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Akanksha Srivastava

Abstract Inspirational Others

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Akanksha Srivastava

Abstract Inspirational Others

खतरे की घण्टी

खतरे की घण्टी

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आख़िर ये खतरे की घण्टी बजाई किसने? ये ख़ौफ़ का मंजर आया कैसे? ये किसकी नजर लग गयी इस धरती पर जो आख़िर जीवन जीना ही मुश्किल हो गया। मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन ने इस कठिन समय में देश को एक टैग लाइन दिया #"मुश्किल बहुत है मगर ....वक़्त ही तो है, गुजर जाएगा।" पिछले एक साल में हमारी दुनिया बदल- सी गयी है। लाखों लोगों की जान जा चुकी हैं। लाखों लोग महामारी की चपेट में है। हर देश, हर घर कोरोना के कहर से कहरा रहा है। एक ऐसी महामारी जो चीन के वुहान से शुरू हुई और धीरे- धीरे आग की लपटों से भी तेज पूरे संसार पर हमला बोल दी। हर तरफ मौत का ख़ौफ़ छा गया। यह मंजर बेहद दर्दनाक और खतरनाक हो रहा, जहां लोगों को वक़्त और दिन बिताना मुश्किल हो रहा। सरकारे अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए लगातार जद्दोजहद कर रही। हर शहर पर तालाबंदी की स्थिति उत्पन्न हुई। हर किसी का रोजगार छीन गया। दुनिया भर की उड़ाने रद्द कर दी गई।तमाम ट्रेनों की रफ़्तार थाम दी गयी। हर देश, हर शहर मे बौखलाहट और घबराहट फैल गया, तमाम लोग अपनी जान को बचाने के लिए अपने घर की ओर पलायन करने लगे। ऐसा वक्त जब हर तरफ भागमभाग की परिस्थिति बन गयी लगा देश में जनता कर्फ्यू नहीं अपितु किसी बड़े से राक्षस ने उन्हें निगलने के लिए हमला बोल दिया हो। उस वक्त तमाम मौतें हुई कुछ भुखमरी और घबराहट से मर गए। कुछ सरकार व तमाम समाज सेवियों के जरिए अपने घर सुरक्षित आ गए। एक ऐसी विषम परिस्थिति जहाँ हर देश तनाव और नकारात्मक स्थिति में है। किसी को कुछ नही सूझ रहा।अचानक सारी पॉजिटिविटी सकारात्मक से नकारात्मकता की ओर रुख कर गयी बस रह गया तो सिलसिला मौतों का। ना बूढ़े-ना जवान, बच्चे, कोई नही सुरक्षित। हर देश मे सन्नाटा पसर गया। हर शख्स अपने ही घरों में कैद होने को मजबूर हो गया। लाखों लोग क्वेरेटाइन में जी रहे। स्थिति और हालात बेकाबू हो चुके है हर न्यूज़ चैनल अखबार महामारी के आंकड़ों से पट चुके है। लोग भी इस महामारी से उबरने के लिए लगातार जूझते रहे। इस वायरस की वजह से दुनिया भर के लोग मुश्किल हालात का सामना कर रहे। कोरोना वायरस संक्रमण और इसकी वजह से मरने वाले आंकड़े रोजाना तेजी से बढ़ रहे। अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी। इन्हीं बीच कई देशों में तालाबंदी की स्थिति जब उत्पन्न हुई तो उसमें भारत भी शामिल था। उस वक्त भले ही हर रोज भागमभाग वाला सफर अचानक से घरों में कैद हो गया लेकिन इन्हीं बीच कुछ बदलाव हुआ वो ये की प्रदूषण के स्तर में कमी आई। तमाम कारखाने व सड़कों पर रफ्तार भरने वाली तमाम परिवहन पर रोक लगने से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में कमी पाई गई।

जिस देश में रिश्ते टूट कर बिखर रहे थे घर परिवार टुकड़ों में परिवर्तित हो रहे थे आज वो रिश्ते सालों बाद एक बार फिर जुड़ गए थे। इसकी वजह थी ये महामारी। कुछ दिन लगा कोरोना कुछ ही दिनों का मेहमान है। वक़्त पहले के स्थिति जैसा तो नहीं लेकिन थोड़ा सँभलना शुरू कर दिया अफसोस इसी सोच पर कोरोना ने एक बार फिर हमला बोल दिया।

               कोरोना का यह दूसरा कहर हर देश के घर घर को चीख पुकार से भर दिया। टीवी चैनलों और अखबारों के लिए ये अनगिनत मौतें आंकड़ों को बता पाना मुश्किल हो गया। चरमराई अर्थव्यवस्था को देखते हुए सरकार ने तमाम नौकरी पेशा को वापस से शुरू किया। इन्हीं के बीच भारत के साथ ही साथ अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने कोविड से बचाव के लिए टीके बनाए। देश के हर नागरिक को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने टीकाकरण का कार्यक्रम तेजी से बढ़ाया। लेकिन यह मुश्किल दौर और भी मुश्किल भरा हो चुका है। जहां लोग एक दूसरे को सांत्वना देने के लिए यह कहते कि पॉजिटिव सोच रखे, हिम्मत ना हारे। आज इस कमरकस महामारी की दूसरी लहर ने हर किसी को लोहा मनवा दिया। बहुत से अपनो को हर पल जाते हुये सुनकर मन सच मे बहुत दुखी है। अधिकांश जानने वाले रिश्तेदार , दोस्त, नजदीकी कोविड से जूझ रहे। बहुत से हमें छोड़कर चले गए। अन्तर्रात्मा अब चीत्कार भर रही क्या होगा आखिर इस देश का?जब परिस्थितियां काबू में थीं, तो अचानक क्या चूक हुई कि महामारी का यह भयावह रूप देखने को मिल रहा। सोशल साइट्स पर हर तरफ मदद की गुहार और फेसबुक पर मरने वालों की तस्वीरें। हर देश हर शहर एम्बुलेंस के सायरन से और अस्पताल का मंजर चीख-पुकार गुहार और पॉजिटिव लाशों से पटा पड़ा है। बड़ा ही विचलित परिस्थिति है जहां हर कार्य करते हुए निहत्थे से साबित हो रहे। सोच पॉजिटिव रखते हुए भी ख़ौफ़ में जी रहे कि आखिर कब किसका अगला नंबर लग जाए कोई नहीं जानता। यह एक बहुत ही अजीबोगरीब समय है जहां सिर्फ गरीब ही नही बल्कि पैसों वालों का भी नहीं चल रहा सारी अकड़ धराशायी हो रही।

कहीं लोग जान बचाने वाले चिकित्सकों पर उंगली उठा रहे। तो कही लोग भारत में हो रही चुनावी रैलियों पर उफ्फ़ जता रहे। यह मुश्किल समय अपनो से दूर कर रहा, अपने बिछुड़ रहे और भय भावनाओं में जी रहे लोग अब सिर्फ मौत का मंजर देख रहे। कोई ऐसा घर नहीं बचा चाहे वो आम नागरिक हो या डॉक्टर्स, नर्स, कर्मचारी, शिक्षक, पुलिस, नेता- अभिनेता मंत्री, सब के यहाँ मातम का साया है। कितना अजीब है कि शादी-विवाह के कार्ड की भरमार होती थी आज कल के समय, इसकी जगह शांति पाठ और तेरहवीं के पत्र का अंबार लगा है, लेकिन इस विषम परिस्थितियों में लोग दुःख में भी साथ नहीं है। श्मशान घाटों पर जगह नहीं। डेथ सर्टिफिकेट का भरमार हो रहा। कितने लोग असमय चले गए। जिन्होंने अभी जिंदगी की शुरुआत ही कि थी। यह सब देख मन बहुत दुखी है कि कैसे इस परिस्थिति से उभरना है क्योंकि आप अकेले नहीं है। भविष्य की निश्चितता रखना है। यह सोच बरकरार रखनी है कि मैं ठीक हूँ!

वक़्त है डर कर नहीं डट कर जीने का क्योंकि डरने से हमारी इम्युनिटी पॉवर कमजोर पड़ती है और हमारा शरीर इस वायरस से लड़ने की ताकत में असहाय हो कमजोर हो जाता हैं। कहना भले आसान है कि डरे नही डट कर रहे लेकिन यह कहना भी बेहद जरूरी है कि लापरवाही ना बरते। क्योंकि कब तक प्रशासन आपको सचेत करेगी। कब तक ये सिस्टम और डॉक्टर आपको इस महामारी से सचेत करेगा। उनके भी घर परिवार नाते रिश्तेदार है।आप क्यों नहीं मास्क और दो गज की दूरी बरकरार रखते। आज देश विषम परिस्थितियों से जूझ रहा ऐसे में देखा जाए तो तमाम जगहों पर तमीरदार इंसानियत खो चुके है। आज खुद पर पड़ने वाली मुसीबत ही उन्हें मुसीबत दिखती हैं और पेशे से चिकित्सक होने वाले डॉक्टर पर कोई मुसीबत उन्हें नही दिख रही। मरीज की मौत होने पर लोग चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों पर सवाल उठा रहे। इतने भयावह मंजर में भी वीडियो बना कर सोशल साइट्स पर वायरल कर रहे। ऐसे लोगों से एक छोटा सा सवाल है मेरे भीतर यदि आप इन सब चीजों में जब इतने एक्टिव है तो क्यों नहीं मास्क लगा रहे खुद का ख्याल रख रहे की आपको इन अस्पतालों की हालात पर गुस्सा फूटना ही ना पड़े। ना ही इन चिकित्सकों पर उंगली उठाना पड़े की आखिर क्यों वो मरीज को नही बचा पा रहे। आपको इतने सारे खबरों और चरमराई अर्थव्यवस्था की जानकारी तो होगी ही ऐसे में देश का स्वास्थ्य मिनिस्ट्री ध्यवस्त होता हुआ दिख रहा। क्योंकि ना तो ऑक्सीजन गैस सिलेंडर पर्याप्त है ना ही दवाएं। क्या इन दोनों की कमी चिकित्सको की लापरवाही से है। शायद नही, क्योंकि एक चिकित्सक का कार्य मरीज का समय पर उपचार करना है ना कि ऑक्सिजन और दवाओं को इकट्ठा करना। देखा जाए तो जहाँ एक तरफ सरकार और चिकित्सक लोगो से लगातार अपील कर रहे कि अपने घरों में रहे जरूरत पड़ने पर ही बाहर निकले। मास्क लगाए, दो गज की दूरी बनाए। लेकिन ये लापरवाही की आंधी ना जाने कैसे इस देश मे आ गयी है, जो कल तक जान को बचाने के लिए तमाम औषधियों पर भरोसा कर गए वो आज भला इतने लापरवाह कैसे हो रहे। लोगो ने मास्क लगाना, दूरी बनाना, बचाव से रहना क्यों छोड़ दिया। क्या किसी ने कहा कि ये महामारी नहीं राजनीति है? वाह खूब कहा आपने। यदि इतने समझदार है तो प्रशासन पर चिकित्सकों पर फिर क्यों उंगली उठाना? अगर आप इतने ही समझदार है तो क्यों नहीं घर पर ही प्रीकॉसन लेते। क्यों चिकित्सकों पर उंगली उठा रहे उनसे जवाब देही मांग रहे कि हमारा मरीज मौत के मुंह में कैसे गया। किसी चिकित्सक ने अपने जीवन का दस साल और यह भयावह समय में अपनी जान पर खेलकर आपके साथ बिता रहा। क्या डॉक्टर के परिवार नहीं होते। क्या इस कठिन परिस्थिति में एक दूसरे पर तू-तू में-में करना सही है। शायद नहीं। क्योंकि भारत की संस्कृति यह नहीं भारत वो मजबूत देश है जहां की बयार एकता है।

मैंने कुछ दिन पहले किसी के मुख से सुना की इस परिस्थिति में भगवान भी मौन है? सरकार राजनीति करने में जुटी है। उन्हें देश मे फैली महामारी की चिंता नहीं। उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर के इंतजाम की फिक्र नही उन्हें बस अपनी रैलियों की पड़ी है। इन तमाम बातों को जब मैं सुनती रही तो मन मे एक ही ख्याल आया कि हम कितने असहाय नहीं अपितु स्वार्थी हो गए है। क्षमा करिएगा, आज धरती की स्थिति का जिम्मेदार देश का क्या पूरे संसार का नागरिक जिम्मेदार है। हम इतने स्वार्थी है कि हमने बड़ी सरलता से भगवान के मौन रहने पर उंगली तो उठा दिया लेकिन क्या उसका कारण जानना चाहा। भगवान ने ही इस संसार को बनाया तमाम उन चीजों को बनाई जो कि मानव से जुड़ी हुई है। हम लाख अंतरिक्ष पर उड़ान भर ले चंद्रमा पर जमीन खरीदने की सोच रख ले लेकिन क्या हम भगवान का दिया हुआ तोहफा बना सकते है नहीं। यह एक बहुत बड़ा सवाल है। प्रकृति संसार का नियम है नियम ही हमारे देश की संस्कृति। जी हां , हम मानव आज इतने खुद्दार हो चुके है कि हमें सही गलत की परख रखना भी भूल गया। आज धरती पर मचने वाली त्राहि के जिम्मेदार, कोई और नहीं हम मानव ही है। यदि हम थोड़ा राजनीति पैतरे से हट कर समझने की कोशिश करे तो हम ही इसके जिम्मेदार है। आज ना तो शुद्ध हवा है , ना पीने का पानी। हमने पर्यावरण शब्द को किताबों में ही दर्ज कर दिया है। सारे पेड़ कट गए है । नदिया सूख गई, या तो दूषित हो चली है। आज पीने का पानी शुद्ध नहीं रहा हम बिसलेरी या आरो का पानी पी रहे। जी हाँ अवाक रहने की जरूरत नहीं। हम सब जानते है कि हमारा पर्यावरण अब वैसा नहीं जैसा पहले था। हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमें नीले आकाश व स्वच्छ जल व शुद्ध वायु को ही जिया है जिनकी उम्र सौ साल हुआ करती। आज के समय में मृत्यु की उम्र साठ फिर पच्चपन हुई और अब चालीस और उससे भी कम। आज हमने प्रकृति और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करके खुद के लिए ये मुसीबत बनाई है। देश मे दमा, टीबी, क्षय रोग की वृद्धि हो रही। क्योंकि ना तो शुद्ध हवा है ना ही जल। अगर है तो बस प्रदूषण का धुंध। अब चुप्पी क्यों है। जब हम पृथ्वी के वायुमंडल और तमाम जीवजंतुओं और पेड़ पौधों नदियों को नष्ट कर रहे थे तब हम हमारी मानसिकता क्यों नहीं सोची की इसका परिणाम क्या होगा। क्या पृथ्वी पर बिना जल वायु के जीवन है। यह गम्भीर संकट का समय यदि यही नहीं थामा गया तो ना जाने आने वाले समय में इस संसार का क्या होगा। क्योंकि वायु प्रदूषण को यही नहीं थामा गया तो हर वर्ष ही ऐसी ही अनेको महामारियां निगलती रहेगी। इस महामारी को न्यौता हम मानव ने दिया है । तमाम पेड़ो को काटकर लाखों कारखानों को जगह दिया गया। तेजी से बढ़ते वाहनों की संख्या जिससे निकलने वाले कार्बन मोनोऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड , नाइट्रोजन ऑक्साइड व तमाम चिमनियों से निकलने वाले धुओं ने कैसे इन नीले दिखने वाले अम्बर को इन तमाम विषैली गैसों से काले धुंध में बदल दिया। जरा सोचिए। अब वक़्त ये नही सोचने का कि इसमें गलती किसकी है। इसमें गलती हम सभी की है। ऐसे वक़्त में राजनीति और उंगली उठाने के बजाए, सोशल साइट्स पर वीडियो वायरल करने बजाय देश को प्रदूषित होने से बचाए। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थितियां और नाजुक हो जाएगी। क्योंकि यह परिणाम बिगड़ता प्रदूषण का रूप है। भगवान ने अपनी आंखें मूंद कर नहीं अपितु अति का अंत करने के लिए चुप्पी साध रखी है। इंसानियत के तौर पर हमारे पास अभी भी वक्त है कि अपनी आँखें खोल लेनी चाहिए और पेड़ लगाना चाहिए। जिससे अभी भी वक़्त रहते तमाम जिंदगियां बच जाएगी जो आज तमाम मौतें हो रही वो ऑक्सीजन की कमी से हो रही। क्योंकि ना तो हमारे पास शुद्ध वायु है ना पेड़ ना ही समय। इन्हीं तीनों ने हमें आज इस परिस्थिति में ला दिया है। जरा सोचिए इस भयावह मंजर को किस तरह लोग कोरोना की चपेट में आते ऑक्सीजन लेवल खो दे रहे। मौके पर ऑक्सीजन सिलेंडर ना मिलने पर तमाम लोग दम तोड़ रहे। कही ऐसा ना हो जाए कि कल को हम बोतल में भरा ऑक्सिजन भी खरीद कर लें। क्योंकि यह बढ़ता पॉल्युशन न तो हवा शुद्ध रखा ना पानी। अब भी समय है राजनीति और ब्लेम लगाने के बजाय धरती को सुरक्षित रखने का। मुंह पर मास्क लगाना कितना घातक है ये सबको पता है। खुद की जहरीली सास वापस लेना मौत को न्योता देना है। जब शुद्ध सास नहीं लेंगे तो अस्थमा दमा, के मरीज होकर खुद मर जायेंगे ऐसे समय में कोरोना से कम ऑक्सीजन लेवल कम होने से ज्यादा मौतें हो रही। मैं ये नहीं कहती कि आप मास्क ना लगाए। समय को देखते हुए मास्क लगाए लेकिन ये जरूर कहती हूँ कि इस बिगड़ते पर्यावरण के जिम्मेदार कोई और नहीं हम ही है। हमारी इम्युनिटी पॉवर कितनी भी क्यों ना हो जब हम शुद्ध हवा नहीं लेंगे तो हमारे शरीर का ऑक्सीजन लेबल खुद ब खुद कम हो जाएगा। अभी भी वक़्त है पेड़ लगाए जान बचाए।



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