Nitu Mathur

Inspirational

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Nitu Mathur

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संस्कार या सज़ा

संस्कार या सज़ा

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भोर कि लालिमा जब पहली पुकार के साथ निकली तो घर में धूप बत्ती की खुशबू चारों ओर महकने लगी, हल्की सी रौनक तब हुई जब गुरनूर बाहर के आंगन में सफाई करके सबके लिए चाय बनाने चली गई। जब पास के गुरद्वारे से शबद सुनाई देने लगे तो पम्मी जल्दी से अपना दुपट्टा लेकर बाहर जाने लगी। "मां मैं गुरद्वारे जा रही हूं", कहते हुए वो घर के बड़े से दरवाज़े से निकल कर सर पर दुपट्टा लिए गुरुद्वारे चली गई। गुरनूर का ये हमेशा का रूटीन था,वो रोज सुबह नानक साहेब के माथा टेक कर ही अपने दिन की शुरुआत करती थी। ये संस्कार उसे अपने परिवार, विशेष रूप से अपनी दादी से मिले थे। उसके सर से दुपट्टा तब तक नहीं हटता था जब वो वापस घर में कदम नहीं रखती थी। उसके बाद भी वो वापस सलीके से अपने कमरे में जा कर अपना काम करती थी।


पारंपरिक सिक्ख परिवार में गुरनुर और उसका बड़ा भाई गुरप्रीत भी था,जो पूरे शहर में अपने रोब से मशहूर था। पिताजी पीडब्ल्यूडी में असिस्टेंट मैनेजर थे और मां सरकारी स्कूल में टीचर थी। छोटी उम्र से ही गुरनूर रोज सुबह जल्दी उठकर नहा धो कर ग्रंथ साहिब का पाठ करती थी, फिर स्कूल जाती थी। एक शांत बहती झील जैसी गुरनूर मानो उसने कभी बोलना सीखा ही नहीं था, अपने माता पिता की प्यारी आज्ञाकारी बेटी अपने आस पड़ोस में भी अपने शांत स्वभाव और अच्छे गुणों की वजह से सब में लोकप्रिय थी। वहीं दूसरी ओर गुरप्रीत गबरू मुंडा, रौब वाला हमेशा कमांड की टोन में ही बात बात करता था। उसका ये स्वभाव उसके माता पिता को भी अखरता था लेकिन क्युकी वो बेटा था, तो उसे मनमर्जी करने की हरी झंडी दी हुई थी। वो गुरनूर को भी बिना बात के टोकता रहता था, गुरनूर को गुस्सा भी आता था,लेकिन उसे हमेशा की तरह शांत रहने के लिए ही कहा जाता था।


गुरनूर के कॉलेज में ह्यूमैनिटी स्टूडेंट्स का आसाम का २ दिन का चंडीगढ़ का ट्रिप प्लान हो रहा था। गुरनूर का भी जाने का मन था, उसकी दोस्त जसलीन ने पहले ही नाम लिखा दिया था, लेकिन घर में इनकार के बाद गुरनूर ने अभी तक ट्रिप के लिए अपना नाम एनरोल नही कराया था। जसलीन ने कहा कि वो घर आके उसके मम्मी पापा से उसके लिए सिफारिश करेगी। जसलीन के दबाव डालने के बाद निर्देशों की एक लंबी सूची के साथ गुरनूर को मंजूरी मिल गई थी। ये मत करना, ज्यादा देर तक बाहर नहीं घूमना, ज्यादा किसी से बात नहीं करना और अपने सूट से दुपट्टा कभी मत हटाना....ये सब नियम कायदे अपने सूटकेस में रखकर वो जसलीन के साथ कॉलेज चली गई जहां सब एक साथ बस में चंडीगढ़ जा रहे थे। पूरा ट्रिप गुरनूर के लिए एक सुहाने सपने जैसा था। होटल में फ्रेश होकर सभी स्टूडेंट्स सारा दिन घूमने में बिता दिया। शाम को उसी होटल में सभी के लिए पार्टी रखी गई थी। सब रेडी हो रहे थे, गुरनूर ने अपने क्रेप सिल्क वाला दुपट्टा सूट पहना था। "ये क्या है गुरनूर?? तुम ये पहन के पार्टी में चलोगी, तुम्हारे पास स्कर्ट या पैंट्स नहीं है?".... "नहीं, मैं इसी में ठीक हूं, मेरे पास कोई वेस्टर्न ड्रेस नहीं है, और न ही मैंने कभी ये पहनी है, सो प्लीज मैं ऐसे ही ठीक हूं यार", गुरनूर ने शीशे के सामने बाल बनाते हुए कहा"। कोई बात नही, मेरे पास एक पैंट और टी शर्ट है, वो तुझ पे बहुत अच्छा लगेगा, प्लीज मेरे लिए पहन ले यार, नहीं तो पार्टी में अच्छा नहीं लगेगा" जसलीन ने अपनी ड्रेस उसे दिखाते हुए कहा। बहुत मिन्नतों के बाद वो तैयार हुई। ब्लैक टॉप और पैंट में गुरनूर बहुत स्मार्ट लग रही थी। पार्टी में सबने बहुत एंजॉय किया, फोटोज भी ली। अगले दिन शाम को वो सब वापस पटियाला के लिए निकल रहे थे। " जसलीन, तेरे मोबाइल में मेरी फोटो तो तो प्लीज डिलीट कर देना, घर में किसी ने देखा तो बिना बात के ही तमाशा हो जाएगा", गुरनूर ने जसलीन को डरने के अंदाज में कहा। "अरे, तू चिंता मत कर, कुछ नहीं होगा, तेरे घर में सब फोटो देखेंगे भी और तारीफ भी करेंगे, आई प्रोमिस देट" । जसलीन अपने घर जाने से पहले गुरनूर के साथ उसके घर गई और सबको ट्रिप के बारे में बताया।


देखो आंटी, चंडीगढ़ कितना सुंदर है, अपने मोबाइल में से जसलीन ने ट्रिप की फोटो सबको दिखाई। अरे, ये गुरनूर ने पैंट शर्ट क्यूं पहनी है, कोई स्टॉल भी नहीं लिया है, ड्रेस पे, इसने सूट क्यूं नहीं पहना", गुरनूर की मां ने हैरानी और थोड़े गुस्से से गुरनूर की ओर देखा और पूछा। "पार्टी में सबने स्कर्ट, फ्रॉक, और पैंट ही पहने थे आंटी, इसलिए मैने ही उसे ये पहनने के लिये बोला था, आप नाराज मत होइए" ,जसलीन ने गुरनूर की साइड लेते हुए बोला, और फिर हमारी लेक्चरर ने भी तो पैंट पहनी थी आंटी, उसमें क्या बड़ी बात है, मौके के हिसाब से हर तरह की ड्रेस पहन सकते हैं, जसलीन ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, कोई bhi पहनावा यदि सही नियत और सादगी से पहना जाए तो उसमें कोई बुराई नहीं होती, और आजकल की लड़कियां तो ये सब अपनी आम जिंदगी में भी पहनती हैं। पहनावे से उसका चरित्र नहीं बदल जाता या सोच नहीं बदलती", "मैं बचपन से गुरनूर को जानती हूं, देखती आई हूं, वो हमेशा खामोश सी, सहमी सी ही रहती है, उसने हमेशा आप लोगों का कहना माना है, क्या एक दिन वो अपनी मर्जी से जी आई तो क्या हो गया", जसलीन ने गुरनूर को अपना हाथ देकर अपने पास बुलाया और उसकी ओर विश्वास से देखने लगी। गुरनूर की मां की आंखों में भर आया, वो गुरनूर की ओर बढ़ी उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे जोर से गले लगा लिया, गुरनूर भी अपनी मां की बांहों में लिपट कर रो पड़ी। दरवाजे के पीछे खड़े उसके पिता और भाई की भी आंखें नम हो गई थी। थैंक्यू जसलीन पुत्तर, तूने हमारी आंखें खोल दी, रब तुझे बहुत खुशियां दे", गुरनूर की मां ने पूरी आत्मीयता से जसलीन का धन्यवाद किया।


:: गुरुनूर, घर का गुरूर है... रब का नूर है। ::


मेरी बच्ची ने हमेशा एक अच्छी बेटी बन के इस घर की, हम सब की सेवा की है, तो उसे भी अपनी बात रखने का, अपनी मर्जी से खाने, पीने, पहनने का...मन मुताबिक जीने का पूरा हक है।

पूरे परिवार ने गुरनूर को खुशी से गोद में उठा लिया था।


अपने बच्चों को संस्कार ज़रूर दीजिए लेकिन ध्यान रखिए कि वो ज्यादा सख्ती से कहीं बच्चों की खुशियों की बेड़ी ना बन जाए। अपनी परवरिश पर भरोसा रखिए और अपने बच्चों को नन्हे पंखों से आसमान में उड़ना सिखाइए। 

संस्कारों को सहज रखिए, उन्हें सज़ा मत बनने दीजिए।



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