मां दरवाजा खोल
मां दरवाजा खोल


मेरा गाँव हरा भरा है। उसका कारण यही है कि गाँव अरवल्ली की गिरीमाला के सानिध्य में बसा है। रात होते ही जंगली प्राणियों का आतंक बढ़ जाता है।
पहाड़ियों वाला प्रदेश होने की वजह से वनवासियों की बस्ती ज्यादा है।
गाँव से एक किमी दूर मेरा खेत और कुँआ है इसलिए मेरा बसेराभी वहीं है।
सामने की ऊंची पहाड़ी पर से झरने की तरह गिर कर बहने वाली नदी ठीक मेरे घर के सामने से गुजरती है।
जब बारिश के मौसम में जमकर बारिश होती है तो बाकी के चार महीने उस नदी में पानी बहता है। हरी-भरी वादियों से गुजरती हुई नदी का निर्मल जल अपने कल कल निनाद से मौसम को संगीत में बना देता है। उसमें भी जब पंखी गाने लगते तब प्रकृति की असली सुंदरता का हमें एहसास होता था।
यहाँ की हर खुशनुमा सुबह हमारा मन मोह लेती है।
मगर रात होते ही समा बदल जाता।
रात होते ही असामान्य गतिविधियां शुरू हो जाती।
चारों तरफ से निशाचर जीवों की आवाजें एक असाधारण डरावनी कहानी बयाँ करती। इस रास्ते पर आने जाने वाले लोग सांझ ढलते ही अपने घरों में कैद हो जाते।
आधी रात के बाद भेड़ियों की चीखे यहाँ किसी की भी रातों की नींद उड़ा सकती है।
डरावने चेहरे, जैसे हमारे आसपास मंडराने लगते थे। यहाँ का मंजर किसी भूतिया कहानी के दृश्य से कम नहीं होता था।
काफी कुछ असामान्य था यहाँ। लोग इतने डरे हुए थे कि कोई भी इंसान प्रेत बाधित हो जाने के डर से घबराता था।
घर के आगे से जहाँ नदी गुजरती थी वहाँ पुलिये वाला रास्ता बना हुआ था। नदी का पानी उस पुलिये पर से सीधा नीचे गिरता था।
पानी के ऐसे गिरने से वहाँ एक बड़ा सा गड्ढा बन गया था, जो किसी गहरी झील की तरह लगता था।
पानी इतना निर्मल था कि गाँव से न जाने कितने बच्चे रोज इस बहते हुए झरने में नहाने चले आते थे।
"पानी बहुत गहरा है ऐसा मैं उन बच्चों को रोज कहता। मगर कोई मेरी बात मानने को कतई तैयार ही नहीं था।
एक बार ऐसा हुआ एक बड़ा लड़का दस साल के बच्चे को उठाकर पानी में उतरा।
"चल तुझे गहरे पानी की सैर कराता हूँ।" ऐसा बोलकर वह उस बच्चे को डराने लगा।
उसी वक्त बड़े लड़के का पैर फिसला, और वह गहरे पानी में छोटे बच्चे के साथ चला गया। मैंने देखा कि दोनों लड़के बुड़ने लगे, एक अंदर डूब कर वापस ऊपर आता तो दूसरा फिर डूबता। मुझे मालूम था एक ही मिनट के पश्चात यह दोनों पानी की सपाटी से गायब हो जाएंगे। वहाँ नहाने आए आए सभी बच्चों में हड़कंप मच गया।
किसी को भी तैरना नहीं आता था। मैं दौड़ कर एक बड़ी लकड़ी ले आया। छोटे बच्चे को लकड़ी स्पर्श कराते ही उसने लपक कर लकड़ी पकड़ ली। उसकी जान बचा ली गई। जब दूसरी बार लकड़ी पानी में डाली तो बडा लड़का पानी के अंदर चला गया उसके बाद वापस ऊपर आया ही नहीं।
लड़का डूब गया तो अफरा-तफरी मच गई। यह बात वायु वेग से गाँव तक फैल गई।
दो अच्छे तैराक बोला कर पानी को खंगाला गया। तकरीबन एक घंटे की मेहनत के पश्चात लड़के को बाहर निकाला गया। झरने के किनारे पर उस की डेड बॉडी रखी थी। तैराको ने लड़के का पेट दबाकर देखा। उसका सीना दबाकर हृदय को चालू करने की कोशिश की गई।
मगर सब कुछ व्यर्थ साबित हुआ।
गोरे बदन का मालिक उस लड़के का पेट बिल्कुल खाली था। उसकी नाक में नदी की रेत भर गई थी। दम घुटने से उसकी मौत हो गई थी।
लड़की के माने जब यह बात सुनी तो जैसे उस पर पहाड़ टूटा। रो रो कर उसका बुरा हाल था।
संतान में उसे मात्र एक यही लड़का था और वह भी इस तरह चल बसा। जिसने भी यह बात सुनी सबके कलेजे थर्रा गए।
मेरा बदन भी बुरी तरह काँप रहा था।उसे बचा नहीं पाया उस बात का मुझे बहुत अफसोस था। उस रात मुझे नींद ही ना आई। तब से मुझे रातें का
फी डरावनी लगती थी।
पानी का वह झरना जानलेवा साबित हुआ।
पापा ने मुझे सख्त वार्निंग दे दी थी।
इस रास्ते से रात को आना जाना ठीक नहीं है लड़का बेमौत मरा है कभी भी रात को उसकी भेट हो सकती है।"
पर पापा की बाद को हमने नजरअंदाज कर दिया। सिनेमाघरों में लास्ट शो देखने की आदत अब तो छूटने से रही।
लड़के की मौत के बाद का वह पहला संडे था। पापा के मॉर्निंग ठुकरा कर हम एक भूत की कहानी वाली 'ध पोजीशन' देखने चले गए।
शहर से फिल्म देखकर गाँव में आते तब तक रात के 2:00 बज जाते वहाँ से चलकर फिर खेत तक आना अब कठिन लगता था।
रात सुनसान थी।
पशु पक्षियों के साथ तमाम जीव जैसे अपने अपने घरों में नींद के आगोश में समा गए थे। चारों तरफ सन्नाटा अपने पैर पसारे हुए था।
इस वीरान रास्ते पर 'मैं और मेरा दोस्त' एक दूसरे का हाथ पकड़ कर तेजी से चल रहे थे। फिल्म देखने के बाद वैसे तो हमारे पास बातों का भंडार होता था, मगर आज की बात कुछ और थी। आज पहला संडे था तो हम चुपचाप जल्द से जल्द अपने अपने घर पहुँच जाना चाहते थे।
मेरी बेचैनी यह देख कर बढ़ रही थी कि सड़क के दोनों किनारे कतार में लगे आम के पेड़ों में जरा भी जान नहीं थी। आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। कहीं पवन की छोटी लहर भी नहीं थी। हम दोनों अब चलते नहीं थे जैसे भागने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे आम के उस राक्षसी पेड़ से कूदकर जैसे अभी कोई सामने आ जाएगा। मन में फड़फड़ाट था, डर ऐसा था कि पीछे देखने की हिम्मत दोनों में से एक में भी नहीं थी।
ठीक सेंटर में हम पहुँचे थे। घर अब ज्यादा दूर नहीं था।
एक ढलान जैसा एक किमी का मार्ग पुलिये तक जाकर सीधा हो जाता था।
"घर आ गया है यह सोच कर हम ने राहत की साँस ली थी कि तभी सामने से आती परछाई नजर आई। मेरे कदम ढीले हो गए। मैंने अपने दोस्त का हाथ दबा कर इशारा किया। सामने से आते हुए शख्स को देखकर उसके भी पैर लड़खड़ाने लगे।
"इतनी रात गए कौन हो सकता है?" दोनों के मन में एक ही सवाल उठा।
हो जो कोई भी था रास्ते की दायीं और चल रहा था, तो हम दोनों ने बायें और चलना ठीक समझा।
आहिस्ता आहिस्ता वह नजदीक आता गया। चंद्रमा की चांदनी बिखरी हुई थी। और ऐसी चांदनी से चमकती रात में उसे पहचानने में मेरी आँखें जरा भी धोखा नहीं खा सकती थी।
वह वहीं था, गोरा चिट्टा उंचा लड़का, जो पिछले संडे पानी में डूब कर मर गया था।
अभी भी उसके बदन पर अंडर वेयर के अलावा कुछ नहीं था।
अपना सिर झुकाए मदमस्त हाथी की तरह वह चला आ रहा था।
हॉरर मूवी देखने वाली हमारी आँखें यह सीन देखकर खौफ खा गई। अगर जो हम पलट कर पीछे भागते तो जरूर वो हमें एक पल में पटक देता।
पापा ने एक बार कहा था। अगर रास्ते से गुजरते वक्त कोई भी प्रेतात्मा सामने नजर आता है तो उस से डरे बगैर अपने रास्ते पर आगे बढ़ते रहना है वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ते। वह सिर्फ डरने वालों को ही डराते हैं।
इसलिए हम चुपचाप उसके बगल से निकल गए।
मगर शरीर का रोंया रोंया खड़ा हो गया था।
उसके बाद जोरो से हवाएं चलने लगी। कुत्ते गला फाड़ फाड़ कर रोने लगे। भेड़ियों के रोने की आवाजे सुनाई देने लगी।
माहौल में आए बदलाव कि हमें खबर नहीं ऐसा नहीं था, पर अब हम सब कुछ पीछे छोड़ कर अपने घर पहुँच जाना चाहते थे।
और वैसे भी दोनों ने तय कर लिया कि यह 'शो' हमारे लिए आखरी था।
दूसरे दिन हमें उनके मोहल्ले से यह बात जानने को मिली कि वह लड़का और रोज रात को उसके घर आता है। आधी रात में दरवाजे पर दस्तक देता है। गिड़गिड़ा कर बोलता है।
"मां दरवाजा खोल... ! मां दरवाजा खोल..!
- साबिर खान पठान
मो.9870063267