्छा बहाने नहीं बनाओ.. मुझे लगता है कोई मुझे याद कर रहा था. "जय हँसते हुए बोला
" जी "रासुका भी हँसने लगी क्यूँकी जय उसकी चोरी पकड़ चुका था.
"जय, बेटा ज़रा अपनी माँ की हालत तो देखो, कैसी हो गयी हैं.. सारा रूप रंग दब गया है. "मौसी जी जय से बोलीं जो कुछ देर पहले ही अपनी बहन से मिलने आयीं थी.
" अरे मौसी जी, प्रणाम.. आप कब आयीं.. माफ़ कीजिएगा मैं सीधा यहीं अपने रूम में आ गया था."
"हाँ,, भाई अब तो यही रूम खास है और बाकी रूम में तो अब फिजूल सामान है. "मौसी जी बहुत मीठे लहजे में मजाकिया तंज़ करते हुए बोली.
"मौसी जी ऐसा आप सोच रही है और कह भी रही हैं. मैं और रासु ऐसा नहीं सोचते हैं. "जय अपने गुस्से को दबाते हुए बोला
" लो दीदी.. सुन रही है अपने लाडले की बात.बड़ा लड़का तो पहले ही अलग हो गया है अब ये भी जोरु के गुलाम हो गए हैं." मौसी जी चिढ़कर बोली
"मौसी जी आप इसकी जिम्मेदार हैं, हमारे घर में क्लेश बाहर वालों की वजह से हुआ है.. भाई भाभी आज भी माँ बाबा के लिए रोते हैं..वो आपकी वजह से घर छोड़कर गये हैं क्यूँकी माँ आपको कभी यहाँ आने से मना नहीं करेंगी और आप हर बार आकर उनके बीच झगड़े डलवाने की पूरी कोशिश करती रहती. मैं भी उन दोनों को गलत समझता था उसकी वजह भी आप थी.
अगर भाई मुझे सब सच नहीं बताते और अपनी शादी के बाद मैं ये सब अपनी आँखों से नहीं देखता तो कभी पता ही नहीं चलता कि हमारे घर की सुख शांति छीनने की आप जिम्मेदार हैं."जय भड़क गया था
"जय बस चुप हो जा.. अब एक और शब्द तूने मौसी को कहा तो अच्छा नहीं होगा. "माँ गुस्से से चिल्ला पडीं
" माँ, आपने आस्तीन में साँप पाल रखे हैं.. ऐसे अपना अपना नहीं होता जो अपनों के बसे बसाये घर तोड़ने की कोशिश में लगा रहता हो. माफ़ी चाहता हूँ मैं आज चुप नहीं रहूँगा.."जय बहुत गुस्से में था
" निधि तुम ही चुप हो जाओ. "सविता ने अब दूसरी तरफ से बात सम्भालने की कोशिश की क्यूँकी वह जय को जानती थी
उसके गुस्से पर इतनी आसानी से काबु नहीं पाया जा सकता था.
" हाय, दीदी कैसी बहन हो, औलाद की मोहब्बत बहन की मोहब्बत पर भारी पड़ रही है क्या" मौसी अब रोने का नाटक शुरू कर चुकी थी
" बस निधि, सविता.. तुम लोग बस करो, यश के जाने पर मैंने कुछ नहीं कहा मुझे लगा वह गलत था लेकिन अब जय के साथ भी वही सब नाटक तुम लोगों ने शुरू कर दिए तो मुझे समझ आ गया कि यश गलत नहीं था. बहुत हुआ अब..
नए रिश्ते परिवार बढ़ाने के लिए और खुशियों के लिए बनाए जाते हैं लेकिन तुम लोगों ने ये कैसे रिवाज बना लिए कि नये रिश्ते बनते ही लड़ाई झगड़े उठा दिये जाते हैं.. परिवारों में मोहब्बत बढ़ने से पहले ही नफ़रत बोने लग जाते हो.
माँ और पत्नी में मुकाबला खड़ा करने में ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा देते हो. क्या तुम्हारी अक्लें घास चरने गयी हुई हैं. माँ और पत्नी पुरुष के लिए उसके दो हाथ की तरह हैं इन दोनों के सहयोग से,इनके साथ मिलकर ही वह कामयाब हो सकता है.. कभी किसी को अपने एक हाथ के लिए अपने दूसरे हाथ से लड़ते हुए देखा है.. नहीं.. तो फिर यहाँ इन रिश्तों के बीच आग लगाने का क्या मतलब होता है.. इसका सीधा मतलब तो यही होगा ना कि आपको अपने भांजे की खुशी प्यारी नहीं है.
देखो सविता बहन का साथ दो.. अपने लोगों को समझो लेकिन वक़्त के साथ जब खुद का घर हो जाता है तो इसकी एक हद बन जाती है.. अपने घर को बिखेरकर मैं तुम्हें अपनी बहन का साथ देने की इजाजत बिलकुल नहीं दूँगा. "प्रोफेसर जिलानी अपनी बीवी और उनकी बहन से आज सख्त नाराज हो गए थे.
" यश और बहू वापस घर आ रहे हैं.. उनके स्वागत की तैयारी करो. मैं और जय बहुत कोशिशों के बाद यश को वापस लाने में सफल हुए हैं. अब मुझे मेरे घर में किसी भी बाहर वाले का दखल बिलकुल नहीं चाहिए. जिसे आना है आराम से आये लेकिन मेरे घर में आग लगाने की अब मैं किसी को इजाज़त नहीं दूँगा. "
निधि और सविता हैरान परेशान से ख़ामोश बैठे थे. सविता के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव आ जा रहे थे जबकि निधि ज़ख्मी नागिन सी गुस्से से बाहर चली गयी.
आजकल हक़ीक़त में भी घरों में हालात कुछ अलग नहीं हैं. इन मामलों को बहुत जरूरत है कि समझदारी से सुलझा लिया जाये. बहुत सारी जिंदगियों की खुशियाँ किसी एक नासमझ की सोच से दाँव पर लग जाती है.
हमेशा याद रखना चाहिए ख़ुशियाँ बांँटने से ही बढ़ती है.