खमोश गलियाँ
खमोश गलियाँ


आज यह कैसा लग रहा है,अजीब सी खमोशी, हर तरफ मौत सा सन्नाटा किस लिये ?किस चीज का खामियाजा भुगत रहे हैं,शायद प्रकृति माँ के साथ छेड़ छाड़ की है उसी का परिणाम है जो हम लोग या पूरी दुनिया भुगत रही है। दुनिया कैसे बदल गयी क्यों बदल गयी सोच कर दुख होता है ।जब शुरू से ही कहाँ जा रहा था कि किसी चीज का अपने लाभ के लिये नुकसान ना करों पर सुनना ही नहीं,बस लगे है नदियों को गंदा करने में, पेड़ो को काटने में ,निरीह पशुओ को मारने मे ,कोलोन बनाने मे विधाता से रेस लगा रहे है हर समय बस दौढ दौढ और कमाना है लो भुगतो खामियाजा, बस पैसा कमाना पर करोना ऐसा कहर ढाया कि गिरे मुँह के बल अब बैठो चुपचाप।जब सरकार के कानून सख्त हो गये तो कोई राह ही नहीं बची ,बहुत अफसोस होता है कि जब लोगों को एक दूसरे से दूर देख कर और वह भी शक की निगाह से देखते हुये कि कहीं संक्रमित तो नहैं है सामने वाला । वह भारत का मिल जुल कर रहने वाला रूप भी बिखर गया क्या लिखूं और क्या ना लिखूं इस सोच में डूबी हूँ।चलिये आज बस यही तक सुरक्षित रहें,स्वस्थ रहें।