खो देने का डर
खो देने का डर
जिया आज के ज़माने की लड़की बेहद खूबसूरत, दिल की साफ और पढ़ाई में भी तेज़, हर कोई फट से आकर्षित हो जाता उसकी तरफ। जिया की दो छोटी बहनें भी थी।
जिया के पापा मम्मी दोनों ही टीचर थे। बहुत प्यारा सा मध्यमवर्गीय परिवार। जिया को प्यार हो गया एक पड़ोस के ही लड़के से, उसके साथ ही पढ़ता था वो लड़का।
जिया बड़ी थी तो उसके पापा उसकी शादी जल्दी करना चाहते थे पर जिया जिस लड़के से प्रेम करती थी वो अभी शादी की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था तो जिया के पापा ने उसका रिश्ता शहर के नामी गिरामी परिवार के लड़के के साथ तय कर दिया।
बेमन से जिया ने ब्याह कर लिया और निभाने की भी कोशिश करती रही।
सहज सहज परिवार भी पूरा हो गया दो प्यारे बच्चे उनकी दुनिया को खूबसूरत बना रहे थे धनक और आर्य।
जिया को आज भी बीता वक्त याद आ जाता। वो comparison कर बैठती प्रेमी और पति में। जिया को हंसमुख बातूनी लड़के पसंद थे,इसके विपरीत जिया के पति विनय कम बोलने वाले और संजीदा किस्म के इंसान थे तो जिया को कसक सी रहती।
वक्त का पहिया अपनी गति से चल ही रहा था कि एक दिन अचानक से विनय को खून की उल्टी शुरू हो गई। जिया के पांव के नीचे की ज़मीं खिसकती दिखने लगी। आनन फानन में सब टेस्ट करवाए तो विनय को अल्सर कि शिकायत मिली, बहुत इलाज चला, जिया ने जी जान लगा कर विनय की सेवा की, एक ऑपरेशन भी हुआ विनय का एंडोस्कोपी से और अंतत विनय ठीक हो कर घर आ गए।
बीमारी के दौरान विनय ने महसूस किया कि जिया उसको पहले से ज्यादा चाहने लगी है, देखभाल में तो कोई कमी छोड़ ही नहीं रही पर जहां पहले जिया की आंखों में सूनापन था एक रिक्तता थी अब वो नहीं है।
जिया ब्याह के दस बरस बाद पति से प्यार करने लगी थी।
actually होता क्या है कि किसी को खो देने का डर आपको उसके और करीब ले आता है। इस बीमारी ने विनय को तकलीफ तो दी पर जाते जाते उसको उसकी बीवी के बेहद करीब कर गई।

