ऋता शेखर 'मधु'(Rita)

Children Stories Inspirational

4.5  

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गुप्त साम्राज्य (२४ नवंबर)

गुप्त साम्राज्य (२४ नवंबर)

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यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में इतिहास की कक्षा लग चुकी थी| प्रोफेसर आ चुके थे| इतिहास में घटी घटनाएँ हमेशा से उत्सुकता और जिज्ञासा पैदा करती हैं| विद्यार्थियों के प्रश्नों से रू-ब रू होते प्रोफेसर हमेशा विषय को बारीकी से पढ़कर आते थे| 

प्रोफेसर ने भारत के स्वर्णिम युग के बारे में पढ़ाना आरंभ किया|

समुद्रगुप्त गुप्त राजवंश के चौथे राजा थे| वे चन्द्रगुप्त प्रथम के उत्तराधिकारी थे एवं पाटलिपुत्र उनके साम्राज्य की राजधानी थी। वे वैश्विक इतिहास में सबसे बड़े और सफल सेनानायक एवं सम्राट माने जाते हैं। समुद्रगुप्त, गुप्त राजवंश के चौथे शासक थे, और उनका शासनकाल भारत के लिये स्वर्णयुग की शुरूआत कही जाती है। वि.एस स्मिथ के द्वारा उन्हें भारत के नेपोलियन की संज्ञा दी गई थी।

चंद्रगुप्त- समुद्रगुप्त की मृत्यु के उपरान्त चंद्रगुप्त द्वितीय जिन्हें चंद्रगुप्त विक्रमादित्य भी कहा जाता है, गुप्तसम्राट् हुए।चद्रगुप्त का साम्राज्य सुविस्तृत था। इसमें पूर्व में बंगाल से लेकर उत्तर में संभवतः बल्ख तथा उत्तर-पश्चिम में अरब सागर तक के समस्त प्रदेश सम्मिलित थे। इस विस्तृत साम्राज्य को स्थिरता प्रदान करने की दृष्टि से चंद्रगुप्त ने अनेक शक्तिशाली एवं ऐश्वर्योन्मुखी राजपरिवारों से विवाहसंबंध स्थापित किए।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जिनका राज्यकाल ३७५ ई से ४१४ ई रहा, भारत के गुप्त वंश के महानतम एवं सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट थे। उनका राज्यकाल में गुप्त राजवंश अपने चरम उत्कर्ष पर था। यह समय भारत का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है। 

भारतीय इतिहास में गुप्तकाल के स्वर्णिम युग को भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार, धार्मिक सहिष्णुता, आर्थिक समृद्धि तथा शासन व्यवस्था की स्थापना काल के रूप में जाना जाता है।

मूर्तिकला के क्षेत्र में देखें तो गुप्त काल में भरहुत, अमरावती, सांची तथा मथुरा कला की मूर्तिर्यों में कुषाण कालीन प्रतीकों तथा प्रारंभिक मध्यकालीन युग के मध्य अच्छे संश्लेषण तथा जीवतंता का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करती है।

स्थापत्य के क्षेत्र में देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भूमरा का शिव मंदिर बोध गया और सांची के उत्कृष्ट स्तूपों का निर्माण हुआ।

चित्रकला के क्षेत्र में अजंता, एलोरा तथा बाघ की गुफाओं में की गई, चित्रकारी तथा फ्रेस्को चित्रकारी परिष्कृत कला के उदाहरण हैं।

साहित्य के क्षेत्र में एक ओर कालिदास ने मेधदूतम्, ऋतुसंहार तथा अभिज्ञान शांकुतलम् की रचना की तो दूसरी ओर नाटक तथा कविता लेखन में एक नये युग की युरुआत हुई। 

विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में आर्यभट्ट ने जहाँ एक ओर पृथ्वी की त्रिज्या की गणना की और सूर्य-केंद्रित ब्रह्माण्ड का सिद्धांत दिया वहीं दूसरी ओर वराहमिहिर ने चन्द्र कैलेण्डर की शुरुआत की।

गुप्तकाल में विज्ञान प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य, स्थापत्य तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में नये प्रतिमानों की स्थापना की गई जिससे यह काल भारतीय इतिहास में ‘स्वर्ण युग’ के रूप में जाना गया।

इतना पढ़ाते पढ़ाते घंटी बज गई| 

तभी एक विद्यार्थी ने कहा, “सर, कल चंद्रगुप्त और ध्रुवदेवी की प्रेमकथा का इतिहास भी बताइएगा| 

“अवश्य”, इतिहास में वर्णित सभी बातों को जानना चाहिए|


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