हमसफ़र बन गयी डायरी
हमसफ़र बन गयी डायरी
क्या अधिक भीड़ मे हम आप कही खो गए है। आज भारत मे हर युवा अपनी ही जीवन की माया में उलझा हुआ है उसको सुलझाने में। उन्ही में से एक माया ओर प्रवीन जो कि दिल्ली के रहने वाले है। आज ही वो कुछ यही दो दिनों के लिये गणेश उत्सव में सम्मिलित होने को आये है। उनको देख घर मे जोर शोर का हंगामा मचा हुआ था,अरे अरे जल्दी करो,प्रवीन लोग आते ही होंगे। प्रवीन की माँ अत्यंत विचलित थी मानो बरसो बाद उनका चिराग घर आ रहा हो।
पच्चीस मिनट बाद दरवाजे पर हॉर्न बजा,अरे लगता है प्रवीन लोग आ गए। अरे ,कोई दरवाजा जा कर खोल दो। अरे पवन की माँ बहु का सत्कार करो ,जरा आरती की थाल ले कर आना तो इतनो दिनों के बाद तो दोनों घर आये है।
पवन की माँ यानी माया की जेठानी सुनंदा ने अपनी सासु मा को जाते हुए कही..,जी माँ आप बैठिए परेशान मत होइए।
सुनंदा दरवाजे पे जा ज्यो खड़ी होती है उसे कुछ अटपटा लगता है,की अरे माया किन हालो में आई है। सब ठीक तो है। माया सुनंदा को देख सिर्फ मुस्कुरा कर प्रणाम करती है। सुनंदा दोनों की आरती कर घर मे प्रवेश करवा गणपति के पास ले जा दर्शन कराती हैं।
प्रवीन सुनंदा से बोलते हुए,वाह भाभी आपने तो इस साल बहुत ही उम्दा सजाया है,ये रंगोली आप ने बनाई सुनंदा मुस्कुराती हुए बोलती है सारी बाते अभी कर लोगे प्रवीन चलो माँ से तो मिल लो कब से बेचैन है।
प्रवीन ओर माया माँ के कमरे में जाते है,माया का हुलिया देख प्रवीन की माँ चकित हो जाती है कि ये कैसे हुलिए को बना कर आई हैं।
ख़ैर,सुनंदा बात को संभालते हुए बोलती है माँ आप थोड़ा प्रवीन से बात करिए मैं माया को रूम में ले जा रही रात भर सफर करके आई है थक गई होगी। प्रवीण की माँ हा ठीक है।
उनकी नजर तब तक माया पे रही जबतक माया रूम से बाहर न चली गयी। माया के जाते माँ ने प्रवीन से धीरे से पूछा बेटा सब ठीक है न।
प्रवीन ने मा का हाथ थामते हुए बोला जी माँ ,थोड़ा तबियत उसकी ठीक नहीं है,सब ठीक है आप परेशान मत हुआ करिए फ़ालतू।
देखिए सोच सोच कर ही सबकी चिंता कर के ही आज आप इस उम्र में बीपी की शिकार हो गयी क्यों सोचती है,सब ठीक है।
अच्छा अच्छा,जान गई सारी पढ़ाई का पाठ मेरे ऊपर चला रहा है तू। गणपति के दर्शन किये तुम लोगो ने हा माँ। अच्छा जा तू भी फ्रेश हो ले। मैं सुनंदा को बोलती हु खाना लगाने को।
जी माँ , प्रवीन बोलते हुए ज्यो बाहर निकला उसने देखा माया सुनंदा भाभी से कुछ उंगली दिखा कर कह रही थी। भाभी अवाक हो चुपचाप चुप्पी साधे खड़ी हुए थी।
प्रवीण भाभी क्या हो रहा। सुनंदा अरे कुछ नहीं अच्छा आप लोग फ्रेश हो लो फिर मैं खाना लगा देती हूं।
दोनों कमरे में गए। बीस मिनट बाद भाभी ने दस्तक दी,खट खट प्रवीन ने दरवाजा खोला ,अरे भाभी चाय ला दी आह अब तो थकान दूर हो जाएगी। सुनंदा ,अरे माया अभी नहा रही क्या ह्म्म्म, आप मेज पर ही रख दीजिए। ठीक,ज्यो सुनंदा ने मेज पर चाय रखने के लिए डायरी को खसकाया तुरंत ही वह जमीन पर गिरी,सुनंदा ने चाय को रख उसे प्लेट से ढकते हुए ज्यूँ डायरी को उठाया ....दो पल को चौक गयी।
उस पर लिखा था,प्रवीन नहा लेना तो बता देना, उसके ठीक नीचे लिखा था मैं नहा लिया हु,अच्छा होगा कि तुम कुछ दिन ये सब बन्द कर के घुलमिल कर रहो,वरना मैं माँ को भाभी को क्या जवाब दूंगा। तभी बाथरुम के दरवाजे खुलने की दस्तक हुई सुनंदा ने तुरंत डायरी को पलंग पर रख प्रवीन से बोली ...ताकि माया को शक न हो।
अरे पहले ये बताइये की मेरे लिए वहाँ से क्या लाए है,प्रवीन मुस्कुरा कर बोला भाभी आपके लिए वहाँ से ये छोटा सा गणेश जी लाये है जो आप हमारे घर ही पिछली साल छोड़ आए थी।
अरे ये तो मैं आपलोगो को सौप कर आई थी। फिर उसने माया को देखते हुए कहा कोई नहीं मैं इसे रख लेती हूं। सुनंदा गणेश जी को लेकर बाहर निकलती है ,उसके आंखों के आंसू माँ जी को परेशान कर देती है।
सुनंदा ,जी माँ,कुछ चाहिए आपको। नहीं नहीं,तू कमरे में आ मेरे कुछ बात करनी है बप्पा के बारे मे। जी,सुनंदा ने जवाब दिया।
माँ- सुनंदा प्रवीन ओर माया में सब ठीक है न ।
सुनंदा - ह माँ सब ठीक है ।
देख सुनंदा मुझें कुछ सही नहीं लगरहा।
माँ प्रवीन अंदर आया क्या बात है माँ,प्रवीण देख बेटा माया की तबियत ठीक तो है न ,या तुम दोनों में। तभी माया आती है और डायरी थमा के कहती है,...मैं इस छोटी सोच वाली फैमिली के साथ नहीं रह सकती। तंग आ गयी हु। प्रवीन -माया तुम कमरे में चलो। तुम्हे जो कहना है कमरे में कहना।
क्यों प्रवीन -माया ने जवाब दिया। तुम्हारी माँ हर साल मुझसे सवाल करती है खुशखबरी ,जब जिंदगी में खुशी हो तब तो आएगी खुशखबरी।
माया तुम रूम में जाओ। नहीं जोऊंगी। कहूँगी अपनी बात आज सबके सामने। देखिए माँ हमारे बीच आज सिर्फ एक रिश्ता है तो सिर्फ और सिर्फ ....एक डायरी से।
उसके अलावा कुछ नहीं। ये तुम क्या कह रही माया। वही कह रही जो सच है। इनको खुशी देने के लिए समय तो है नहीं, तो आपको खुशखबरी कैसे सुनाऊ।
माँ हमे बात किये चार साल हो गए है,ओर बाकी समय न तो इन्हें फुर्सत है न ही मेरी परवाह। मुझे चाहे जैसी तकलीफ हो कोई सुनने वाला नहीं मगर सुंनाने वाले हर तरफ।
क्या करती माँ मुझे कोई सुनने वाला नहीं तो मैं भी जीवन को एक पन्ना से जोड़ दी।
मेरी परिस्थितियों को कोई टटोलने वाला नहीं। आज सुबह जब सुनंदा दीदी ने मुझसे ये जानना चाहा की सब ठीक है कि नहीं,तो मैंने भी प्रण कर लिया,सिर्फ दो दिन का दिखावा क्यों?
आपको लेकर हम एक दूसरे से थोड़े करीब आते है महज इन त्यौहारो को लेकर वरना हमारी बाते तो न जाने कब से नहीं हुई।
कितना चुप्पी साध के रहू माँ,मैंने शादी की थी कोई जातीय दुश्मनी नहीं। बस माया बस....चुप हो जाओ तुम घर मे पूजा चल रही समझी तुम प्रवीन ने ऊंची आवाज में कहा।
माया ने दुबारा कहा,क्यों प्रवीण डर लग रहा माँ के आगे,या बप्पा के आगे। मुझे नहीं पता था कि ये शादी एक डायरी के पन्ने में दर्ज होती रहेगी।
हम डायरी पे लिख सकते है मगर आपस मे बोल नहीं सकते। प्रवीन ये सब माया क्या कह रही। माँ ऐसा कुछ नहीं है। प्लीज आप परेशान मत होइए।
प्रवीन में तुम्हारी भाभी हु मैंने खुद तुम दोनों का बिहेव ध्यन दिया लेकिन तुम दोनों जब से आये थे माँ और मुझे बहुत तकलीफ हुई कि आखिर क्या बात है। जब मैं चाय देने गयी तब माया नहा रही थी, ओर जब मैं चाय को मेज पर रखी तो वहाँ माया की डायरी थी जिसपे लिखा था...
प्रवीन नहा लेना तो बता देना, उसके ठीक नीचे लिखा था मैं नहा लिया हु,अच्छा होगा कि तुम कुछ दिन ये सब बन्द कर के घुलमिल कर रहो,वरना मैं माँ को भाभी को क्या जवाब दूंगा। तभी बाथरुम के दरवाजे खुलने की दस्तक हुई मैंने तुरंत डायरी को पलंग पर रख प्रवीन तुमसे बोली ...ताकि माया को शक न हो। इसीलिए मैं तुमसे पूछी, मेरे लिए वहाँ से क्या लाए।
मगर उस समय लगा माया कि तरफ से कुछ गलत है। माया रोती हुई बोली....दीदी मुझे नहीं पता था कभी मेरे जीवन मे इस तरह होगा।
नाम दिल्ली है शहर बड़ा है मगर लोग अकेले है । न कोई किसी से बात करता है न ही किसी को अपना। आप सब से कहती तो सब मुझे गलत कहते,हर बार हर साल जब आती माँ की शिकायत सिर्फ एक ...खुशखबरी।
मगर उन्होंने कभी ये जानना न समझा कि मैं खुश हूं कि नहीं। बड़े शहर में रहना ,आजादी या खुशियों से जुड़ा होता है सबके मन में मगर यहाँ सब कुछ अलग।
प्रवीन तुम ऐसे कैसे हो गए बेटा माँ ने प्रवीण से पूछा। अभी प्रवीन कुछ बोलता की उससे पहले माया ने वो डायरी सुनंदा को थमाई बोली आप पढ़ सकती हैं,ओर मुझे बताइये कौन गलत कौन सही।डायरी की हालत माया की हालत को बयां कर रही थीं।
माँ ऐसा नहीं है,मुझे ऑफिस घर आप सबको देखना है। पवन की पढ़ाई को भी देखना है। घर पर इतनी जिम्मेदारी है। न बाबूजी है न भैया जो आप लोग को संभाले। सच कहूं तो मुझे कुछ भी करने का मन नहीं होता।
टूट गया हूं ,इतनी मेहनत करता हु दिनोरत मगर घर आने पर माया की एक रट बस बच्चे बच्चे....खुद के लिए इतनी मेहनत कर रहा उसमे बच्चे।
प्रवीन ये जीवन है जिसमे हर समय उतार चढ़ाव आते रहते है। कभी ज्यादा कभी कम। कभी कुछ भी नहीं। इसका मतलब ये नहीं की हम अपनो से मुँह मोड़ ले। इसका मतलब ये नहीं की हम जिम्मेदारियो में अपनों से बोलना छोड़ दे।
शादी रिश्ता बनाने और वंश से तो जुड़ा है ही,मगर अपने रिश्ते को मजबूत बनाने से भी। क्योंकि शादी हो जाने से जिम्मेदारी तो बढ़ती है साथ ही साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत भी।
मगर इस तरह आपसी जीवन को डायरी तक सीमित करना ठीक नहीं।
माया बहु मुझे माफ़ करदो । मुझे नहीं पता था कि मेरे बेटे ने तुम्हारे साथ महज डायरी तक ही रिश्ता रखा है। मुझे लगता था कि बहु आराम से खुश होगी। मगर सब कुछ विपरीत हुआ।
क्या आप भी इस तरह के लोग से मिले है। ये कोई कहानी नहीं बल्कि असल घटना है। माँ के इतना समझाने के बाद भी प्रवीन का नेचर कभी बदला नहीं। ओर उसका अंजाम कुछ यूं हुआ कि माया ने सुसाइड कर लिया।
एक लड़की एक नए घरोंदे में जब प्रवेश करती है तो वो अपना पिछला सब कुछ छोड़ कर आती है और इस नए घरोंदे को सजाने सवारने में जुटी रहती है,लेकिन आज के भगदौड़ में सब कुछ जैसे दूर हो रहा। चार दिन प्यार बाकी के दिनों में क्लेश।
माया भी इन क्लेश को देख चुप्पी साधने में ठीक समझी तो प्रवीन ने भी उसका गलत अर्थ समझ दो डायरी घर पे लाकर रख दी। इस तरह से एक हमसफ़र की जिंदगी मात्र डायरी तक सीमित रह गयी।
अगर कोई चुप हो आपका सम्मान करें तो भी जुर्म ,ओर आवाज उठाये तो भी। बेहतर होता प्रवीण माया को सुनता, ओर समझने की कोशिश करता तो शायद आज माया भी हम सबके बीच होती।