कड़वे लोग
कड़वे लोग
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सरिता अपना रोज का काम निपटा कर अपने मुन्ने का हाथ पकड़े जल्दी-जल्दी जा रही थी।
वह रोज मास्टरनी जी के साथ कपड़ों का मास्क बनाती थी आज थोड़ा लेट हो गया मन ही मन बड़बड़ा रही थी। जो मास्क बनाती थी उसको झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को रोज बांटा जाता था।
तभी पीछे से आवाज आती है अरे वो सरिता तू तो दिखती ही नहीं कहां भागी जा रही है।
उसने मुड़कर देखा उसकी दो सहेलियां कमला और विमला खड़ी थी। हंसते हुए उसने बताया मुझे सिलाई आती है ना तो मास्टरनी जी ने
कहा थोड़े मास्क बनवा दो, वही जा रही थी। अच्छा तो तू पैसे कमा रही है इसीलिए तेरे पास टाइम नहीं होता आजकल।
नहीं बहन मैं तो बस मदद कर रही हूं यह लो मेरे झोले में 3, 4 मास्क पड़े हैं तुम लोग रख लो दोनों ने उसे देखकर बोला- नहीं-नहीं हमें नहीं चाहिए तू रख अपना और उसको घूरते हुए चली गई। तभी मुन्ना बोला माँ यह लोग आपके साथ ऐसा व्यवहार क्यों करती है ?
आप तो उनके भले के लिए उन्हें यह दे रही थी ।उसने हंसकर मुन्ने को गोद में उठा लिया बोला बेटा जब लोगों के जीवन में मिठास की कमी हो जाती है
तो लोग अक्सर कड़वे हो जाते हैं।