विश्वास
विश्वास
दीनानाथ के तीन बच्चे है एक लड़का और दो बेटियां, राधा दस साल की है, मीना छ साल की और किशन चार साल का और एक समझदार पत्नी शांति जिसने घर और बच्चों को ऐसे संभाल रखा है। बच्चे जैसे अपनी मां के आंख का तारा थे,
पर शायद भगवान को ये मंजूर नहीं था, कुछ ही दिनों में शांति चल बसी, बच्चों को दीनानाथ ने बड़ी ही अच्छी तरह संभाला था पर बड़े बुजुर्ग के कहने पर दीनानाथ ने दूसरी शादी कर ली , कम उम्र की नाम पुष्पा दिखने में बहुत सुन्दर सुना है चार गांव के लोग उसे देखने आए थे।
तभी गांव की बूढ़ी काकी ने कहा अरे तुम भी क्या देखोगी एक बार दीनानाथ की दूसरी पत्नी को देख कर आ चांद का टुकड़ा है ,
पूरे गांव में वाह वाही हो गई थी, कुछ दिनों तक तो पुष्पा ने बच्चों का बड़ा ध्यान रख पर कुछ दिन बाद जब दीनानाथ का विश्वास जीत लिया तब ...
अजी हम भी शहर चल कर रहे, क्या कहा शहर ! नहीं नहीं हम गांव के आदमी है शहर जा कर क्या करेंगे , हम नहीं जानते चलना ही है मैं अब गांव में नहीं रह सकती, अच्छा पर ये तीन बच्चों का खर्चा ,अरे मैंने सब सोच लिया है बस तुम चलो. अच्छा पत्नी के प्रेम में दीनानाथ ऐसा पड़ा की बच्चों का अच्छा बुरा कुछ न समझ पाया।
अगले दिन पति पत्नी दोनों घर में बाहर से ताला लगाकर अंधेरे में ही शहर की ओर चल दिए और तीनों बच्चों को कहा की हम जल्दी ही लौट आएंगे ।
बच्चों ने बड़े प्रेम से हाँ कह कर सो गए , इस तरह कुछ पांच साल बीत चुके थे , एक दिन दीनानाथ कि पत्नी को उन तीनों बच्चों की याद आ गई और मन ही मन में सोचा अब तो वो तीनों भूख प्यास से मर गए होंगे पर उन्हें वहाँ जा कर देखने की उत्सुकता उन्हें गांव जाने पर मजबूर हो जाते हैं । अगले दिन पति पत्नी गांव पहुंच जाते हैं , किंतु जैसे ही पत्नी ने ताला खोला आश्चर्य में पड़ जाती हैं, तीनों बच्चे एक ही जगह पर बैठे खेल रहे होते हैं मां चीख उठती है और कहती है मुझे तो लगा था की तुम लोग मर चुके होगे . मां पर हम तो तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं,
मैं तुम्हारी मां नहीं हूं और मैंने ही तुम्हें यहां मरने छोड़ था पर तुम लोग !
ये सुनते ही बच्चे राख की ढेर में बदल जाते है , दीनानाथ की पत्नी को जैसे भरोसा ही नहीं हुआ की अचानक जीते जागते बच्चे राख की ढेर में कैसे बदल गए,
तभी दीनानाथ ने पीछे से कहा क्योंकि की इनका विश्वास टूटा है।