Aprajita Rajoria

Tragedy

4.7  

Aprajita Rajoria

Tragedy

रौबदार वक़्त

रौबदार वक़्त

5 mins
396


नमन प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा था। बाबूजी बैंक मेंकार्यरत थे , सेवानिवृत्ति को २ साल बाकी थे। छोटी बहिन , प्रेरणा बी. बी. ए कर रही थी। साथ ही नव दंपत्ति के रूप मेंनमन और वर्षा का दांपत्य जीवन भी खुशियों के साथ दौड़ रहा था। प्राइवेट कंपनी में लगातार घाटा होने के कारणअधिकारियों की छटनी करने को मजबूर हो गई थी। छटनीहुए लोगों में नमन भी शामिल था। नमन अचानक आई इस विपदा से बहुत ही मायूस व् विचलित हो गया था और बिना खाये पिए ही दो दिन कमरे में कैद रहा। सब उसकी नौकरी न रहने से उतने परेशान नहीं थे , पर उसकी मानसिक स्थिति उसे डिप्रेशन में न ले जाये यह डर सबको था। अपनी नौकरी जानेपर भी पत्नी वर्षा की नौकरी के कायम रहने की चुभन भी पुरुषप्रधान समाज में जी रहे नमन को कचोट रही थी। कॉलेज के दोस्त अलोक का फ़ोन काफी दिनों से नहीं आया था ,वहअफगानिस्तान में टूरिज्म विभाग से जुड़ा था , और नमन को हर१०-१५ दिनों में नमन को फ़ोन कर लिया करता था या फिरनमन ही उसे फ़ोन कर लेता था।  


अलोक व्यस्तता के कारण फ़ोन नहीं कर पाया था और इधरनमन भी परेशानियों में उलझा था , सो काफी दिनों से उन दोनोंकी बात नहीं हुई थी। अचानक अलोक का फ़ोन आया तोनमन की आवाज़ से ही वह उसकी परेशानी भांप गया क्योकि वह हमेशा नमन से कहता था -------


 "उम्मीदों को कभी टूटने मत देना , इस दोस्ती कोकभी काम मत होने देना।दोस्त मिलेंगे हमसे भी अच्छे ,पर इस दोस्त की जगहकिसी और को मत देना। "


कितना सही है सच्ची दोस्ती बिना कहे ही एक ,दूसरे कीपरेशानी समझ जाते हैं। अलोक ने जल्दी ही नमन की परेशानी का हल निकाल कर उसे भी वहाँ आने का ऑफर दे दिया। परन मन के अलावा अफगानिस्तान जहाँ मुस्लिम माहौल हैं , वहाँजाने के लिए सब मना कर रहे थे। फिर अलोक और उसकेपरिवार वालों से अपनी शंकाओ का समाधान करके , नमन कोवहाँ जाने की आज्ञा मिल गई। २ माह के अंदर ही सारी औपचारिकताओं को पूरा करके नमन और वर्षा अफ़ग़ानिस्तान पहुँच गए। मध्यम परिवार की वर्षा अपनी विदेश यात्रा के सुखद एहसास को पल-पल जी रही थी। अपना घर अपनी गृहस्ती , जहाँ कोई रोक-टोक न थी। अपने हिसाब से ज़िन्दगी के हर सुख के मजे ले रही थी। उसकी नौकरी भी बैंक में लग गई थी। नमन और वर्षा के साथ ही दोनों परिवार वाले भी खुश थे , की बच्चे विदेश में बिना किसी परेशानी के सुखी जीवन बिता रहे हैं। कभी किसी ने सोचा भी न था कि "ख़ुशी की उम्र इतनी छोटी होगी ?" २० सालों से "अफगानिस्तान " में अमेरिकीआर्मी फार्स के कारण "तालिबान" की तानाशाही शांत थीक्योंकी उसकी दहशत के कारण उसकी बोलती बंद थी। परअचानक वहाँ के प्रेसिडेंट बाइडेन ने अपनी आर्मी फार्स कोवापस बुलाकर "तालिबान" के आतंक की सुगबुगाहट चालू हो गई। सारी जनता को विश्वास था की ५-६ माह के पहले"तालिबान "कुछ न कर पायेगा।


अपने राष्ट्रपति जिसे साऱी जनता ने बहुमत से चुना था, अपने देश की बागडोर के साथ ही अपना भविष्य भी सौंप दिया था।जनता का पूर्ण विश्वास था कि संकट के समय वे संकटमोचन की तरह सब संकट उबार लेंगे। पर वही संकट बढ़ा कर , सबकी जान की बाज़ी लगाकर , दुश्मन से सामना करने के बदले , उसे पीठ दिखा कर , जनता द्वारा जमा की गई जमापूँजी का खजाना खाली कर के कायरों की तरह भाग खड़ा हुआ। वो जनता जो उसे अपना संरक्षक , अपना मसीहा मानतीथी , आज तिल-तिल मरने के लिए विवश हो गई। वहाँ की जनता अपने को इस संकट का सामना करने के लिए तैयार कर पाती , इससे पहले ही १५ अगस्त को जब "भारत" अपनी स्वतंत्रता का ७५वा जश्न मना रहा था , तब "तालिबान "ने अपनी फ़ौज के साथ अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी " काबूल" पर कब्ज़ा कर लिया क्योंकी उसके आतंकी हौसले बुलंद हो गए थे । चंद घंटो में ही उस स्वर्ग को नर्क बनते समय नहीं लगा। जिस देश में " अनार " और "अफीम " की खेती होतीथी और जो प्राचीन समय से "रेशम मार्ग " और "मानव प्रवास" के लिए जाना जाता था आज वही लोगों की दुकानें लूटना , घरों में घुस कर चोरी ,डकैती करना आम बात हो गई थी। साथ ही बच्चों और महिलाओं को भी अपनी बरबर्ता का शिकार बनारहे थे। निर्दोष लोगों को सड़कों पर घुटने के बल बिठा कर या दीवार के सहारे खड़ा करके गोली मार देना उनके बाएं हाथ का खेल हो गया था। ४८ घंटों में ही वहाँ के सारे कानून बदल गए।महिलाओं का बिना बुर्के बाहर निकलना बंद , ब्यूटी पार्लर थाअन्य जगह पर महिलाओं की तसवीरों पर कालिख पोत दी गई, साथ ही उनकी पहनी चप्पलों की आवाज़ पर भी कड़ा कानून बन गया। इसके अलावा महिलाओं के नेलपेंट और लिपस्टिक लगाने पर कड़ी पाबन्दी लग गई , केवल बुर्के की दुकानें ही खुली थी जिन पर बेतहाशा भीड़ थी। नेटवर्क, मीडिया, इंटरनेट,बंद सेवाएं बंद कर दी गई थी।


     जहाँ नमन और वर्षा दहशत के माहौल में थे वही भारत में दोनों के परिवार उनकी कुशल होने की कामना कर रहे थे पर बातचीत नहीं हो पा रही थी। दोनों की ही नौकरी चली गई थी पर जान भी कितनी सुराक्षित है पता नहीं ? हर तरफअफरा -तफरी का माहौल , हर कोई अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी जान बचाने की कोशिश में लगे थे। "काबूल इंटरनेशनल एयरपोर्ट " में उड़ान भरने वाले जहाज के पहियोंको पकड़ के लटक कर वहाँ से भागने की कोशिशों में , जहाजके उड़ान भरते ही ३ -४ लोगों ने अपनी जान गांवां दी। ६-७ घंटे एयरपोर्ट पर रहना पड़ा। खाना पीने की चीज़ें नदारत। भूख- प्यास से बिलकते मासूम बच्चों अपने सहमें हुए माँ -बॉप केआगोश में थे पर सुरक्षित नहीं। वह दर्दनाक दृश्य आँखों सेओझल नहीं हो प् रहा है, जब एक दूध- मुहे बच्चे को लावारिस हालत में रोते -बिलख़ते एक ट्रे में रखा देखा। न जाने कैसे उसके माँ -बॉप मासूम को कलेजे से दूर करने की हिम्मत कर पाए होंगे। फ्लाइट शुरू हो रही थी। पहली फ्लाइट में वहाँ के दूतावास के अधिकारिओं को खुफियां दस्तावेज़ व् जानकारी के साथ रवाना होने का मौका मिला। बड़ी मुश्किलों से बड़ों के आशीर्वाद और भगवान की कृपा से अगली फ्लाइट में अलोक के परिवार के साथ हमारी भी भारत वापसी हो गई।



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