कहीं प्यार ना हों जाएं ( भाग
कहीं प्यार ना हों जाएं ( भाग
सरिता ने ड्रावर से घड़ी निकालते हुए मनीष को पकड़ाया , "कुछ काम ख़ुद भी किया करो ख़ुद ही रखते हों और फिर अगले दिन शोर मचाते हों , नाश्ता बनाऊं या तुम्हारी घड़ी ढूंढू।"
"क्या करूँ जब तक तुम्हारे हाथ से ये घड़ी नहीं लेता लगता हैं जैसे कुछ छूट रहा है।"
वही सरिता जिसे मैं आज से आठ साल पहले अहमदाबाद के मेडिकल कालेज में मिला था आज भी वही अंदाज़ है, घर से लेकर हॉस्पिटल तक सब कुछ बड़ी सलीके से संभाल रखा है बहुत प्राउड फिल होता है ।मैडम हल्की सी मुस्कान लिए गुलाबी रंग के कुर्ते में कमाल है आज भी मेरी दीवानगी इसके लिए बढ़ती ही जाती हैं।
हॉस्पिटल जाते ही हम दोनों अपने अपने में वयस्त हों गाए, मैं पहली बार अपनी कालेज पहुंचा पहले से ही बहुत कुछ सुन रखा था सीनियर विद्यार्थी कि रैगिंग सब कुछ पर यहां ऐसा कुछ नही हुआ सब कुछ सामान्य चल रहा था, बॉयस हॉस्टल में कमरा भी मिल गया , मेरी जिंदगी खुशबू से भरा हवा का झोंका तो तब आया जब कभी न खुलने वाली खिड़की उस दिन बहुत गर्मी के कारण खोला गया बिलकुल सामने वाले गर्ल हॉस्टल के कमरे कि पीली रोशनी में झूमती नाचती एक लड़की जिसके गाने की आवाज मेरे कमरे में साफ आ रही थी और मैं बस उसे देखता ही रह गया , उसका अल्हड़पन , लंबे बाल , दुबली पतली सी , मेरी बिल्डिंग से और उस सुंदर लड़की की बिल्डिंग कि दूरी कुछ बीस फुट या शायद उससे भी कम हो,सुबह कब हुई पता नहीं था अब बस एक ही काम था सुबह उठकर उसके बारे मे पता करूँ जैसे नाम कौन से क्लास में और भी बहुत कुछ,
"हाय मेरा नाम डाक्टर मनीष फर्स्ट ईयर स्टूडेंट।"
"ओके डियर आई एम योर सीनियर ये बुक्स पकड़ो और मेरे पीछे चलो."

