अनोखी होली
अनोखी होली
जया कुछ अन मनी सी बैठी थी।
इस शहर में उसका पहला त्यौहार था। बच्चों की परीक्षा चल रही थी। इसलिए घर भी नहीं जा सकती थी।बैठे-बैठे यही सब सोच रही थी, तभी बेल बजी। दरवाजे पर मुस्कुराते हुए राहुल खड़े थे।आश्चर्य से देखते हुए राहुल ने कहा, अरे तुम तैयार नहीं हुई हमें होली की शॉपिंग करने चलना है।
जया ने चाय पकड़ाते हुए कहा क्या शॉपिंग आप ही गुझिया का सामान लेते आना। कौन आने वाला है हमारे घर? हमें कौन जानता है यहां? कहते कहते उसका गला रूंध गया। राहुल ने उसके हाथों को पकड़ के कहा इस बार तुम्हें गुझिया थोड़ी ज्यादा बनानी पड़ेंगी। मुझसे भी मदद ले लेना।
होली के दिन बच्चे सुबह से बार-बार अपने दादी - बाबा, छोटे भाई-बहनों बहनों को याद कर रहे थे।
तभी राहुल ने किचन में आकर मुट्ठी भर गुलाल लेकर मुस्कुराते हुए हल्के से मेरे गालों को गुलाबी करते हुए कहा, होली हम कहीं और चल के बनाएंगे जल्दी से सब कुछ पैक कर लो। अपना गुलाल उनकी टी शर्ट में पोछते हुए जया ने आश्चर्य से पूछा कहां? राहुल मुस्कुराते हुए खुद ही सारा सामान गुझिया मिठाइयां गुलाल पैक करने लगे।
करीब 45मिनट्स के बाद शहर से दूर एक वृद्धाश्रम के गेट पर गाड़ी रुकी।
राहुल ने कहा, जया यह भी अपने परिवार के बिना यहां है और हम भी। चलो हम गुलाल लगाकर सभी से आशीर्वाद लेते हैं। राहुल बोलते जा रहे थे मैं सुनती जा रही थी, जब गला आंसुओं से भरा होता है तो शब्द निकलना बहुत कठिन होता है।