मेहँदी की रात
मेहँदी की रात
चारों तरह ख़ुशी का माहौल था , जन्नत की खुशियाँ , जलवा बिखेर रही थी। रंग-बिरंगे गरारे और शरारे के साथ ही भारी-भारी ज़रदोज़ी के काम वाले दुपट्टे , आसमान के ज़मीन पर होने का एहसास करा रहे थे।शहनाज़ का घर बिजली की लड़ियों से जगमगा रहा था।बाहर शामयाने में मेहमानों की मेहमान नवाज़ी चल रही थी। बावर्चीखाने से तरह-तरह के अज़ीज़ पकवानों के साथ बिरयानी और गोश्त की ख़ुशबू भख बढ़ा रही थी।
शहनाज़ और हुसैन अँगूठी पहन कर सगाई के बंधन में बांध चुके थे। यह ख़ुशी शहनाज़ के अबिरी गालों को और भी चमकदार बना रही थी। हुसैन अपनी महबूबा की ख़ुशी देख कर अपने को रोक नहीं पाया और उसका हाथ थाम कर अंदर के कमरे में ले जाकर, अपने अधर उसके गालों पर रख,उन्हें और अबीरी बना दिया। दो दिनों तक शहनाज़ के हाथ अपने गालों को छू -छू कर एक खुमारी महसूस करते रहे । वही खुमारी शहनाज़ के चेहरे पर मुस्कान के रूप में खिल पड़ी थी।
आज मेहँदी की रात है। शहनाज़ की हथेली पर मेहँदी के लिए उसकी सहेलियों में होड़ लगी थी। शहनाज़ की पहचान अपनी सहेलियों के बीच ठहाकों और हमेशा हँसती एवं ज़िंदादिली सूरत ही थी। सचमचु हर महफ़िल की जान थी वह।
हुसैन उसकी इन्हीं अदाओं का दीवाना था। एक हाथ में मेहँदी लग चुकी थी। दूसरे हाथ में मेहँदी भाग्य रेखा पर अंकित हो रही थी। टी वी पर खबरें चल रही थीं,"वहाँ के अचानक आये जलप्रलय को ,जिसने तांडव रूप अख़्तियार कर लिया था.....”! टी वी के पास ही जमा हो कर जलमग्न हो रही सड़कों, गाड़ियों और जानवरों को पानी में जल समाधी लेते देख रहे थे।बजते हुए मोबाइल ने एक घबराहट के साथ ध्यान खींचा।
अब्बू ने काँपते हाथों से मोबाइल उठाया ,हुसैन के मामू का फोन था ,हुसैन जिस गाड़ी में अपने दोस्तों के साथ आ रहा था ,वो जल-तांडव का शिकार होकर विलीन है ।
हर बार मेहँदी का गाढ़ा रंग देख कर सब कहते थे की इसका दुल्हा इसे बहुत प्यार करेगा।।पर आज यह आधी -अधूरी रची मेहँदी ज़िंदगी का खौफनाक मंज़र दिखा कर ख़ुशियों का मज़ाक उड़ा रही
थी। मेहाँदी का रंग इतना बदरंग भी हो सकता है कि ख़ुशमिज़ाज शहनाज़ आसुओं और पथराई आँखों के साथ ही दुःख की जीती जागती तस्वीर बन कर रह गई .......