खौफ़नाक जंगल (9th Nov)
खौफ़नाक जंगल (9th Nov)
चौथे सेमेस्टर की परीक्षा हो चुकी थी. परीक्षा के बाद हल्के फुल्के माहौल में कुछ बच्चे अपने घरों को जाना चाहते थे . कुछ ने कुछ क्रिएटिव करने का मन बनाया था. बंगलोर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हॉस्टल में कुछ लड़कियों ने ऊटी जाने का कार्यक्रम बनाया. इसके लिए उनलोगों ने सोचा कि लड़कों से भी बात की जाए. अगले दिन कैफेटेरिया में बैठे हुए लड़कियों ने वहाँ आए लड़कों से अपने मन की बात कही. प्रिया, नीतू, शीला, और रत्ना के साथ दो लड़के सुदीप और रोहन चलने के लिए तैयार हो गये. बंगलोर से ऊटी का रास्ता पाँच घंटे का था. वहाँ जाने के लिए सबने बस का रास्ता चुना.
निश्चित दिन सभी छह मित्र सवेरे निकल पड़े. ऊटी जाने का अपना ही आनंद था. हिल स्टेशन होने की वजह से पर्यटकों का अच्छा मेला लगता था. बस पूरी तरह से भरी हुई थी. सुबह चार बजे से यात्रा आरम्भ हुई. वहाँ रहने की प्लानिंग तीन दिनों की थी तो होटल में कमरे बुक कर लिए गए थे. उसी हिसाब से कपड़े वगैरह भी लिए गए थे. बस चल पड़ी. अभी सुबह का अँधेरा छाया हुआ था. बस मैसूर रोड से होती हुई आगे बढ़ चली. ऊटी जिसे उदगमंडलम भी कहा जाता है और पहाड़ों की रानी भी, नीलगिरी पर्वतमाला से घिरा यह क्षेत्र अपनी खूबसूरती के साथ जंगलों के लिए भी जाना जाता है.
बस पूरी गति से आगे बढ़ चली. बाद में पहाड़ी रास्तों पर कई मोड़ थे तो बस धीरे धीरे चलने लगती थी. घाटी के घुमावदार रास्तों से होती हुई बस अपने गंतव्य पर पहुँच चुकी थी. वहाँ से सभी मित्र होटल चले गए. चूँकि रास्ते घुमावदार थे तो नीतू और शीला को यह सहन नहीं हो पाया. उनके सिर घूम रहे थे . दोस्तों ने उस दिन बाहर निकलने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया. शाम को आसपास के मनोरम बॉटनिकल गार्डन घूम आए.
अगले दिन सुबह सुबह सभी निकल पड़े कुन्नूर की ओर. जंगल में जाने की उनलोगों की लालसा प्रबल थी किंतु किसी भी स्थान से शाम के पाँच बजे से पहले ही बाहर आ जाना होता था क्योंकि खतरनाक जंगली जानवर कभी भी गाँव की ओर अपना रुख कर लेते थे. सवेरे ही उधर जाना था ताकि समय से सब निकल जाएँ. सभी ने अपने बैग पीठ पर ले रखे थे.
पाइन फॉरेस्ट में ऊँचे- ऊँचे वृक्षों के बीच सबने समय बिताया. सभी अपनी मर्जी से इधर- उधर घूम रहे थे. बंदरों से बचना भी जरूरी था इसलिए सबने अपना मोबाइल कसकर पकड़ा हुआ था. कब किसके मोबाइल पर ये बंदर झपट्टा मारकर ले उड़ें कहना मुश्किल था. नीतू और शीला जंगल में अंदर तक पहुँच चुकी थीं. अचानक मौसम खराब हो गया. बादल गहराने लगे. अँधेरा छाने लगा. जोर से बिजली कड़क उठी. नीतू और शीला ने घबराकर एक दूसरे को पकड़ लिया. अगले ही पल मुसलाधार बारिश होने लगी. जंगल में दूर तक निकल जाने की वजह से उन्हें बाहर निकलने का कोई रास्ता न दिख रहा था. बारिश के लिए वे तैयार नहीं थीं तो छतरी या रेनकोट जैसा कुछ नहीं था. घबराकर एक पेड़ के नीचे खड़ी होकर थरथर काँप रही थीं. घबराहट में दोस्तों को आवाज देतीं लेकिन तेज बारिश की वजह से आवाज भी दब कर रह जाती. तभी वहाँ पर चार पाँच बन्दर आ गए. वे एक दूसरे से चिपक कर खड़ी थीं. एक ने झपट कर नीतू का मोबाइल अपने कब्जे में लिया. शीला का मोबाइल बैग में था इसलिए बच गया किन्तु वह अभी निकाल नहीं सकती थी. बन्दरों ने बस्ता खींचने का भी प्रयास किया. बस्ते के बाहर वाली जिप में बिस्किट था वहीं बंदरों के हाथ लग गया. उसे लेकर वे खीं खीं करते हुए भाग गये. बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी. अचानक सरसराहट की आवाज हुई. पेड़ के ऊपर से एक मोटा अजगर लटककर फुफकार रहा था. दोनों सहेलियों की चीख निकल गयी. नीतू ने फुफुसाकर कहा कि उनदोनों को बिल्कुल हिलना नहीं चाहिए. नहीं तो अजगर को पता चल जाएगा और वह लपेटे में लेगा. सिर्फ एक मीटर की दूरी पर लटके अजगर को अपना कोई शिकार दिख गया था . वह पेड़ से नीचे उतर कर उधर ही सरकने लगा तो नीतू और शीला की जान में जान आई. बारिश हो ही रही थी. घबराहट में नीतू रोने लगी तो शीला ने पीठ थपथपाकर ढाढस बँधाया . वह भी बहुत डरी हुई थी किंतु खुद पर काबू रखकर चुप थी. जंगल में दूर तक निकल आना इस तरह से खतरनाक साबित होगा यह सोचा भी न था उन्होंने. शीला को मोबाइल का ध्यान आया. उसने मोबाइल बाहर निकाला जिससे अपने दोस्तों को सूचना दे सके कि वे दोनों कहाँ हैं. लेकिन तेज आँधी पानी के कारण नेटवर्क नहीं दिख रहा था. अब दोनों ने निश्चय किया कि एक जगह खड़े रहने से अच्छा है कि वे आगे बढ़कर बाहर निकलने का रास्ता ढूँढें. शीला ने अपना स्टोल निचोड़कर हाथ पैर पोंछे और नीतू को भी उसने ऐसा करने को कहा.
धीरे धीरे दोनों आगे बढ़ने लगीं. कुछ दूरी पर हाथियों का झुंड दिख रहा था. उनलोगों ने सुन रखा था कि जंगली हाथी बड़े खतरनाक होते हैं. सूँढ़ में उठाकर पटक देते हैं.
"शीला, अब क्या होगा”, कहती हुई नीतू की सिसकी निकल गई.
देख, हमलोग पेड़ से सटकर खड़े हो जाते हैं. हाथियों की नजर नहीं पड़ेगी और हमलोग बच जाएँगे. तभी हाथियों का झुंड चिंघार उठा. यह मौसम की खुशी थी या किसी शिकारी को देख लेने का भय, यह समझ नहीं आया . सभी हाथी चिंघार रहे थे. शायद अपने साथियों को आगाह कर रहे थे.
‘देख नीतू, अवश्य ही हमारे आसपास कोई शेर या बाघ है. अब हमें बहुत सावधान रहना होगा.’
“शीला, बाघ हमें खा जाएगा, हम कहाँ आ फँसे हैं.”
“चुप करो, अब जो होगा देखा जाएगा. संकट में हिम्मत रखने में ही भलाई है.”
वह पेड़ के तने से सटकर खड़ी थीं. हाथियों का झुंड किसी अन्य दिशा में बढ़ चला था . पर वह तो जंगल था न. एकाएक पेड़ से मोटी जंगली बिल्ली नीचे कूदी. उसकी हरी हरी आँखें चमक रही थीं. वह एकटक दोनों को देखती हुई गुर्रा रही थी . दोनों सहेलियाँ उसकी आँखों में आँखे डालकर चुपचाप खड़ी थीं. अभी उसे देख ही रही थीं कि अचानक कुछ आकर नीतू के गाल से आकर चिपक गया.
“शीलाअअअअअ...मेरे गाल”, कहकर नीतू चीख पड़ी. उसके चीखते ही वह बिल्ली भाग गई.
अँधेरे में कुछ भी दिख नहीं रहा था. डरते डरते शीला ने नीतू के चेहरे पर हाथ फिराया. शायद चमगादड़ था. डर कर शीला ने अपना हाथ हटा लिया.
“ओह, नीतू, ये वैम्पायर बैट तो नहीं”, कहते हुए शीला की आवाज काँप गई. वैम्पायर बैट पर देखी गई कई मूवीज उन्हें याद आने लगी.
“नहीं, यह बैट भारत में नहीं होता. कहती हुई बह धीरे से उसे हटाने का प्रयास करने लगी. हटाने से वह उड़ गया. तभी फिर से जोर की बिजली कड़की. उस क्षण भर के प्रकाश में दोनो ने देखा कि पेड़ों पर उल्टे लटके हुए चमगादड़ों का पूरा समूह ही था. डरावनी आँखों वाले उल्लू भी वहाँ पर थे.
नीतू, अब आगे बढ़ नहीं तो ये हमें काट सकते हैं. दोनों ने हिम्मत से आगे कदम बढ़ाया. शायद रात का समय आ गया था. आधे चाँद की हल्की रोशनी आ चुकी थी. कहीं कहीं चमकते हुए जुगनूओं का समूह बहुत ही अच्छा लग रहा था, किंतु यह सब निहारने की हिम्मत किसे बची थी. उन्हें भूख भी लग आई थी. शीला ने धीरे से बैग खोला. बाहर की जिप से तो बंदरों ने बिस्किट का पैकेट निकाल लिया था. अन्दर भी एक अधखुला पैकेट था. दोनों ने दो दो बिस्किट खा लिये. पानी पीकर अब वे आगे बढ़ने लगीं. हल्की रोशनी में कुछ दूर आगे जाने पर पहाड़ों के बीच एक गुफा दिखी.
“शीला, चल, हमलोग गुफा के अन्दर चलते हैं. कम से कम जंगली जानवरों से तो बच जाएँगे.”
“हाँ,” कहते हुए शीला उस ओर बढ़ने लगी. गुफा के द्वार पर कुछ अजीब सी दुर्गंध थी. शायद शराब जैसा कुछ महक रहा था. उन्हें डर लगा कि अन्दर किसी और मुसीबत में न फँस जाएँ. दोनों ने वापस लौटने का मन बनाया और इशारे से यह बात कही. वे उल्टे कदमों से वापस मुड़ीं. तब तक मोबाइल बज गया. बारिश रुकने की वजह से शायद नेटवर्क आ गया था. जबतक शीला मोबाइल निकालती और देखती, तबतक वहाँ आदमियों का झुंड इकट्ठा हो गया. आवाज सुनकर सब बाहर निकल आए थे. कबिलाई कपड़ों में वह झुंड उनके चारो ओर इकट्ठा हो गया. आठ या दस लोग रहे होंगे. उनलोगों ने रंगबिरंगे स्कर्ट पहन रखे थे. कमर में कौड़ियाँ और रंगबिरंगी मोतियो से गुँथी एक डोरी बाँध रखी थी. सबने तरह तरह के पंखों से बना मुकुट जैसा कुछ सिर पर पहन रखा था. हाथों में सफेद चूड़े पहन रखे थे जो कि हाथी दाँत का बना प्रतीत होता था. गले में भी बड़े बड़े मनके की बनी मालाएँ थीं. चेहरे पर लाल हरे रंग की लाइनें खिंची हुई थीं. कुछ ने काली लाइन से बिल्ली मूँछों की तरह रेखाएँ खींच रखी थीं. हाथ में हँसिया जैसे धारदार अस्त्र थे. पैरों में भी कौड़ियाँ और सीप के बने पाजेब जैसा कुछ था.
वे उनलोगों से कुछ पूछ रहे थे किंतु उनकी भाषा दोनों को समझ में नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो वे उनसे बहुत कुछ पूछना चाह रहे थे. तभी फिर से मोबाइल बज उठा. उस झुंड से एक ने शीला के हाथ से मोबाइल ले लिया और दूर फेंक दिया. शीला कुछ न कर सकी. वे सब दोनों को घेरकर गुफा के अंदर ले जाने लगे. दोनों समझ गईं कि यही उनकी जिन्दगी की आखरी रात थी. एक दूसरे को कातर निगाहों से देखती हुई दोनों अंदर घुसीं. चारों ओर चषक जैसे बरतन लुढ़के हुए थे. शायद थोड़ी देर पहले शराब पी गई थी क्योंकि अन्दर वह दुर्गंध प्रबल हो गयी जो गंध गुफा के द्वार पर थी. एक बड़ा सा पोस्टरनुमा कुछ टँगा था जिसमें एक डरावनी आकृति बनी हुई थी. उस आकृति में जो चेहरा था उसमें बड़े बड़े दाँत थे और उनसे खून टपक रहा था. उसकी आँखें कौडिँयों की तरह उभरी हुई थीं. हाथ की जगह चमगादड़ के जैसे पंख थे. पैर हाथियों की तरह मोटे मोटे थे. आकृति इतनी भयंकर थी कि दोनों की चीख निकल गयी. चीख निकलते ही एक ने नीतू की गरदन पर हँसिया टिका दिया. तब तक दो लोगों ने मिलकर उनके हाथ पाँव रस्सियों से बाँध दिये और कोने में बैठा दिया. उनकी आँखों से आँसू बहने लगे. बस एक दूसरे को देखकर वे रोए जा रही थीं. तभी एक ने नीतू को कँधे पर उठाया और बाहर ले जाने लगा. उसके पीछे पीछे सभी निकल गए. सिर्फ एक लड़की शीला की निगरानी में अन्दर रही. शीला परेशान हो गई कि वे लोग पता नहीं नीतू के साथ क्या करने वाले थे. उसने सुना था कि कबीला वाले अपने इष्ट के सामने इंसानों की बलि चढ़ाते हैं. हे भगवान...कहीं नीतू को...नहीं नहीं, वह चीख पड़ी. उसके चीखते ही उस लड़की ने शीला की गरदन पर अपना हँसिया टिका दिया. शीला डर के मारे चुप हो गई. उसकी घिग्घी बँध गयी.
“प्लीज मेरी सहेली को छोड़ दो, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ,” शीला घिघिया उठी. हालाँकि वह समझ रही थी कि उसकी भाषा उस लड़की को समझ में तो नहीं आएगी. पर आशा के विपरीत वह मुस्कुरा उठी. इससे शीला को शंका हुई कि वह उसकी बात समझ चुकी थी. अब वह चुपचाप बैठ कर देखने लगी कि आगे क्या होता है. अचानक मोबाइल की घंटी बजी. उस लड़की ने स्कर्ट की कमर से मोबाइल निकाला और बात करने लगी. इसके लिए वह गुफा के अंदर ही बने दूसरे भाग में चली गई. शीला ने ऊधर नजर दौड़ाई तो वहाँ हाथी दाँत के ढेर लगे थे. शीला उस लड़की की अत्याधुनिक मोबाइल को देख समझ चुकी थी कि कि वे सब वास्तव में कबीलाई नहीं थे. कबीलाई होने का स्वांग भरा जा रहा. तबतक उसे सुनाई पड़ा, वह लड़की कह रही थी, “यस बॉस, आई ऐम कमिंग विथ हर. मैं उसके साथ आ रही हूँ.”
‘अच्छा, तो ये अँग्रेजी समझ सकते हैं. अन्य भाषा में बातें करना उनका नाटक था. अब वह थोड़ी सहज हो चुकी थी. मौत सामने थी फिर भी वह शांत थी.
उस लड़की ने बाहर आकर शीला के पैर खोल दिए और बाहर चलने का इशारा किया. शीला चुपचाप बाहर पीछे पीछे निकल गई. बाहर उसने देखा कि नीतू की गरदन बलिनुमा पाटी पर रखी हुई थी. उसकी आँखों में कातर भाव थे . उस लड़की ने शीला की गरदन भी उसी जैसे एक पाट पर टिका दिया.
अचानक शीला चीख पड़ी, “डर मत नीतू. ये कोई कबीलाई नहीं. इन्हें हमारी भाषा भी समझ में आ रही है. ये हाथी दाँत के तस्कर हैं. मरने से पहले मुकाबला कर.”
यह सुनते ही नीतू में बला की ताकत आ गई. दोनों ने भरपूर जोर लगाकर अपनी गरदन उठाई. हाथ बँधे थे लेकिन जूडो कराटे का पैरों वाला करिश्मा दिखाया और दोनों ने एक एक को नीचे गिरा दिया. तब तक दूसरे साथी सावधान हो चुके थे. उन्होंने नीतू और शीला को पकड़ना चाहा. पर दोनों की कराटे शिक्षा काम आई और वे बार बार आक्रमणकारियों को ढकेलने में कामयाब हो रही थीं. सुबह के तीन बज रहे थे. तभी ऊधर टॉर्च की रोशनी चमकी. सभी तस्करों ने देखा कि पुलिस का एक समूह उधर आ रहा था. शीला और नीतू जोर लगा कर चीख पड़ीं, ‘ हमें बचा लीजिए”’ . पुलिस दूसरी दिशा में मुड़ने को थी तभी यह आवाज उन्हें सुनाई पड़ी. अब सब आवाज की दिशा में बढ़ने लगे. तेज रोशनी में दोनों सहेलियाँ कुछ देख नहीं पा रही थीं पर इतना तो तय था कि अब वे बच जाएँगी. तब तक सारे तस्कर गुफा के अंदर जा चुके थै. शीला ने सुना कि वे लोग कह रहे थे कि जल्दी जल्दी गुफा से सामान समेटो और भागो. किन्तु अब समय कम था. पुलिस के साथ चारो दोस्त वहाँ तक पहुँच चुके थे. दोस्तों ने दोनों के बंधन खोले. तब तक नीतू ने पुलिस को बता दिया कि वे गुफा में हैं और अन्दर बहुत सारे हाथी दाँत पड़े हैं. पुलिस ने पूरे गिरोह को पकड़ लिया.
रास्ते में शीला ने पूछा, “तुमलोग यहाँ तक कैसे पहुँचे.”
“बीच में तुम्हारा मोबाइल बजा था एक बार. इससे हमें लोकेशन का आइडिया मिल गया. हमलोग पुलिस के पास गये और यहाँ तक आने में कामयाब हो गये. पर यार ! तुमलोगों को अन्दर नहीं घुसना चाहिए था.”
“हाँ, यह भूल हो गई हमसे”, कहते हुए शीला और नीतू ने कहा,’तुम्हारे जैसे दोस्त थे तो डर काहे का.”
इस खौफ़नाक ट्रिप के बाद उन्होंने काफी सबक भी लिया किन्तु एक संतोष भी रहा कि पुलिस की मदद हो गई.