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Nitu Mathur

Classics Inspirational

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Nitu Mathur

Classics Inspirational

बंधेज

बंधेज

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आने वाला हर मौका नई तकदीर लाता है

उसे बेझिझक अपनाएं, अपना बनाएं....

*मॉम ! अब मेरे आर्ट एंड क्राफ्ट के सेशंस खत्म हो गए हैं, आप चाहें तो मेरे एक्रेलिक कलर्स यूज कर सकती हैं, मुझे वैसे भी इन एक्टिविटीज में ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं है"। सान्या ने आधे खाली, कुछ भरे रंगों की बॉटल्स के साथ अपना यूज किया हुआ पूरा किट साइड टेबल पर रखा और फिर जल्दी से अपने रूम में चली गई। उसकी मां प्रतिमा को लगा जैसे उसकी बेटी ने उसके ऊपर बहुत बड़ा अहसान किया है। प्रतिमा के हाथो में किचन क्लॉथ था, क्यूंकि उसने अभी अपने पति विनय का लंचबॉक्स बना के पैक किया था। प्रतिमा, मैं चलता हूं, शाम को मिलते हैं, विनय भी हड़बड़ाहट में निकल गया।

प्रतिमा एक सुंदर स्मार्ट, सुलझी हुई, और बहुत प्रैक्टिकल लेडी थी। उसे फैब्रिक पेंटिंग और डिजाइनिंग का बहुत शौक था, लेकिन सिर्फ २१ साल की उम्र में शादी होने के कारण वो अपने इस शौक को कैरियर में नही बदल पाई। अपनी मास्टर डिग्री के आखरी साल में ही विनय के साथ उसका रिश्ता तय हो गया और जल्द ही शादी भी हो गई। लेकिन उसे इस बात का कोई अफसोस नहीं था, वो एक बहुत ही खुशनुमा और खुले विचारों वाली लड़की थी। प्रतिमा को लगा कि शायद सही समय पर शादी हो जाए तो वो भी सही है, और क्यूंकि प्रतिमा के माता पिता भी उसकी शादी से बहुत उत्साहित और खुश थे, तो उसने फिर आगे कोई प्रश्न नहीं किया, वहीं विनय भी शांत और सुलझा हुआ लड़का था और कॉर्पोरेट सेक्टर में काफी बड़ा प्रोफेशनलिस्ट था। शादी के दो साल बाद उन्हें एक बेटी हुई, जो आज २० साल की हो चुकी थी, और बी. टेक कर रही थी। इतने सालों में प्रतिमा ने अपना पूरा समय घर की देखभाल और पति और बेटी की ज़रूरतों को पूरा करने में बीता दिया था। उसके पति विनय ज्यादातर अपने काम के सिलसिले में टूर पर रहते थे। इसलिए प्रतिमा का काफी समय बस अकेले घर की जिम्मेदारी पूरी करने में ही निकल जाता था। विनय ने इस बात पर कभी गौर भी नहीं किया कि उसे प्रतिमा को अपना टाइम भी देना चाहिए, कभी घर में होते हुए भी विजय फोन कॉल्स और अपने आईपैड में ही बिज़ी रहता था, वहीं उसकी बेटी भी अब बड़ी हो गई थी इसलिए उसे अपना स्पेस चाहिए था। विनय के माता पिता दूसरे शहर में रहते थे,जब कभी वो आते तो घर में रौनक लगती थी। लेकिन उनका ज्यादातर मन अपनी रिश्तेदारी में ही लगता था, इसलिए वो ज्यादर वहीं रहते थे। प्रिया की इस हॉबी का उनको भी बखूबी पता था। लेकिन किसी से भी उसे कोई प्रोत्साहन या तारीफ नही मिलती थी। इसलिए प्रतिमा भी सबके सामने अपने इस शॉक को दबाकर चेहरे पर हंसी और मुस्कान बिखेरते हुए अपने सच्चे मन से सबकी सेवा करती थी। 

मज़े की बात ये है कि "ना अपोज ना सपोर्ट" जैसी हालत थी। 

क्यूंकि खुद प्रतिमा ने ये मान लिया था की घर की जिम्मेदारी उसके इस शौक से बहुत बड़ी है और ज्यादा मायने रखती है। 

लेकिन चूंकि वो अपने आर्ट और क्राफ्ट के पैशन को ज्यादा दिनों तक नहीं दबा के रख पा रही थी , उसने धीरे धीरे खाली टाइम में दुपट्टे डिजाइन करने शुरू किए, और इस पर बिना किसी एक्स्ट्रा खर्चे के अपनी बेटी की स्कूल के पुराने समान से ही शुरुआत करने लगी। शॉल, साड़ी, स्कार्फ, दुपट्टे और चादर उसके हाथ की कारीगरी से मानो खिल जाते थे,एक नई रंगत पा जाते थे। लाल, गुलाबी, पीले, हरे रंगों इंद्रधनुष अब उसकी फीकी सी दुनियां में सतरंगी रंग भरने लगा था। लेकिन फिर भी इस रंगों भरी चमकीली दुनियां को अभी बाहर खुली हवा में सबके सामने आना बाकी था।

अपने मिलनसार प्रवृत्ति के कारण वो अपने आस पड़ोस और फ्लोर मेट्स से भी बड़े प्यार से मिलती थी, प्रतिमा ने बातो बातो में उन्हें बताया कि वो ट्रेडिशनल प्रिंट के दुपट्टे और साड़ी भी डिजाइन करती है। प्रिया, जो कि उसकी फ्लोर मेट थी, उसकी काफी अच्छी दोस्त बन गई थी, दोनों ही दिन के टाइम जब दोनों के घर में उनके अलावा कोई नहीं होता था, एक दूसरे के साथ अक्सर चाय, छोटी मोटी शॉपिंग या आउटिंग में अपना टाइम स्पेंड करते थे। एक दिन यूं ही चाय के कप के साथ प्रतिमा ने प्रिया को अपने इस हॉबी, पैशन के बारे मे बताया , और ये भी बताया कि वो नहीं चाहती कि उसके इस काम से घर की देखभाल या दूसरे काम में कोई बाधा आए, वो अपने परिवार को भी पूरा समय देना चाहती है, लेकिन साथ साथ उसका मन ये भी है कि उसका काम लोगों तक पहुंचे, उन्हें पसंद आए। ये बोलकर प्रतिमा जाने किस दुविधा के भंवर में डूब गई थी। " अरे प्रतिमा, बस इतनी छोटी सी बात में कन्फ्यूज हो गई?", प्रिया ने उसका हाथ हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा," जब तुम्हारे अंदर इतना टेलेंट है तो उसे अभी तक क्यूं दबाकर रखा है? और जैसा तुमने बताया तुम्हे दिन में बहुत खाली समय भी मिल रहा है, तो सुनो....तुम अपनी डिजाइन और फैब्रिक की एक छोटी सी एग्जिबिशन क्यूं नहीं लगाती? , वो भी अपनी सोसायटी के क्लब हाउस में ?, तुम्हारा कोई खर्चा भी नहीं होगा, और एक छोटी सी शुरुआत हो जायेगी।" "सच में??", प्रतिमा ने बड़ी आंखे खोलकर आश्चर्य से कहा। "हां बिल्कुल , मैं आज ही सोसायटी ऑफिस से तुम्हारे लिए परमिशन लेती हूं और वहीं से ब्रोशर्स भी प्रिंट कराती हूं"। " तुम इतना क्यूं सोच रही थी इतने दिन, मुझे पहले ही बता दिया होता", प्रिया ने एक विश्वास के साथ उसे कहा। उसकी बातें सुनकर प्रतिमा की आंखे भर आईं,, और उसका आवाज मैं नमी आ गई। आज से पहले कभी किसी ने उसके काम के लिए इतना आगे बढ़कर नहीं सोचा था। उसने प्रिया को थैंक यू बोला और उसे गले लगा लिया।

एक एग्जिबिशन से आगे बढ़ते हुए आज प्रतिमा ने अपना खुद का छोटा सा बुटीक,.. " बंधेज" अपने ही सोसायटी के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में खोल लिया था, और जो कि काफी लोकप्रिय हो गया था, काम बढ़ने के कारण उसने एक दो कारीगर भी रख लिए थे। मांगे हुए रंगों से शुरुआत के साथ आज उसने अपना खुद का काम, अपनी नई पहचान बना ली थी। 

प्रतिमा के पास हुनर, शिक्षा, समझदारी सब कुछ था, कमी थी तो एक उस स्पार्क,उस आत्म विश्वास की जो प्रिया ने उसके मन में जगा दी थी। तबसे प्रिया उसकी सबसे अच्छी दोस्त बन गई थी, और वो उसके इस वेंचर में उसकी हर तरह से मदद करती थी। आज प्रतिमा एक कुशल एंटरप्रिन्योर बन चुकी थी।

घर में उसके पति, सास ससुर पहले आश्चर्य से फिर खुशी से उसका सम्मान करने लगे, उसकी कीमत समझने लगे।

 हम सभी में कुछ न कुछ ख़ास है,जो हमें दूसरों से अलग बनाता है, अपने इस ख़ास को पहचानिए। हर किसी की जिंदगी में "प्रिया" नहीं होती। आप खुद अपनी "प्रिया", अपनी प्रेरणा बनिए और बिना किसी संकोच के अपना पैशन फॉलो कीजिए, अपने अधूरे, दबे हुए सपनों को पूरा कीजिए। आप खुद अपनी तकदीर बनाइए, हर अवसर का खुली बाहों से स्वागत कीजिए। आप सब कुछ कर सकती हैं।


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