खुशी की उम्र इतनी छोटी क्यों
खुशी की उम्र इतनी छोटी क्यों
जिस खुशी के आने की न जाने कब से प्रतीक्षा थी,वो आई भी तो मूसलाधार बारिश की तरह जो सुकून न दे कर बेबसी और दर्द ही दे जाती है! क्यूँकि हर चीज की अति बुरा परिणाम ही देती है।पर परिणाम इस भयावह रुप मे आऐगा सोचा भी न था।
रमुआ धनिया और गुड़िया को भागलपुर ले जाने को बेकरार था। काम बन्द हो गया था और खाने -पीने का कोई ठिकाना नहीं था।चार पैसे कमाने की खातिर घर-बाहर और भाई-बन्धू वहाँ से दूसरे शहर आ गऐ।सब अच्छा भी चल रहा था ।न जाने कहां से जानलेवा बीमारी काल बन के एक महामारी सुरसा जैसे मुंह बाऐ सब को निगलने पर तुली है।अहमदाबाद के कपड़ा मिल में दोनो को काम मिल गया था और वहीं पालना घर में गुड़िया की देखभाल हो जाती थी।अब जब से काम बन्द हुआ है, एक महिना तो सब ठीक -ठाक रहा। फिर कभी एक बार खाना,तो कभी केवल एक आदमी का खाना मिलता। जो थो
ड़ी बहुत जमापूंजी बची थी, वो गांव जाने के लिऐ रखी थी।ट्रेन ,बस बेद जाने कि साधन नही।कुछ लोग ट्रक में पैसे देकर चले गए थे । गांव पहुँच के फोन किऐ, तो मन और दुखी हो गया।जैसै-तैसे ट्रेन चालु हुई । फिर इतनी भीड़-भाड़ में अपना नम्बर लग जाऐ, ऐसे भाग कहां?जैसे-तैसे नम्बर लगा तो सबकी खुशी का ठिकिना न रहा ।हनुमान जी को नारियल चढ़ा आऐ। गांव के और भी बहुत लोग थे।घनिया की बहन और जीजा भी साथ थे।रास्ते के लिऐ खाना ले कर सब सफर के लिऐ निकल पड़े। पर न जाने क्यूँ , धनिया को ये खुशी रास नहीं आई।रात के सन्नाटे में बिना किसी तकलीफ के दिल का दौरा पड़ने से जो सोई थी, साई रह गई! सबेरे गुड़िया के रोने पर और माँ-माँ चिल्लाने पर भी धनिया न उठी तो सबका माथा ठनका ।जो ज़रा सी गुड़िया की आवज पर उठ जाती थी ,आज क्या हो गया!रमुआ ने घबरा कर धनिया को छुआ , तो शरीर एकदम ठंडा पड़ा था । ना जाने कब वो अपनी अन्तिम यात्रा पर निकल चुकी थी!
गुड़िया माँ का आंचल पकड़-पकड़ कर गोल-गोल घूम रही थी और माँ उठो ! माँ उठो ! की रट लगाऐ जा रही थी!सब अश्रूपूरित आंखो से इस अवसाद को झेल रहे थे!