भावशून्यता का भविष्य, समाज का यह विकृत रूप, भयावह ? भावशून्यता का भविष्य, समाज का यह विकृत रूप, भयावह ?
दरवाजे पर दस्तक देता है। गिड़गिड़ा कर बोलता है। "मां दरवाजा खोल... ! मां दरवाजा खोल..! दरवाजे पर दस्तक देता है। गिड़गिड़ा कर बोलता है। "मां दरवाजा खोल... ! मां दरवा...
सबेरे गुड़िया के रोने पर और माँ-माँ चिल्लाने पर भी धनिया न उठी तो सबका माथा ठनका । सबेरे गुड़िया के रोने पर और माँ-माँ चिल्लाने पर भी धनिया न उठी तो सबका माथा ठनका...
नताशा को लग रहा था अभी जब उसे रजत के पास होना चाहिए था नताशा को लग रहा था अभी जब उसे रजत के पास होना चाहिए था
कितने लोग असमय चले गए। जिन्होंने अभी जिंदगी की शुरुआत ही कि थी। कितने लोग असमय चले गए। जिन्होंने अभी जिंदगी की शुरुआत ही कि थी।