ऋता शेखर 'मधु'(Rita)

Abstract Inspirational Others

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ऋता शेखर 'मधु'(Rita)

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लघुकथा- डील

लघुकथा- डील

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कॉफी कैफे में बैठे मोहित और अनन्या औपचारिक बातचीत कर रहे थे। दोनों ही अच्छे पैकेज वाले मल्टी नेशनल कम्पनी में कार्यरत थे। शादी डॉट कॉम वाली साइट से दोनों परिवारों ने अपनी सहमति दी थी। चूंकि दोनों एक ही शहर में कार्यरत थे इसलिए अपने अभिभावकों की अनुमति से एक दूसरे को देखने और मिलने आये थे।

कॉरपोरेट स्टाइल में दोनों की बातें इस तरह से चल रही थीं जैसे कोई डील पक्की कर रहे हों।

"मोहित, आप खाना तो बना लेते होंगे।"

"बिलकुल बना लेता हूँ। "

"तो सप्ताह में तीन दिन मैं और तीन दिन आप किचन देख लेंगे"

" मैं पूरे सप्ताह देख लूँगा।"

"सच ! बाहर से सामान कौन लाएगा।"

"मैं हूँ न", मोहित ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अच्छा, शॉपिंग भी करवाएंगे।"

"वीकेंड में शॉपिंग भी और खाना भी बाहर खाएंगे।"

"एक बात और मोहित, आपके पैरेंट्स हमारे साथ ही रहेंगे क्या।"

माता पिता का एकमात्र पुत्र मोहित यह सुनकर मन ही मन आहत हुआ किन्तु बात सँभालते हुए बोला-

"जैसा तुम चाहोगी|"

"मैं नहीं चाहती कि हमारी आजादी में कोई खलल हो। रोक टोक बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी।"

"ओके, फिर मैं अपने पेरेंट्स को नहीं रखूँगा| "

अनन्या का चेहरा ख़ुशी से खिल गया।

"अनन्या, तुम्हारी सारी डील मुझे स्वीकार है। एक बात मेरी भी मान लो।"

"जी, बोलिये।" "तुम्हें भी अपने पेरेंट्स के आने पर पाबन्दी लगानी होगी। मेरी यह बात मान्य है तो फिर रिश्ता पक्का समझो।"

मोहित गंभीरता से बोला।

"मोहित, पेरेंट्स वाली डील कैंसिल कर देते है," अनन्या के चेहरे के बदलते भाव मोहित महसूस कर रहा था।

"जैसा तुम चाहो," कहते हुए विजयी मुस्कान मोहित के चेहरे पर फ़ैल गई।


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