Sabirkhan Pathan

Horror

3.9  

Sabirkhan Pathan

Horror

रास्ते का राजा

रास्ते का राजा

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रात के भयानक अंधकार को चीरते हुए ट्रक रफ्तार से भाग रही थी।

हड्डियों को पिघला देने वाली सर्द रात अपना कहर ढा रही थी। रात के ठीक 12:00 बज रहे थे। रास्ता खुला मगर सुनसान था। ट्रक की हेड लाइट सडक के काले घने अंधेरे को पूरी तरह दूर करने की नाकाम कोशिश  करती आगे बढ रही थी।

आधी रात के बाद ही अब्बास को गाड़ी ड्राइव करने का मजा आता था। ज्यादातर इस वक्त सड़क बिल्कुल सुनसान मिलती, जिसके कारण उसे अपनी मर्जी के मुताबिक गाड़ी भगाने का मौका मिल जाता।

ऐसे वीरान रास्तों पर उसे रोज का आना-जाना लगा रहता था। आधी रात के बाद लूटपाट की वारदातें आम बात थी। हालांकि अब्बास किसी से डरता नहीं था।

रोज की तरह आज भी उसी रफ्तार से वह आगे बढ़ रहा था। रास्ता काफी डरावना होने के बावजूद वह बेफिक्र होकर तेजी से ड्राईव कर रहा था।

ठीक उसकी बगल में अब्बास का बेटा ठंड से बचने कंबल ओढ़ कर सोया था।

गुजरात की बॉर्डर पार करके गाड़ी राजस्थान में दाखिल हो रही थी। अंबाजी होकर आबू की ओर आगे बढ़ने वाला रास्ता टेढी-मेढी पहाड़ियों से गुजरता था।

राजस्थान में ऐंटर होते ही बॉर्डर पर आने वाले छोटे से शहर को क्रॉस करते उससे पहले ही एक हादसा हो गया।

घने जंगल में पहाड़ी की ढलान पर एक जबरदस्त धमाके के साथ गाड़ी का टायर फट गया। 

ब्रेक लगाकर अब्बास ने गाड़ी को कंट्रोल कर लिया। टायरो की चीख के बाद गाड़ी रुक गई।

रात के अंधेरे में वृक्षों के डरावने चेहरे  किसी राक्षसी कंकाल की भांति लग रहे थे।

निशाचर जीवो की आवाजे उसे बिल्कुल भी ठीक नहीं लगी थी। कहीं दूर घनी झाड़ियों में उल्लू भयानक आवाजो से डरा रहा था। 

अचानक लगी ब्रेक के कारण अब्बास के लड़के की गहरी नींद उड़ गई।

"कांय रि'युं अब्बाजान..!" उस्मान ने मारवाडी लहजे में चिंता जताई। उसकी आवाज में कंपकंपी थी।

गाड़ी पंक्चर रे'गी है और की कोनी रियुं! तू उठ गीयो है तो टायर बदलणे में मारी मदद करले। एडी घबराणे की बात कोनी है। अ'मार गड्डी त्यार रेजाई ला!"

अब्बास ने अपने बेटे का हौसला बढ़ाया।

"जी अब्बा जान।" कहकर उस्मान आसपास के जंगलों में नजरे घुमाता हुआ पिता की हेल्प करने लगा।

किसी डरावनी कहानी से ये माहोल कम नजर नही आ रहा था। जगह किसी भूतिया टीले की तरह दिख रही थी। हैरानी की बात यह थी कि उनकी ट्रक के अलावा कोई भी वाहन इस सड़क पर दूर-दूर तक  दिखाई नहीं दे रहा था। 

काफी डरावना होरर सीन था।

अब्बास गाड़ी को जैक लगाकर फटाफट नट बोल्ट खोलें और टायर बदला।

किसी अनजाने खौफ के चलते दोनों ने गाड़ी में पर बैठ कर अपनी जगह ले ली। 

अब्बास को डर इसी बात का था कि इस वीरान जगह पर कोई जंगली जानवर हमला न कर दे।

मगर अल्लाह के करम से ऐसा कुछ नहीं हुआ।

गाड़ी स्टार्ट करके दोनों आगे बढ़े। सर्द हवाएं अभी दे पेड़ पौधों में सरसराहट भर गई थी।

ढलान उतरकर गाड़ी जब सीधे रास्ते पर आई तो सामने का नजारा देखकर कपास की आँखें खुली की खुली रह गई।

वह कोई छोटे से कस्बे का स्टॉप था। और बस स्टॉप पर लंबा घुंघट ताने कोई स्त्री खडी थी।

हॉरर मूवी के सीन का नजारा देख कर अब्बास बुरी तरह सहम गया।

"अब्बा जान कोई लुगाई खड़ी लागे है!"

"हाँ पूतर, वे'ई कोई दुखियारी!" अब्बास ने गाड़ी को ब्रेक लगाई। घूंघट ओढ़ के वह स्त्री अपनी चूड़ियों की खनक बिखरती हुई रोड के बीचोबीच आकर रुक गई।

अब्बास को गाड़ी रोकनी पड़ी।

उस अजनबी स्त्री का चेहरा देखने की अब्बास की कोशिश बिल्कुल नाकाम रही।

"मुझे अगले स्टेशन तक ले जाइए प्लीज अंधेरा बहुत हो गया है और दूसरी कोई गाड़ी भी नहीं है।"

गिड गिडाते हुए उसने कहा था।

अब्बास को उस पर रहम आ गया।

"जिस स्त्री को आधी रात में घर से बाहर निकलना पड़ा और जरूर कोई बड़ी मुसीबत में हो सकती है।" ऐसा सोचकर अब्बास अपने बेटे उस्मान से मुखातिब हुआ।

"उस्मान, बेणजी ने बोल दे पीछे बैठ जावे, अगले स्टेशण पे उतार देवां।"

उस्मान ने उस स्त्री से बात करने खिड़की से बाहर सिर निकाला मगर वह रहस्यमई स्त्री न जाने कहाँ गायब हो गई।

"अब्बा जान वह लुगाई तो कठे दिखे कोनी।" 

उस्मान परेशान होकर बोल उठा।

"खिड़की खोलने पीछे देख ले एक बार।" 

अब्बास की बात मानकर उसने पीछे का नजारा देखने ड्राइवर सीट के पीछे सेंटर में लगी खिड़की को खोल दिया। उस्मान की आँखें हैरत से फटी की फटी रह गई।

"वह तो पीछे बैठी है अब्बा जान।" उसने बात भले ही अब्बा जान से कही थी लेकिन जैसे वह खुद को भी यकीन दिला रहा था।

राहत की साँस लेते हुए अब्बास ने गाड़ी की गति तेज कर दी। जबकि उस्मान की अब नींद उड़ चुकी थी।

'वह अजनबी स्त्री किसी छलावे की तरह गाड़ी में चढ बैठी और हमें भनक तक न लगी।' 

लगातार 2 घंटे तक गाड़ी भगाने के बाद अब्बास के जेहन में वो बात आई कि उस लुगाई को जहाँ उतारना था वह स्टॉप तो पीछे चला गया है। उसके पैर ब्रेक पर दब गए।

"अरे उस्मान, उस लुगाई ने उतारणी थी वे बात मारे दिमाग से ही निकल गी है। देख देख देख वह पीछे सो तो नहीं गई?"

उस्मान ने फिर से खिड़की खोल कर पीछे देखा। उसकी आँखों को दूसरी बार झटका लगा।

वह हड़बड़ा कर बोल उठा। "अब्बा जान, वह लुगाई तो गाड़ी में नी है।"

अब्बास ने उस्मान को ऐसे देखा जैसे उसने कोई बचकानी बात करती हो।

"क्या बात करता है ठीक से देखता कोने में बैठी होगी छुप कर।"

"ठीक से देखा मैंणे, वो गड्डी में नीं है।"

"फिर तो लागे है जब गड्डी धीमी पड़ी वे'ला तब वो उतर गी लागे"

उस अनजान औरत का डरावना चेहरा अभी भी अब्बास की आँखों से दूर नहीं हो रहा था। उसका तर्क जैसे उसके ही गले में अटक गया।

अब्बास इस घटना को भूल कर जल्द से जल्द अब घर पहुँच जाना चाहता था। फिर वह एक मिनट के लिए भी कहीं रुका नहीं। लगातार तेज रफ्तार भागता रहा।

उस्मान को सर्द हवाओं के कारण नींद लग गई थी।

हॉलीवुड की किसी भूतिया स्टोरी में नजर आने मंजर उसकी आँखों के सामने नमूदार हो रहे थे।

अब्बास ने सुबह नौ बजते ही गाडी मारवाड़ में अपने घर टेक दी। 

हाथ मुँह धो कर नाश्ता किया। बेगम सब्जी लेने का बहाना करके बाहर निकल गई। उस्मान अपने दोस्त से मिलने चला गया।

नाश्ता करने के बाद अब्बास को बड़ी जोरो की प्यास लगी। फ्रीज से बोतल निकालने के इरादे से वह ही उठने लगा कि अपने सामने आकर रुक गए दो पाजेब वाले नंगे पैरों को देखकर बुरी तरह चौका।

सकपकाये अब्बास ने नजरें उठाकर ऊपर देखा।

उसके बदन में खौफ की सिहरन दौड़ गई।

सुर्ख रंग के घुंघट में एक बदसूरत चेहरा मुस्कुरा रहा था। डर के मारे अब्बास की जैसे जान निकल गई।

"तू अठ्ठे कांई करे है? तू तो रास्ते में उतर गी थी ने?"

"मैं क्यों उतर जाती भला, तुमने ही तो मन्ने अपणे साथ बुलाया है। अब तो मैं थारे घर में घुस गई हूँ। थारी लुगाई बण कर। अब में थन्ने छोड़ के जाणे वाली नहीं हूँ। किसी को बोला तो जाण ले लूंगी थारी।"

अब्बास जहाँ खड़ा था, वही बुत बन गया। उसको यकीन नहीं हो रहा था कि एक भूतनी उसके घर में मौजूद थी।

"म… मगर मेरे घर में लुगाई है।" डरते डरते वह इतना ही कह पाया।

"दूसरी बार बोला तो थारी हलक से जबाण खींच लूंगी।" घूंघटे वाली औरत ने अब्बास का गला पकड़ते हुए कहा - तन्ने छोड़कर मैं कहीं नहीं जाणे वाली।"

"पर छोरी थन्ने में रख्खुला कहाँ?"

"मैं बताती हूँ थन्ने, थारा पैर री जांध में चीरा करले फटाफट। मेरे सिर के बाल काट कर थारी जांध में 'सी' ले। मैं वहीं रहूँगी।"

ना चाहते हुए भी अब्बास को उसका हुक्म मानना पड़ा।

उसकी जिंदगी प्रेत बाधित हो चुकी थी। कराहते हुए अब्बास ने अपनी जांँध में चीरा दिया। और उस चुड़ैल के बाल काट कर चमड़ी के अंदर सी लिए।

उसके बाद वो बदसूरत चेहरे वाली चुड़ैल अब्बास के साथ उम्र भर उसकी घरवाली बन कर रह गई। अब्बास की असली पत्नी को डरा कर चुड़ैल ने कभी उसे अब्बास के करीब नहीं आने दिया। 

अब्बास दिन-ब-दिन दुबला होता गया। और एक दिन अचानक ही सब ने उसे अपने कमरे में मरा हुआ पाया।


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