mohammed urooj khan khan

Inspirational Others

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mohammed urooj khan khan

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खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

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"जान सकता हूँ, कि अब कहा जाने की तैयारी हो रही है जो ये कपड़े पैक किए जा रहे है " लाठी के सहारे कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए एक वृद्ध आदमी ने अलमारी के पास खड़े हुए अपने 27 वर्षीय पोते विवेक से कहा।


"अरे! दादा जी आप, मैं बस आपके पास आ ही रहा था आपको बताने की मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहा हूँ काम के सिलसिले में ज़ब तक मैं नहीं रहूंगा तब तक आनंदी आपका ध्यान रखेगी मैं उसे आपके पास आने का कह दूंगा " विवेक ने कहा अपने दादा से 


"ठीक है, ये कोई पहली बार थोड़ी है जो तुम उसे मेरे पास छोड़ कर मेरी देखभाल करने के लिए जा रहे हो मैं तो कहता हूँ अब बस तुम शादी कर लो ताकि वो बहु बन कर हमेशा के लिए यहां आ जाए " विवेक के दादा ने कहा।


"जी दादा वो भी कर लूँगा, लेकिन अभी तो मुझे पैकिंग करनी है क्यूंकि सुबह ही निकलना है " विवेक ने कहा मुस्कुराते हुए


"ठीक है, ठीक है कर लेना पैकिंग लेकिन पहले ये तो बताओ इस बार कहा जा रहे हो अभी तो बरसात का मौसम भी नहीं है जहाँ तुम्हें बाढ़ पीड़ितों को देखने जाना हो न ही कुछ और मैंने पढ़ा और देखा है जहाँ तुम्हारी जरूरत हो " विवेक के दादा जी ने कहा।


"अरे दादा! मेरा काम ही ऐसा है कब कहा किसके पास जाना पड़ जाए कह नहीं सकते, दरअसल इस बार हम लोग किसी बाढ़ पीड़ितों के लिए नहीं जा रहे है दरअसल एक गांव है जहाँ कुछ बच्चों में पोलियों का संक्रमण देखने को मिला है बस इसलिए सरकार का खास आदेश है कि जल्द से जल्द वहाँ शिविर लगा कर वहाँ के लोगों का इलाज किया जाए ताकि इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द हो जाए बहुत सालो बाद पोलियों एक बार फिर अपने पैर पसार रहा है उसे जल्द ख़त्म करना होगा बस इसलिए हमें जाना पड़ेगा अपनी टीम के साथ दवाएं तो आज पहुंच गयी है हम लोगों का कल पहुंचना बहुत जरूरी है " विवेक ने कहा।


"अच्छा, ये तो बहुत दुख की बात है पहले की तरह अब भी तुम्हें नहीं रोकूंगा सिर्फ आशीर्वाद दूंगा लेकिन इतना तो बता दो कि किस गांव जा रहे हो कोई नाम तो होगा " विवेक के दादा रघुवीर जी ने कहा उसके सर पर हाथ रख कर


"नाम गांव का, एक मिनट अभी मोबाइल में देखता हूँ " विवेक ने कहा अपना मोबाइल उठाते हुए और कुछ देर बाद मोबाइल में देख कर बोला " जूनागड़, हाँ यही नाम है जूनागढ़ "


गांव नाम बता कर विवेक फिर से अपने काम में लग जाता है लेकिन पास खड़े उसके दादा जी कही खो गए थे और वो अचानक घबराते हुए बोले " नही,, बिलकुल नही,, तुम वहां नहीं जाओगे,,, नहीं जाओगे वहाँ "


अपने दादा को इस तरह रियेक्ट करते देख विवेक ने अपना बेग छोड़ा और उन्हें सँभालते हुए बोला " क्या हुआ दादा? कहा नहीं जाऊंगा आपको क्या हुआ? "


"वही ज, ज,,, जूनागढ़ " रघुवीर जी ने घबराते हुए कहा।


"पर क्यू दादा? मेरी वहाँ जरूरत है मेरा वहाँ होना जरूरी है, आखिर NGO मेरा है, मैं ही नहीं जाऊंगा तो फिर उनका इलाज कौन करेगा " विवेक ने कहा उनकी तरफ देख कर


"मैं कुछ नहीं जानता, मैंने तुझे आज तक कहीं आने जाने से नहीं रोका लेकिन अब रोक रहा हूँ, तू कही और चला जा वहाँ किसी और को भेज दे लेकिन तू वहाँ नहीं जाएगा " ये कहकर रघुवीर जी लाठी के सहारे बाहर की और जाने लगे तब ही पीछे से उनका हाथ पकड़ कर विवेक बोल पड़ा


"लेकिन क्यू दादा? वहाँ ऐसा क्या? मैं क्यू नहीं जा सकता? एक गांव ही तो है वहाँ के लोगों को मेरी जरूरत है, वहाँ के बच्चों को मेरी जरूरत है "


"कह दिया न, नहीं जा सकता है तू, बस मेरी बात की कोई अहमियत है कि नहीं, है कुछ ऐसा जिसकी वजह से तेरा वहाँ जाना ठीक नहीं है, बस तू नहीं जाएगा मैंने कह दिया " रघुवीर जी ने कहा और फिर जाने लगे


"मैं जाऊंगा और जाकर रहूंगा " विवेक ने कहा गुस्से से।


उसे इस तरह देख रघुवीर जी ने अपनी लाठी फ़ेंकी और जमीन पर बैठ गए और बोले " अगर तू जाएगा तो मेरी लाश पर से होकर जाएगा मेरे जीते जी तो तू वहाँ जाने से रहा "


अपने दादा को इस तरह बर्ताव करते देख विवेक ने खुद को संभाला और उनके पास जाकर बैठ गया और प्यार से बोला " दादा, आखिर क्यू मैं नहीं जा सकता कोई ठोस वजह तो होगी न, भला एक गांव में जाने से आप क्यू रोक रहे है पहले तो कही नहीं जाने से रोका आपने हर जिद्द पूरी की "


"बेटा! जहाँ मौत घात लगाए बैठी हो वहाँ तुझे कैसे भेज सकता हूँ, तू ही तो बचा है मेरे पास बाकि सब तो दूर चले गए मुझसे इसलिए कहता हूँ मत जा वहाँ इस बुड्ढे की बात मान ले मत जा वहाँ " रघुवीर जी ने रोते हुए कहा।


अब तो विवेक भी विवश स हो गया था लेकिन वो जानना चाहता था कि आखिर उसके दादा इस तरह क्यू बर्ताव कर रहे है इसलिए उसने कहा " ठीक है नहीं जाता, मान लेता हूँ आपकी बात लेकिन मुझे पता तो होना चाहिए कि आखिर मैं वहाँ क्यू नहीं जा सकता और कौन घात लगाए बैठा है? ये तो मेरा हक़ है ना "


रघुवीर जी ने उसकी तरफ देखा और बोले " कुछ बातें राज बनी रहे तो ही अच्छा है, वरना उन पर से पर्दा हटने के बाद इंसान खुद को ही गुनेहगार समझने लगता है बस कुछ है जिसके चलते मैं तुझे वहाँ नहीं भेज सकता और वहाँ कोई एक शख्स नहीं होगा जो तुझे मारना चाहएगा पूरा गांव ही तेरे खिलाफ खड़ा हो जाएगा फिर चाहे तू उन्हें ही जीवन दान देने क्यू ना गया हो वो अपना बदला जरूर लेंगे इसलिए तू मत जा वहाँ मत जा "


"आखिर क्यू वो लोग मुझे मारेंगे? क्या दुश्मनी है मेरी उन लोगो से? मैं तो उनसे पहली बार मिलूंगा " विवेक ने कहा


"तू भले ही उनसे अनजान है लेकिन वो नहीं वो तुझे पहचान जाएंगे और उनका वो प्रतिशोध तेरी जान ले लेगा जिसे वो बरसों पहले पूरा नहीं कर पाए थे " रघुवीर जी ने कहा।


"प्रतिशोध, केसा प्रतिशोध " विवेक ने कहा।


"हमारा खानदान मिटाने का जिसे जैसे तैसे करके मैंने बचा लिया था लेकिन अगर तू गया तो मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी " रघुवीर जी ने कहा।


"दादा,, दादा मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है खानदान, प्रतिशोध, गांव वाले ये क्या बात कह रहे है आप, प्लीज् मुझे सब बता दीजिये वरना मैं वहाँ चला जाऊंगा और फिर उन्हीं से जान लूँगा कि वो मुझे क्यू मारना चाहते है हमारे खानदान को क्यू ख़त्म कर देना चाहते है?" विवेक ने गुस्से में उठ कर कहा।


रघुवीर जी के पास अब सच बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए उन्होंने विवेक को अपने पास बैठाया और बोले " बेटा एक लम्बी कहानी है या समझ ले मेरे ही किसी गलत कर्म का सिला मुझे भगवान ने ऐसी औलाद देकर दिया जो आगे चल कर हमारे खानदान पर कलंक साबित हुआ "


"आपका बेटा, यानी पापा और कलंक " विवेक ने पुछा हैरत से।


हाँ बेटा तेरा पिता और मेरा इकलौता बेटा जिसे मैंने सब कुछ दिया अच्छे संस्कार दिए पढ़ाया लिखाया पर ना जाने लालच का पाठ उसने कहा से सीख लिया या फिर वो उसके ही अंदर था कभी हमने ही नहीं देखा।


बेटा बात बहुत पुरानी है तेरी दादी और मैं उसी गांव में रहते थे जहाँ तू जा रहा था, हमारी परवरिश वही हुई थी शहर की तरफ तो कभी झाँक कर ही नहीं देखा गांव में ही बहुत खुशहाली थी सोचा भी नहीं था कि कभी शहर जाना होगा


शादी के कई साल बाद तेरे पिता का जन्म हुआ हमारे आँगन में भी किलकारिया गूँज उठी थी हम सब बेहद खुश थे धीरे धीरे दिन ढलते गए गांव की खुशहाली भी अपनी चरम सीमा पर थी सब लोग मिलजुल कर रहते थे हमारे गांव में एक कुल देवी का मंदिर था गांव वालो की उस मंदिर और कुल देवी में बड़ी आस्था थी कहा जाता था गांव में खुशहाली का सारा श्रेय कुल देवी को ही जाता था वो वहाँ आज से नहीं ज़माने से विराजमान थी पीड़िया गुजरती गयी लेकिन वो मंदिर और उसमें रखी कुलदेवी की मूर्ती ज्यो की त्यों ही थी न जरा सी कही हटी थी न बड़ी थी


उसी के साथ एक बात और जो हम अपने पुरखों से सुनते आ रहे थे वो ये थी की मंदिर के आस पास कही गुप्त खजाना है लेकिन कहा कोई नहीं जानता था उसके पीछे की एक अवधारणा थी कि एक बार हमारे गांव में अकाल पड़ गया था बारिश नहीं हुई थी लोग मरने लगे थे वहाँ का राजा अपनी प्रजा को रोज़ मरते देख रहा था तब एक दिन राजा ने स्वप्न देखा कि गांव में बहुत खुश हाली थी लोग एक जगह एकत्रित थे और जहाँ वो लोग इकट्ठा थे वहाँ एक बेहद खूबसूरत सी देवी की मूर्ति रखी हुई थी लोग अपने कीमती जेवर उसे चढ़ा रहे है चारो और खुशहाली ही खुशहाली थी राजा ने ज़ब अपने स्वप्न के बारे में ज्योतिष को बताया तब उन्होंने बताया कि हमारे गांव में ही एक देवी की मूर्ति है जो बिलकुल राजा के स्वप्न में दिखाई देवी से मिलती है अगर उस देवी का मंदिर बनाया जाए उन्हें वहाँ विराजमाना किया जाए और लोग उनकी पूजा अर्चना करे तो शायद हमारे गांव में फिर से खुशहाली आ सकती है हो ना हो वो देवी किसी का स्वरूप है


बस उस दिन के बाद से गांव के कुम्हार के पास रखी उस मूर्ती को एक मंदिर बना कर उसमें स्थापित किया गया और ज़ब उनकी पूजा अर्चना की गयी तो धीरे धीरे गांव में खुश हाली लोट आयी बारिश खूब हुई सब पहले जैसा हो गया।


लेकिन कही न कही राजा को फिर से आभास होने लगा कि कही फिर से ऐसी अनहोनी हुई कि हम लोग दाने दाने को मोहताज हो गए तब क्या होगा इसलिए राजा ने बैठक बुलाई और लोगों से कहा कि वो अपनी कमाई का थोड़ा हिस्सा देवी माँ के चरणों में चढ़ाएंगे जिसे संझो कर रखा जाएगा ताकि भविष्य में कभी सूखा पड़ेगा तो लोगों को अपना हिस्सा मिल जाएगा।


सबने इस बात पर हामी भर दी और रोज़ लोग अपनी कमाई का जो भी वो कमाते सोना, चांदी सिक्के उसका कुछ हिस्सा देवी माँ के चरणों में रख देते देखते ही देखते मंदिर सोने चांदी से भर गया कोई डाकू या लुटेरा उन्हें लूट ना ले इसलिए एक बार और सभा बैठाई गयी जिसमें खजाने को कहा रखे जिससे की वो महफूज रहे सब लोगों ने अपनी अपनी राय दी पर किसी को कुछ सही नहीं लगा और सभा ख़त्म हो गयी


उसी रात राजा ने ख्वाब देखा की मंदिर में रखी मूर्ति बोल रही थी जिसमें उसने बताया की वो एक अनुष्ठान करे जिसका तरीका भी उसने स्वयं बताया और फिर उसके बाद अपना सारा समान मूर्ति के कदमों में रख दे एक मंत्र बोल कर वो जमीन के अंदर चला जाएगा और ऐसे ही वो हर रोज़ करे ज़ब कभी भी गांव और ऐसी मुसीबत आएगी तब सारा खजाना स्वयं बाहर आ जाएगा।


राजा ने ज़ब ज्योतिषी को बताया तो सबने वैसा ही किया और ये क्या सारा खजाना जमीन में दफ़न हो गया उसके बाद लोग जितना कमाते उसका थोड़ा हिस्सा मंदिर में मूर्ति के चरणों में मंत्र बोल कर रख देते और वो गायब हो जाता।



उसके बाद गांव में कभी वो दौर नहीं आया ज़ब वहाँ के लोगो को परेशानी हुई हो धीरे धीरे राजा भी मर गया उसके बाद और राजा आये काफ़ी आक्रमण हुए और पुराने लोग मरते गए नई पीढ़ीयां आती गयी गांव में खुशहाली बरकरार रही कुछ लोगो को वो मंत्र याद रहा कुछ भूल गए अंग्रेज आये और फिर वो खजाना जमीन में ही दफ़न हो गया लोगो ने काफ़ी कोशिश की काफ़ी खुदाई भी की पर कुछ हाथ नहीं आया सिवाय निराशा के सबने मन गढ़ंत कहानी बता कर बात को ख़त्म कर दी।


हमने भी इतना ही सुना था और बाकि लोगो ने भी गांव वालो में से किसी ने भी उस रहस्य को जानने की कोशिश नहीं की सिवाय तेरे लालची बाप और मेरे लालची बेटे के उसके दिमाग़ में जो लालच भर गया था वो हर दम यही कोशिश करता की किसी तरह खजाने का रहस्य वो जान सके।


वो रात रात तक मंदिर में ही चोरी छिपकर रहता कि किसी तरह खजाने का रहस्य जान सके किसी तरह जमीन में दफ़न खजाने को हासिल कर ले


खजाने तक पहुंचने का एक ही रास्ता था गांव की खुशहाली को तहस नहस करना जो की उसके हाथ में बिलकुल नहीं था जैसा की हम सब ने सुना था की गांव में अगर सूखा या कोई आपदा आएगी उसी के चलते खजाना जमीन से बाहर आएगा और ऐसा होना नामुमकिन स था।


ज़ब सारे रास्ते बंद हो गए तब उसने शैतान का सहारा ले लिया गांव पर काला जादू कराने लगा ताकि गांव की फ़सल ख़राब हो जाए लोग दाने दाने को मोहताज हो जाए और ये सब देख कर कुलदेवी वो खजाना जमीन से बाहर ले आये


पहले तो लोगो को लगने लगा की शायद गांव की खुशहाली को किसी की नजर लग गयी है, जो उनकी फ़सल खराब हो रही है उनके जानवर स्वयं ही मर रहे है कुएँ का पानी भी सड़ने लगा है बारिश पर भी बंदिश लग चुकी थी


फिर एक दिन गांव के ही एक आदमी ने तेरे पिता को कुछ ऐसा करते देख लिया था जो उसे नहीं देखना चाहिए था वो श्मशान में बैठ कर कुछ सिद्धि कर रहा था और बलि चढ़ा रहा था गांव के कुछ बच्चों की ज़ब उसने गांव में आकर बताया तो सब हैरान रह गए


सब को शक हो गया था की हो न हो गांव को इस तरह बनाने में इसका ही हाथ है इसने ही देवी का सामना शैतान से कराया है इसको इसकी सजा मिल कर रहेगी खजाने पाने के लालच में इसने ना जाने कितने बेगुनाहों को मार गिराया हमारी फसले तबाह कर दी कुएँ का पानी ख़राब कर दिया और बारिश पर भी पाबन्दी लगा दी वो लोग गुस्से में थे उन्होंने उसे तो मार दिया था लेकिन वो हमें भी नहीं छोड़ना चाहते थे खास कर तुझे जो की उस समय अपनी माँ की कोख में था उन्हें लगता था की तू भी उसी की तरह लालची निकलेगा और एक न एक दिन तू भी उनकी खुशहाली को छीन लेगा अपने बाप की तरह खजाने के लालच में

बस उस दिन के बाद मैं और तेरी माँ चुपके से वहाँ से शहर आ गए थे इन 25 सालो में कभी मुड़ कर नहीं देखा अपना गांव अपने बेटे की वजह से


अगर उन्हें पता चला की तू उसी का बेटा है तो वो तुझे जान से मार देंगे इसलिए तू वहाँ नहीं जाएगा रघुवीर जी ने रोते हुए विवेक को गले लगाते हुए कहा।


थोड़ी देर दोनों खामोश रहे


उसके बाद विवेक ने एक गहरी सास ली और बोला " दादा, आपको पता है कि आखिर मुझे लोगो कि मदद करना क्यू अच्छा लगता है? अगर मुझसे पूछेंगे तो शायद मैं भी नहीं बता पाऊँगा क्यूंकि मैं भी नहीं जानता कि आखिर क्यू मैं लोगो को दर्द में देख उनकी और खींचे चला जाता हूँ, क्यू उनके दर्द को अपना दर्द समझ बैठता हूँ और कोशिश करता हूँ जल्द से जल्द उन्हें राहत पहुँचा दूँ लेकिन अब शायद मुझे इसका जवाब मिल गया है


जो गलती मेरे पिता ने की थी अपने लालच के चलाते खजाने के रहस्य तक पहुंचने के लिए बेगुनाहों का खून बहा कर शायद मुझे ईश्वर ने उनका प्रायश्चित करने के लिए ऐसा बनाया है कि मैं किसी को भी तकलीफ में नहीं देख सकता और पहुंच जाता हूँ उनकी मदद को


दादा शायद उन गांव वालो कि उन बच्चों की मदद करना ही मेरा सौभाग्य हो, जो दुख दर्द पापा ने उन्हें दिए थे उनका छोटा स प्रायश्चित कर सकूँ इस तरह


"पर बेटा वो तुझे मार देंगे " रघुवीर जी ने कहा


मारेंगे तो तब न, ज़ब उन्हें मेरे बारे में पता चलेगा उनके लिए तो मैं एक NGO की तरफ से भेजा हुआ मदद गार बन कर जाऊंगा जो उनका और उनके बच्चों का इलाज करेगा और फिर अपने घर आ जाएगा विवेक ने कहा


ठीक है तेरी मर्जी अगर तुझे यही सही लगता है तो यही सही पर याद रखना बेटा कभी भी अपने बाप जैसा मत बनना धरती पर मौजूद हर चीज पर मनुष्य का अधिकार नहीं है कुछ रहस्य है और उन्हें रहस्य ही रहने देना चाहिए रघुवीर जी ने कहा और विवेक को गले लगा लिया



समाप्त...



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