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Nitu Mathur

Classics

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Nitu Mathur

Classics

ख़ामोशी... तलाश अपनी आवाज

ख़ामोशी... तलाश अपनी आवाज

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जो मैंने कहा वही होगा, समझ गई शनाया? रोनित ने ज़ोर से कहा .. बिल्कुल मां जैसे.. शनाया ने तुरंत जवाब दिया ..

आप चाहते हैं की मैं अपने सभी सपने और इच्छाएं भूल जाऊं,ऐसा कह के उसने ज़ोर से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। नमिता एक सर्वोच्च बलिदान की मूरत बनी , अपनी आंखो में नमी और दिल मैं दर्द लिए ये टकरार देख रही थी।

वो नहीं चाहती थी की उसका इतिहास उसकी बेटी के साथ भी उसी रूप में दोहराया जाए और अपनी संवेदना को सहज आग्रह से तथा अपने गुस्से को दबाती हुई चली गई. 

इतने सालों से वो इसी तरह एक जड़ सी खामोश बनी रही, इसलिए नहीं की वो कमज़ोर है, इसलिए की घर में किसी तरह शांति बनी रहे। पिछले २४ सालों से वो एक बिंदास, हंसमुख, महत्वाकांक्षी नमिता से एक सक्षम, प्रभावशाली परिवार जिसमें जज, वकील सभी बड़े नामचीन लोग हैं वहां की बहु यानी श्रीमती खन्ना बन गई थी।

नमिता एक अच्छी गोल्फर, वक्ता, तथा उसमें लिखने की भी काबलियत थी, उसके प्रशंसकों का ये मानना था की वो एक अच्छी लेखिका और अच्छी वक्ता बन सकती है, 

लेकिन उसने अपने भाग्य के साथ प्रयास किया और खुद को श्रीमती खन्ना के रुप में सच्ची लगन से समर्पित किया ।

चूंकि शादी के बाद उसके दो बच्चे हुए, जिनकी पूरी देखभाल की जिम्मेदारी हेतु उसके आगे सभी इच्छाएं, आकांक्षाऐ दबी रह गई और उसने आपने सभी सपनों को एक बिना चाबी के बंद संदूक मै रख दिए।

जिस प्रकार अधिकतर पुरुषप्रधान परिवारों मैं होता आया की वहां स्त्रियों का आदर सम्मान, प्यार सब होता है परंतु उन्हें किसी भी तरह अपनी " आवाज" उठाने की अनुमति नहीं होती । परिवार के सभी निर्णय पुरुषों द्वारा ही लिए जाते हैं, और पिछले २४ सालों से नमिता की सास अरुंधती ने उसे इसी तरह परिवार के नियम कायदों का पाठ एक रिवाज की तरह सिखाया है शिवन उसका पहला बच्चा था, 

परिवार का वंश आगे बढ़ाने वाला. वारिस.. कुछ इसी तरह के लाड प्यार से वो सबकी आंखों का तारा बन गया, शनाया भी सबकी लाडली थी, लेकिन सभी उसे" पराया धन " पुकारते थे, ये बात नमिता को बहुत कचोटती थी। उनके घर मैं हमेशा लिंग भेद, लड़का लड़की मैं फर्क इसी तरह की बातें चलती रहती थीं। हालांकि दोनों बच्चों मैं तीन साल का फरक था, फिर भी दोनों ही एक बड़े नामचीन इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ते थे , परंतु ये समानता बिल्कुल दिखावटी थी, शिवन के अंक अच्छे आते थे, तो उसकी बहुत सराहना होती थी तथा उसके लिए आगे की पढ़ाई न कैरियर की योजना बनाई जाती जबकि शनाया उससे भी अधिक कुशल तथा होनहार थी, एवम हमेशा कक्षा में अव्व्ल आती थी, सराहना उसकी भी होती थी, मगर उसके आगे की पढ़ाई या कैरियर संबंधित कोई चर्चा नहीं होती थी 

जब तक शनाया १२ साल की थी,तब तक अपनी अच्छे अंकों के लिए उसे बहुत सारी तारीफ, प्यार और खूब उपहारों से उसे बहलाया जाता था,लेकिन धीरे धीरे उसे ये समझ आया की उसकी इच्छा जो की अमेरिका के प्रसिद्ध पारसन कॉलेज ऑफ डिज़ाइन मे दाखिला लेने की थी... वो इन उपहारों के नीचे दबा दी गई है, शनाया अत्यंत दुःखी थी, की उसकी महत्त्वाकांक्षाओं को किसी से तवज्जो तक नही दी, पर उसे विश्वास था की नमिता उसकी बात को ज़रूर सुनेगी क्युकी वो उसकी लाडली है।


शनाया की अपने लक्ष्य को पाने की उतनी ही तलब थी, जितनी नमिता की भी उसी उमर में थी। शनाया ने नमिता को बता रखा था की उसकी इच्छा पारसन कॉलेज में पढ़ने की है,और अपने मेरिट अंको के आधार पर उसने वहां चुपचाप अर्जी भी दे दी है, और वो क्यूं हमेशा रोनित के निर्णय में उसका साथ देतीहै, जिसे उसका मन भी अस्वीकार करता है। नमिता हमेशा सुन के मुस्कुरा देती है,और कहती है कि हमेशा लड़ाई करना, या खिलाफी करना ठीक नहीं होता, या वो लड़ाई जीत के हम महान नहीं बन जाते।

नमिता अपने धैर्य व समझदारी भरी बातों से शना

या को शांत करती थी, लेकिन वो उसे उसके निर्णय के लिए कभी आश्वस्त नही करा पाती थी। शनाया के सवाल उसे सोचने पर मजबूर करने लगे और उसे २४ साल की शादी शुदा जिंदगी में खलबली मचाने लगे, क्योंकि उसने कभी भी अपनी इच्छाएं, अपने सपने तथा महत्वकांक्षा को नहीं समझा और अपनी मर्ज़ी से उन्हे ताक पर रख दिया था।

वैसे तो उसकी जिंदगी एकदम परिपूर्ण थी लेकिन भीतर से वो उतनी ही खालीपन से जकड़ी हुई थी।

नमिता ने शनाया को वचन दिया था कि उसे अपनी महत्वाकांक्षा से कभी समझौता नहीं करने देगी, जो उसने अपनी योग्यता से मिली है , शनाया का अपनी मां के प्रति अटूट विश्वास ने उसके अन्दर की आग को और भी जवलंत कर दिया था। पारसन कॉलेज की तरफ से दिखिले की मेल आने के बाद वो असमान में उगते सूरज की पहली किरण की तरह चमक उठी। वो ये ख़बर अपने पिता को सुनाने के लिए अतिउत्साहित थी, लेकिन उसके पिता की वहां जाने की अनुमति ना देने से उसकी खुशी जैसे खतम सी हो गई।

जिस तरह शनाया ने ज़ोर से अपने कमरे का दरवाजा बंद किया, नमिता बैठक वाले कमरे में रोनित के पास आके हल्की ठंडी सी आवाज़ में बोली। उसकी आंखे नम और सुर्ख थी, और उसकी आवाज़ में एक आदेश रुपी अहसास था। रोनित आश्चर्य से उसे देखने लगा, जैसा उसने सजावटी पत्नी को पहले कभी इस रूप में नहीं देखा था । नमिता ने कहा की वो चाहती है कि शनाया को परसन कॉलेज ऑफ डिज़ाइन में उसके अंको के आधार पर दाखिला मिल गया है और वो उसे वहां आगे पढ़ने भेजना चाहती है. रोनित उसकी बात को कटना चहता था लेकीन उसने मौका नहीं दिया और वो आगे बोलने लगी , शनाया किसी भी कीमत पर अपने सपनों और इच्छाओं का बलिदान नहीं करेगी। नमिता ने रोनित की आंखों में देखा , जैसे कि वो अपने अधूरे सपनों की कीमत मांग रही है और उस आवाज़ की जो बरसों पहले वो खो चुकी थी।

रोनित नमिता के इस आत्मविश्वास भरे निर्णय को सुनकर चकित सा रह गया, उसने इस बारे में अपनी मां के भी राय वा हस्तक्षेप की पालना चाही। नमिता ने अपनी सास अरुंधती की और देखा,जो कि उसकी आंखो का दर्द देख सकती थी, और जैसे एक औरत ने दूसरी औरत को समझ लिया था । रोनित के अत्यंत आश्चर्य और बचैनी, को देखते हुए अरुंधती के पास गई और वहां खड़ी नमिता का हाथ अपने हाथ में ले लिया। रोनित ने इस तरह की मूक स्वीकृति और एकता अपने जीवनमें पहले कभी नहीं देखी थी , और ऐसा दृश्य देखकर उसे स्वयं पे पछतावा हुआ।

रोनित ने शनाया का दरवाज़ा खड़खड़ाया, जिसे उसने बहुत ही असंतोष से खोला और वहां अपने पिता को देखकर आश्चर्यचकित रह गई , उसके पिता के चेहरे पे खुशी और आंखो में उसके लिए गर्व था, उसने शनाया को गले लगाया, उसे भेदभाव के कारण माफ़ी मांगी और उसे कॉलेज में दाखिले की बधाई दी। उसने कहा कि उसकी मां की चुप्पी में बहुत ताक़त है.. उसकी आवाज़ एक नमक की तरह जो अपनी उपस्थिति नहीं जताता लेकिन उसकी अनुपस्थिति से हमारे जीवन के सारे जायके फीके पड़ जाते हैं। रोनित ने कहा कि उसे अभिमान है कि वो एक होनहार, कुशल, बहादुर और सुंदर बेटी का पिता है, और वो हमेशा उसके पंखों के नीचे की हवा बनेगा, सहारा बनेगा।

तो आप सभी सशक्त और प्रतिभावान महिलाएं, जिन्होंने नमिता की तरह ही बलिदान एवम अनुपालना का जीवन जीया है, अपनी "आवाज़" ढूंढिए। सिर्फ़ आप खुद ही अपने जीवन को अपने सपनों से, इच्छाओं से अपना महत्व समझ सकती हैं और ख़ुद आगे बढ़ सकती हैं।  

" खुद ही को कर बुलंद इतना

 कि खुदा ख़ुद तुझसे ये पुछे कि

 बता तेरी रज़ा क्या है"

आप अपने आप में पर्याप्त हैं, परिपूर्ण हैं , खुद से मुहब्बत कीजिए, और ऐसा ज़हां बनाइए अपकी 

 ""आवाज का मायना " हो, अपकी आवाज शक्तिशाली है,

अपकी " आवाज " अपकी दुनिया बदल देगी, 

अपकी "आवाज" अपकी पहचान है..

आप खुद अपनी " आवाज" हैं।


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