Akanksha Srivastava

Inspirational Others

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Akanksha Srivastava

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वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

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जन्नत लगती है दुनिया माँ

जब तेरी गोद मे सर रख सोता हूँ,

प्यार तुझसे इतना है माँ

नाप भी नही सकता हूँ......नम - छलकते आंसुओ से वृद्धाश्रम के चैनल को पकड़े माँ घुट घुट कर रो रही ,अपने बच्चे को याद कर रही जब मेरा बेटा मेरी गोद मे आया था तब सारी दुनिया न अच्छी लगती थी,करती थी इतना प्यार तुझसे जब तू नव महीनें मेरी कोख में उछला कूदा किया करता था। लगे न नज़र तुझे दुनिया से बचा के रखती थी...,हर रोज नींद उड़ा कर खुद की तुझे काले टीके से बचाए रखती थीं।तेरी हर खुशी तेरे हर गम को प्यार से पूरा किया करती थी। न जाने क्या गलती हो गयी आज मुझसे जो तू ने निकाल दिया मुझे मेरे चौखट से,न जाने क्या होगया मुझसे कि जिसकी सजा इतनी बड़ी सुना दी तूने। न जाने क्या कमी रह गयी मुझसे.....आँसू को पोछते हुए सूरज की माँ वृद्धाश्रम के चैनल को पकड़ रोती रही। बार बार उसकी भीतरी दिल की आवाज चीखती रही,आज का दिन तो तुझे हमेशा से याद रह करता था,इस दिन तू पूरे दीवालों को अपनी बचकानी पेंटिंग से सजाया करता था,रात को आंखों पे काली पट्टी बांध मुझे उस रूम तक ले जाया करता था, फिर क्यों आज ही के दिन तूने मुझे काली पट्टी बांध इन अंजानो के पास छोड़ गया। आखिर क्या भूल हुई मुझसे जो तूने मुझे इतनी बड़ी सजा सुनाई।


ये वो माँ है,जिसने अपने बच्चे को बहुत लाड़ प्यार से बड़ा किया। शायद यही नही ,सूरज जैसी सभी की माँ अपने जान से ज्यादा अपने बच्चे को संभाल के रखती है,उसके सुख दुख,रोना हँसने,को बखूबी पहचाना करती है....;फिर हम क्यों अपने ही माँ को अपने से दूर उन अनजान लोगों के पास छोड़ आते है,जहाँ न तो कोई उसका अपना होता है न ही वो अपने को वहाँ जोड़कर रह पाती है। हम सब अपनी माँ से उम्दा ,बेपनाह प्यार करते है, फिर ये कौन लोग है जो अपनी ही माँ को वृद्धाश्रम के चौखट पर छोड़ आते है,आख़िर क्यों??

क्या मातृदिवस सिर्फ सेल्फ़ी पुरानी यादों को सोशल साइट्स पर अपडेट करने के लिए होता है।शायद,नही मातृ-दिवस हर साल माँ और उसके मातृत्व को सम्मान तथा आदर देने के लिये मनाया जाता है। क्योंकि माँ ही वो शख्स है जो हमसे सच्चा प्यार करती है,दुनिया मे आपको हर कोई धोखा जरूर दे सकता है लेकिन माँ नही। माँ से हमारी शुरुआत होती है,तो फिर क्यों हमें अपनी ही माँ एक समय के बाद बोझिल लगने लगती है। बचपन की पहली कलम माँ के हाथ होते है,और हमारे कदमो को हौंसला ओर सहारा देने के लिए भी वो हमारी माँ के ही हाथ होते है।तो क्यों हम अपनी ही माँ को वृद्धाश्रम के चौखट पर छोड़ उसको भूल जाते है ,आख़िर क्यों???


आज हम सभी मातृ दिवस मना जरूर रहे,लेकिन क्या हमने सोचा कि वृद्धाश्रम की माँ भी हम में से ही किसी की माँ है। उन्हें कौन विश करेगा। उनके सपनों को कौन सजाएगा। ऐसी क्या मजबूरी आ जाती है कि हम अपने ही पेरेंट्स को वृद्धाश्रम के चौखट तले छोड़कर मुड़कर भी नही देखने जाते क्यो???आज के बदलते समाज की ये एक कड़वी सच्चाई है। जिस सच्चाई से कोई मुकर नहीं सकता। आज जिन काँपते हाथों को आपकी जरूरत है,सूरज जैसे लोग उन्हें वृद्धाश्रम के चौखट पर छोड़ जाते हैं।

मैं ये लेख आज इसलिए लिख रही हूं क्योंकि आजतक अखबारों के पन्नों और फिल्मों के सीन में ही ये होते देखा,लेकिन जब आज अपनी आँखों से देखी तो दिल पसीज गया,मानो जैसे किसी ने दिल पर चोट लगा दी।आज मैंने उस दर्द को स्पर्श किया,उन कपकपाते हाथों से ,मुच् मुचाती आँखों से टटोल कर प्यार से कहना मेरे बच्चे तुम आगए। सच,आँखों से आँसू गिर गए। इतनी तकलीफ़ जीवन मे कभी न हुई जो आज देख कर हुई हैं। क्यों हमारा दिल पत्थर बन जाता है कि हम अपने माँ बाप को उन काल कोठरी में बंद कर देते हैं। क्यों हमें उनका दर्द महसूस नही होता,जिन्हें हमारे न बोलने पर भी सब कुछ समझ आ जाता हैं।

आज के बदलते समाज को ये एक करारा चाँटा है, पर क्या पता इसको आखिर कौन समझेगा? ज़रा आप भी सोचिए; कि एक माँ की ऑंखों में अपने बढ़ते बच्चे को देखकर कौन-सा सपना पलता है?

जब एक माँ अपने मासूम को ऊँगली थामकर चलना सिखाती है, तो दिल की गहराइयों में कहीं एक आवाज उठती है, एक सपना पलता है कि आज तेरी ऊँगली पकड़कर मैं तुझे चलना सीखा रही हूँ, और कल जब मैं बूढ़ी हो जाऊँ, तो तू भी इसी तरह मेरा हाथ थामे मुझे सहारा देना। लेकिन बहुत ही कम ऐसे भाग्यशाली माँ -बाप होते होंगे, जिनका ये सपना सच होता होगा।आज के समाज का आईना है ये जनाब ,जिस तरह जर्जर समान का हमारे जीवन मे कोई महत्व नही होता,आज उसी तरह घर के चार दीवारी के भीतर बुजुर्गो का भी कोई सम्मान नही होता। बहुत कम ही लोग ऐसे है जो अपने माँ बाप को सम्मान देते हैं।हम हमेशा एक ही शिकायती पुड़िया लिए घोलते रहते है कि वे समय के साथ नहीं चलते, सदैव अपने मन की ही करना और कराना चाहते हैं।उन्हें जो भी तजुर्बा है,उसे अपने बच्चों पर लादना चाहते हैं,जो आज के इस बदलते परिवेश को कहि न कही नही पसन्द।

आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी,#बच्चें बूढ़े एक समान#तो फिर क्यों भूल जाते है हम कि बुढ़ापे के साथ बचपन भी आ जाता है और शायद, एक बार बच्चों को सँभाला जा सकता है,लेकिन बुजुर्गों को सँभालना बेह्द मुश्किल।

आज वृद्धाश्रम को देख लगा कि आज हमारे माँ,और बाप किसी बुजुर्ग धरोहर से कम नही।यदि आज हमसे कुछ गलत हो रहा, तो इसे बताने के लिए इन बुजुर्गों के अलावा कोई नही?आज का सच बेह्द कड़वा लगे आपको,लेकिन बुजुर्ग हमारे साथ बोलना,बतियाना चाहते हैं, वे अपनी कुछ कहना चाहते हैं और हमें सुनना। शायद हमारे पास उन्हें सुनने का समय नहीं, इसीलिए हम उनकी सुनने के बजाए अपनी सुनाना चाहते हैं।सरकार तो उन्हें नवजीवन दे देती है लेकिन क्या वो सही हैं??क्या हमारे माँ के लिए वृद्धाश्रम सही है??आज हम अपनो को ही वृद्धाश्रम में कैद करवा घर के चार दीवारी के भीतर ठंडी हवाओं में चैन की सांस ले रहे....ये सासे कितनी सही है आप भी जरूर सोचें?


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