दम तोड़ते रिश्ते
दम तोड़ते रिश्ते
"माँ, आज फिर जय स्कूल नहीं गया, गली के बच्चों के साथ कंचे खेलतारहा।”प्रिया ने माँ से कहा तो, माँ ने जय को गले लगाते हुआ कहा" छोटा है, बड़ा होगा तो समझ जायेगा, " कहकर प्रिया को झिड़ककर,जय की गलतियों को बढ़ावा देकर, उसका मनोबल बढ़ा दिया।एम् बी बीएस की पढ़ाई कर रही प्रिया देख रही थी कि जय कि संगत ठीक नहीं है। सारा दिन गली के बच्चों के साथ फुटबॉल, क्रिकेट, कंचे तो कभीगिल्ली डंडा खेलता रहता है।वे बच्चे तो घर जा कर पढ़ाई कर लेते औरजैसे -तैसे पास भी हो जाते थे, पर जय तो माँ कि आँचल में छिप करदिनोंदिन बत्तमीज़ और ज़िद्दी होता जा रहा था।दो साल फेल हो कर भीउसको थोड़ी भी शर्म या दुःख न था।बाबूजी तीन साल पहले ही जय कीचिंता करते करते सबको रोता बिलकता छोड़ कर चले गए।बाबूजी किपेंशन से गृहस्ती ठीक -ठाक चल रही थी, अब पीएफ का पैसा और माँको मिल रही आधी पेंशन से डॉक्टरी कि पढ़ाई के साथ ही जय की उल्टीसीधी फरमाइशों को पूरा करते हुए घर चलना मुश्किल हो रहा थ।समयाभाव के बावजूद प्रिया ने किसी तरह समय निकाल कर ४-५ ट्यूशनशुरू कर दी ताकि गृहस्ती की गाड़ी ठीक -ठाक चल सके।
इधर बाबूजी के न रहने से माँ टूट ही गई थी, साथ ही जय की चिंता नेउन्हें बहुत चिड़चिड़ा बना दिया था।प्रिया ने जय के पीछे पड़-पड़ करजैसे-तैसे ६०% अंक लेकर बारवी की परीक्षा पास करा ही दी, और राहतकी साँस ली।इधर प्रिया की इंटर्नशिप शुरू हो गई थी साथ ही उसनेप्राइवेट डॉक्टर के आधीन प्रैक्टिस भी शुरू कर दी थी।प्रिया की शादीकी चिंता, और जय की भविष्य की चिंता क्यों की उसके बत्तमीज़ी व् तू-तूमैं-मैं ने माँ को शिथिल व् निराश कर दिया था।रात-रात भर करवटेंबदलती रहती और सारी रात चिंता में ही कट जाती।इसी चिंता ने हार्टअटैक के रूप में ऐसा झटका दिया की वो फिर आँख बंद ही नहीं कर पाईप्रिया को बेसाहारा और रोता छोड़ कर माँ भी चली गयी।माँ को अपनेजाने का आभास हो गया था तभी प्रिया के हाँथ में जय का हाँथ दे करबोली " बेटा तुम्हे ही इसे सम्हालना है,जैसा भी है, है तो तेरा भाई ही "।प्रिया ने माँ की बात गांठ बाँध ली और जय के पीछे पड़ -पड़ कर स्नातकपरीक्षा पास करके डिप्लोमा भी करवा दिया।सो ठीक-ठाक नौकरी मिलगई और प्रिया ने राहत की सांस ली की "चलो जय अपने पैरों पर खड़ा होगया। " समय चक्र चलता रहा, प्रिया भी सरकारी अस्पताल में नौकरीकरने लगी।जय का काम- काज अच्छा चल पड़ाथा, साथ ही उम्र भी२८ की हो गई थी।इधर प्रिया का सहयोगी अभय भी प्रिया पर फ़िदा थाऔर प्रिया को शादी के लिए प्रपोज़ भी कर चुका था।
पर प्रिया इन सब से कोसों दूर थी या कहा जाय कि ज़िन्दगी कीपरेशानियों ने उसकी कोमल भावनाओं को शुष्क बना दिया था।या कहाजाए कि जय के सुखद भविष्य की चिंता अपने बारे में सोचने का मौका हीनहीं देती थी।अब तो प्रिया अस्पताल से आने के बाद एक नया मसला भीमिल गया था, क्योकि जय की शादी का फितूर जो सवार था। लड़कियोंकी फोटो देखना, एक -दो जो पसंद आये उनके घर वालों से बात करना, प्रिया को तो किसी "हूर परी" की तलाश थी, सो कोई लड़की पसंद हीनहीं आ रही थी।आखिर तलाश ख़तम हुई और आकांक्षा, जय औरप्रिया दोनों को ही पसंद आ गई।अब प्रिया का अधिकतम समय शादीकी तैयारी में बीतने लगा।सगाई फिर शादी की तैयारी में प्रिया ने दिनरात एक कर दिया और, बिना किसी विघ्न बाधा के जय और आकांक्षापरिणय सूत्र में बंध गए।उन दोनों को हनी मून पर शिमला भेज कर प्रियाने राहत की सांस ली। उसे माँ को दिया वचन पूरा करने का संतोष था। एक निष्चिंता का भाव लिए, आईने के सामने आ खड़ी हुई।इतने दिनोंकभी जय की चिंता ने उसे आईने के सामने खड़ा होने का मौका ही नहींदिया था।बालों में जहाँ-तहाँ सफेदी के रूप में चांदनी नज़र आ रही थी, फेशियल करने के बाद भी झुर्रियाँ जवानी को ठेंगा दिखाने लगी थी। कमज़ोर होती नज़र और चश्मे के बढ़ते नंबर से बुढ़ापे का अक्स चहरे परदेख प्रिया सिहर उठी। आज प्रिया उम्र के उस पड़ाव पर खड़ी थी जहाँतन्हाई और काटता एकाकीपन का सन्नाटा ही चारों तरफ पसरा नज़र आरहा था।तब अभय ने अनेकों बार प्यारका इज़हार के साथ ही विवाहप्रस्ताव भी रखा था, पर प्रिया को जय की चिंता ने, कभी अपने सुखदभविष्य के बारे में सोचने का वक़्त ही कहाँ दिया था ? अब वक़्त है पर हाँथथामने वाला कोई नहीं।
तब अभय ने अनेकों बार प्यारका इज़हार के साथ ही विवाह प्रस्ताव भीरखा था, पर प्रिया को जय की चिंता ने, कभी अपने सुखद भविष्य के बारेमें सोचने का वक़्त ही कहाँ दिया था ? अब वक़्त है पर हाँथ थामने वालाकोई नहीं।बदलतेकैलेंडर के साथ भी बदलते गए और आज मेरीसेवानिवृती ने मेरे "साठ साल " के होने का ऐलान चीख -चीख कर दिया।दिन भर अस्पताल में व्यस्त रहने की आदत ने घर में रहने का अवसर कमही दिया था। आज पहले दिन दिनभर की दिनचर्या में एक ठहराव आया।घड़ी की सुई के साठ भागने वाली प्रिया को लगा आज घड़ी रुक गई है। कुछ काम में मन लग रहा था। पर जल्दी ही जय ने अपने तबादले कीखुशखबरी के साथ ही जल्दी आकांक्षा और बच्चों के आने की खबर दी। प्रिया की छिपी हुई ममता फिर जाग उठी, बच्चों को तरह -तरह की चीज़ेबनाकर खिलाने के साथ ही उनके साथ समय बिताकर प्रिया को बहुतसुकून मिल रहा था।जय भी प्रिया का ध्यान रखने लगा था, ऑफिस से आते समय प्रिया की पसंद की जलेबी, कचोरी या समोसे ले कर आता, सोने से पहले प्रिया के पास बैठ कर बाते करते करते उसके पाँव दबाना, प्रिया को उसका यह बदला हुआ स्वाभाव व् अपनापन बहुत अच्छा लगरहा था।प्रिया जय के छद्मवेश में गीदड़ की खाल मेंछिपे भेड़िये केस्वरुप को नहीं पहचान पाई क्योकि उसने सपने में भी कभी सोचा नहीं थाकी धन,पैसा और घर किसी को राक्षसी प्रवृति में बदल सकता है। जय नेप्रिया को खाने पीने की चीज़ो में "स्लो पॉइज़न "देना शुरू कर दिया था।
धीरे -धीरे उस धीमे ज़हर ने प्रिया के दिमागी व् शारीरिक सोच समझ कोनिष्क्रिय कर दिया था।वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ज़िंदा लाश सीनिश्चेष्टहो कर रह गई थी।पागलखाने की गाड़ी आ कर प्रिया को"राखी" के पवित्र पर्व पर भाई बहिन के पवित्र रिश्ते को चीरती हुई आँखों से ओझल हो गई।