खाली फ्रेम

खाली फ्रेम

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आज सुबह से ही रिद्धि की बहुत याद आ रही थी। कैलेंडर पर नज़र पड़ी तो निहाल चौंक गया। आज उन दोनों की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह थी। लेकिन दोनों को एक-दूसरे से अलग हुए बीस साल हो चुके थे।

निहाल के कदम सहसा ही उस कमरे की ओर बढ़ गए जिसमें उसने रिद्धि से जुड़ी चीजों को बंद कर दिया था।

कमरे की बत्ती जलाते हुए सहसा उसका पैर किसी चीज से टकराया। उठाकर देखा तो एक फोटो फ्रेम था मगर खाली। उसे याद आया रिद्धि ये फोटो फ्रेम लेकर आई थी और उसकी ख्वाहिश थी इसमें उसकी परफेक्ट फैमिली की तस्वीर हो।

लेकिन ये परफेक्ट फैमिली निहाल उसे दे ही नहीं सका।

फ्रेम को हाथ में लिए निहाल पुरानी यादों में खो गया जब उसकी और रिद्धि की नयी-नयी शादी हुई थी। दोनों बहुत खुश थे। लेकिन निहाल की माँ ने जिस सर्वगुण सम्पन्न बहु की छवि अपने मन में बसा रखी थी, उस छवि में रिद्धि खरी नहीं उतर सकी।

बड़ो की इज्जत करना, अपनी क्षमता के अनुसार घर के कामकाज करना, इन सबमें रिद्धि ने अपनी तरफ से कमी नहीं कि, लेकिन जिस चीज में वो खरी नहीं उतर सकी वो था चुपचाप अपने और अपने परिवार के लिए बोले जाने वाले अपमाजनक शब्दों को सुनकर रह जाना।

रिद्धि उन लोगों में से थी जो किसी हाल में अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं कर सकते।

पहले उसने सोचा कुछ दिन की बात है। ये सब हर घर में होता है। थोड़े दिनों में सब ठीक हो जाएगा।

लेकिन वक्त के साथ-साथ जब ये सब बढ़ता गया तो उसने मदद के लिये निहाल की तरफ देखा। लेकिन निहाल अपने परिवार के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। वो रिद्धि से ही चुप रहने को कहता।

लेकिन एक दिन जब घर के किसी कार्यक्रम में सबके बीच शादी के आयोजन और दहेज की चीजों को लेकर रिद्धि और उसके माता-पिता को अपमानित किया गया वो सह नहीं सकी। निहाल आज भी चुपचाप एक कोने में खड़ा था।

रिद्धि ने कहा- जिस घर में बहू से ज्यादा दहेज के सामान की अहमियत है, जहां बहू इंसान नहीं सिर्फ सेवा करने वाली मुफ्त की नौकरानी है, जिसे सम्मान का हक नहीं, बीमार होने पर आराम और देखभाल का हक नहीं, उस घर में अब वो नहीं रह सकती।

कहीं ना कहीं रिद्धि को अब भी उम्मीद थी कि निहाल उसकी तकलीफ समझेगा, उसे रोकेगा, उसका साथ देगा, लेकिन निहाल बिना कुछ कहे वहां से जा चुका था।

आखिरकार रिद्धि चली गयी। एक-दूसरे के पहल करने की राह देखते-देखते सालों गुजर गए।

आज अपनी बहन की बेटी को रिद्धि के हाल में देखते हुए निहाल को अपनी गलती का अहसास हो रहा था। जिसका हाथ थामकर, उसके मान-सम्मान की रक्षा का वचन देकर वो अपने साथ अपने घर लेकर आया था उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी को वो कैसे भूल गया।

जिस माँ की हर गलती पर उसने पर्दा डाला, उनकी हाँ में हाँ मिलाया, उस माँ ने भी उससे मुँह मोड़ लिया जब उसने उनकी पसंद की लड़की से दूसरी शादी के लिए मना कर दिया।

अपने आप को काम में डुबाकर उसने इतने बरस तो बिता दिए लेकिन आज निहाल को अपने जीवन की रिक्तता का अहसास हो रहा था।

आखिरकार उसने मन ही मन एक फैसला किया और रिद्धि के मायके की ओर चल पड़ा।

वहां पहुँचकर उसके भाई-भाभी से रिद्धि का पता लेकर वो रिद्धि से मिलने चल दिया, जो पास के शहर में नौकरी करती थी।

रिद्धि के भाई-भाभी से अपने बच्चे के बारे में सुनकर निहाल उन दोनों से मिलने के लिए और व्याकुल हो उठा।

रास्ते भर रिद्धि से बोली जाने वाली जिन बातों को वो मन ही मन दोहरा रहा था, उसके सामने जाते ही सब भूल गया। बस उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे जो उसके दिल का हाल बयां कर रहे थे।

रिद्धि भी उसे यूँ सामने देखकर हैरान थी। किसी तरह लड़खड़ाई आवाज़ में जब माफी मांगते हुए निहाल ने रिद्धि के हाथों में खाली फ्रेम रखते हुए उसे पूरा करने की गुजारिश की तो रिद्धि भी रो पड़ी।

दोनों के आँसुओं ने सालों के गिले-शिकवों को धो दिया।

अपने बेटे से मिलकर निहाल की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने जब अपने बेटे से उसकी परवरिश ना कर पाने की अपनी गलती के लिए माफी मांगी तो वो अपने पिता के आँसू पोंछते हुए उनके सीने से लग गया।

कुछ ही घंटों में तीनों अपने घर पहुँच चुके थे और खाली फ्रेम को पूरा करने के लिए तस्वीर फोटोग्राफर के पास जा चुकी थी। 


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