Nitu Mathur

Inspirational

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Nitu Mathur

Inspirational

परवरिश

परवरिश

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"मम्मी .. उठो, ये गरम सूप पी लो प्लीज़, आपको अच्छा लगेगा, आपने दो दिन से कुछ नहीं खाया है," मानस ने वसुधा को दोनों हाथों के सहारे से ठीक से बिठाया, कमर के पीछे सिरहाने को ठीक करके उसे वापस शॉल पहनाया और अपने हाथों से धीरे धीरे उसे गरम सूप पिलाने लगा। वसुधा को लगा जैसे वो एक लंबी गहरी नींद से जागी हो, ठंड के दिनों में भी उसके माथे पर से हल्की पसीने की बूंदें निकल रही थी, सर मानो एकदम हल्का ही हो गया था और उसकी आंखों की बेचैनी को जैसे थोड़ा आराम मिल गया था। धीरे धीरे अपनी हालत को समझते हुए उसकी नज़र कमरे के चारों तरफ घूमी, ये उसका बेडरूम तो नहीं था, ज्यादा ज़ोर ना देते हुए वो मानस को ताकने लगी मानो उसे पिछले दो दिनों का पूरा वाक्या जानना था, समझना था।


वसुधा ने अपनी आधी खुली आंखों से अपने बेटे को देखा, फिर धीरे से उसकी नज़र दरवाज़े पर गई, मानो वहां से कोई और भी अंदर आने वाला है। साइड टेबल पर रखी दवाइयां और इंजेक्शन देख के उसे लगा कि उसे माइग्रेन के अलावा कुछ और भी बड़ा स्ट्रोक हुआ है, हाथ में लगे केनुला से उसके हाथ नीले पड़ गए थे, और ठंड के कारण मानो शिथिल पड़ गए थे। माथे पर बंधे स्कार्फ को एक हाथ से ठीक करते हुए उसने अपने बेटे मानस से पूछा, "मानस मुझे सही से बताओ कि मैं हॉस्पिटल में कैसे आई, मुझे क्या हुआ था?" "अरे कुछ खास नहीं मम्मी, आपको आराम की जरूरत थी, जो आपको घर पर अच्छे से नहीं मिल पाता ना, इसलिए हम आपको यहां रेस्ट करवाने लाए हैं, पर आप बेफिक्र रहिए, आप वापस अपने घर जल्दी ही आ जाओगी, मेरी प्यारी प्यारी मां, और हां मम्मी आप टेंशन मत लो मैंने सुबह मनन का लंच भी पैक कर दिया था, उसके फेवरेट मेयो सेंडविचस, वो शाम को आपसे मिलने आयेगा, और हां सबसे बड़ी बात डैडी भी लैंड हो गए हैं, बस आते ही होंगे"। मानस ने हंसते हुए हल्के अंदाज में वसुधा को तसल्ली दी और खड़े होकर अपनी मां को अपनी बांहों को गले लगाया और उसका स्कार्फ सही करने लगा। 


वार्ड की खिड़की से सूरज की हल्की रोशनी वसुधा के मुंह पर आ रही थी मानो उसे गरम सेक दे रही हो। तभी उसके कानों में हल्की आवाज़ आने लगी, मानस डॉक्टर से बात कर रहा था, उसके बाद डॉक्टर वसुधा के पास आए और बोले, "हैलो मिसेज दीक्षित, अब आप बिलकुल ठीक हैं और कल तक अपने घर भी जा सकती हैं, भगवान का आशीर्वाद, आपके परिवार की प्रार्थनाओं और विशेषकर आपके बच्चों का आपके प्रति प्यार, सेंस ऑफ रिस्पांसिबिलिटी और समय से समझदारी से डिसीजन लेने की वजह से सही समय पर आपका ट्रीटमेंट शुरू हो गया, नहीं तो लो बीपी की वजह से आपको मेजर स्ट्रोक भी हो सकता था, आप बहुत लकी हैं कि आपके दोनों बच्चे बहुत ही प्यारे और समझदार हैं, जिन्होंने इस कठिन परिस्थिति को भी अपनी समझदारी से बहुत ही अच्छे से संभाला है, and manas, you are very bright student i must say, wish you all the luck as we need good doctors. वसुधा की नम आंखें अब पूरी भर आईं और उसके आंसू उसके गालों को पार करके हाथों तक बहने लगे। वो बच्चे जिनको उसने अपने प्यारे से घोंसले में पाला और बड़ा किया था, आज इतने बड़े हो गए थे आज वो उस मां की जिम्मेदारी उठाने लायक हो गए थे, आज वो सबसे बड़े हो गए थे। 


वसुधा के पति नीलेश की पोस्टिंग इन दिनों हैदराबाद थी, और वो अपने दोनों बेटों मानस और मनन के साथ दिल्ली में रहती थी। दिल्ली में उनका अपना घर था जहां वो पिछले 20 सालों से अपने पति और बच्चों के साथ रह रही थी। नीलेश कॉरपोरेट सेक्टर में आईटी प्रोफेशनल थे और काम की वजह से वो ज्यादातर देश विदेश में ट्रैवल करते रहते थे। अपने दोनों बच्चों की पढ़ाई और देखभाल और पूरे घर की जिम्मेदारी सब कुछ वो खुद ही किया करती थी, क्यूंकि और कोई ऑप्शन ही नहीं था। 

बड़ा बेटा मानस मेडिकल स्टूडेंट था और सेमेस्टर ब्रेक के लिए घर आया हुआ था, वहीं छोटा बेटा मनन अपने सीनियर सेकेंडरी की तैयारी कर रहा था। 


बड़े प्यार से उसने अपने घर को सजाया और संवारा था। एक अच्छी पत्नी और मां बनकर अपनी सभी जिम्मेदारियों को वो बहुत प्यार से निभाती थी। ए से जेड तक सारे काम जो एक होम मेकर की गिनती में भी नहीं आते,वो करती थी। चूंकि उसका ज्यादातर समय अपने बच्चों के साथ ही बीतता था, तो बच्चों की जुबान पर भी हमेशा मम्मी, मम्मी ही का नाम आता था, बच्चों का लंच हो या स्कूल का ओपन हाउस, एनुअल डे हो या उनकी फ्रेंड्स पार्टी या बच्चों के साइंस प्रोजेक्ट्,... वसुधा सब कुछ बड़े अच्छे से मैनेज कर लेती थी। बच्चे भी खाली समय में उसका हाथ बटाते थे, और उसके साथ अपने स्कूल के किस्से शेयर करते थे। उसके बच्चे उसे अक्सर "मैजिसिशियन मॉम" भी कह कर बुलाते थे। 


तीन दिन पहले अपने हल्के माइग्रेन को इग्नोर करके वसुधा ने माइग्रेन की टेबलेट ली और किचन में बच्चों की पसंद का गाजर का हलवा बनाने लगी, अचानक ही जोर से चक्कर आया और वो नीचे गिर पड़ी, साथ में गिरे बरतन की आवाज़ से मानस किचन में आया तो उसने तुरंत अपने छोटे भाई के साथ मिलकर के अपनी मम्मी को बेड पे लेटाया और हॉस्पिटल कॉल किया, काफी देर तक भी होश ना आने के कारण उसने कोई चांस नहीं लिया और तुरंत अपनी मां को हॉस्पिटल ले आया था, मनन ने अपने पिता को भी फोन कर दिया था। हॉस्पिटल की इमरजेंसी में वसुधा को एडमिट कर लिया गया था, बीपी काफी लो होने की वजह से हेड स्ट्रोक हो गया था जिसकी वजह से वो ब्लैकआउट हो गई थी, इसलिए एमआरआई आदि सारे टेस्ट करवाने पड़े थे।


अब वसुधा को काफ़ी आराम था, उसके पति भी आ चुके थे, उन्होंने वसुधा के सिर पर हाथ रखा, उसे हौसला दिया और प्यार से उसका सिर सहलाने लगे। "मेरे बच्चों की मां अब बस रेस्ट करेगी, और घर मैं संभालूंगा", नीलेश ने हंसते हुए अंदाज में माहौल को हल्का करते हुए कहा, " मुझे अपने दोनों बेटों पर बहुत फक्र है, मुझे पूरा विश्वास है कि ये अपने आने वाले जीवन को भी इसी तरह प्यार और समझ से जीयेंगे...Love you my brave boys and their lovingly mom" नीलेश ने अपने दोनों बच्चों को पास बुलाया और उन्हें प्यार से गले लगा लिया। 


अपने बच्चों को सपने बुनने के लिए हौसला दीजिए, उड़ने के लिए पंख, वापस लौटने की वजह और संभलने के लिए जमीं भी दीजिए। पेरेंटिंग कभी भी मैनुअल के साथ नहीं आती और ना ही कोई किताब हमें बच्चों की परवरिश सीखा सकती है। बच्चे वो नहीं करते जो आप उनसे कहते हैं, बच्चे वही करते हैं जो आप करते हैं। 


           


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