8 अगस्त
8 अगस्त
रात के सन्नाटे में बस एक ही आवाज आ रही थी घड़ी की टिक टिक आशा करवटें बदलते हुए बार बार घड़ी की तरफ देख रही थी ।उसे कुछ बेचैनी सी महसूस हो रही थी।बिस्तर छोड़ कर वह ड्राइंग रूम में आई खिड़की के पर्दे हटाकर देखाबाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। अपना मोबाइल हाथ में लिए वह बालकनी में चेयर पर जा बैठी। इतनी शांत बारिश जिसमें सिर्फचुपचाप से बादल बरस रहे थे। यह रात कुछ अजीब सी गुजर रही थी।8 अगस्त की तारीख देखते ही कुछ पुरानी स्मृतियां जीवंत हो उठी।इस बात को गुजरे करीब 30 साल हो गए लेकिन यादें कभी पुरानी नहीं होती।
आशा और दीपक एक पारिवारिक वैवाहिक समारोह में मिले थे।वो कहते हैं ना पहली नजर का प्यार कमसिन उम्र में जो होता है वही हो गया था । दोनों एक दूसरे को जी भर चाहने लगे थे । उम्र छोटी थी। पढ़ाई का दौर चल रहा था और प्यार भी परवान चढ़ रहा था।आशा ने मैट्रिक पास की तो परिवार में उसके विवाह की चर्चाएं चलने लगीउधर दीपक अपना स्नातक की पढ़ाई पूरी करने में लग गया।पत्र द्वारा वह अपने मन का हाल बताने लगे। आशा के लिए यह समय बहुत ही कठिन था लेकिन वह पत्र में कुछ भी नहीं लिखती इसी तरह लगभग 2 साल का समय बीत गया ।आशा के गांव में ही दीपक की बहन का विवाह हुआ था। वह अपने बहन के घर आया। दोनों ने छत पर मिलने का फैसला किया।
छते आपस में जुड़ी तो नहीं थी लेकिन चांदनी रात में एक दूसरे को साफ-साफ देखा जा सकता था। कुछ देर एक दूसरे को देखने के बादआशा ने एक रुमाल में थोड़े छुहारे बांधकर उसकी तरफ छत पर फेंका।दीपक ने जब रुमाल को खोला तो उसकी आंखें चमक गई। उसमें बहुत सुंदर दिल बना था जिस पर लिखा था आशा का दीपक।दीपक ने रुमाल को अपने सीने से लगा लिया बोला बहुत जल्दी मैं तुम्हें अपना बनाऊंगा ट्रेनिंग पूरी होते ही तुम्हारे परिवार से विवाह की बात करूंगा।
2 महीने बीत गए 4 महीने और बाकी है ट्रेनिंग खत्म हो जाएगी आशा यह सोचकर ही खुश हो जाती थी।शाम को 7:00 बजे के लगभग फोन की घंटी बजती है ।उधर से दीपक के भाई की आवाज आती है जो मेरे ताऊ से कहते हैं कि दीदी को खबर कर दीजिएगा दीपक का ट्रक से एक्सीडेंट हो गया है
अब वह नहीं रहा।
मां ने बोला जा आशा जल्दी से खबर कर दे पर उसे तो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। वही बुत बने खड़ी थी। मां के बहुत बोलने के बाद सीढ़ियों का सहारा लेकर किसी तरह अपने कमरे तक पहुंच पाईं।दो-तीन दिनों तक ऐसे ही पड़ी रही ना रोती ना ही कुछ बोलती।आज उसकी सखी अनीता उससे मिलने आई। उसने आशा के चेहरे को हाथ में लेकर बोला होश में आओ वह बहुत दूर जा चुका है।अपने आप को संभालो।
पहली बार आशा ने बोला," नहीं ऐसा नहीं हो सकता मुझे ऐसे छोड़कर वह नहीं जा सकता। मैं ना उसके लेटर का इंतजार कर रही हूं"अनीता ने एक गिलास पानी उसके चेहरे पर फेंका बोला "होश में आ जाओ मेरी अनुराधा भाभी से बात हुई है,अब तुम्हारा दीपक नहीं रहा।" उसको अपने गले से लगा लिया फफक कर दोनों रो पड़ीं अपनी हिचकियों को मुंह में दबाते हुएं वह घंटों सुबकती रहीं।आशा के लिए तो जैसे जीवन में कुछ बचा ही नहीं था। सिर्फ अंधकार हीदिखाई दे रहा था। अब उसका जीने का मन ही नहीं हो रहा था।
एक दिन उसकी मां ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहां बेटा कुछ भी कदम उठाने से पहले एक बार मेरा और बाबूजी का चेहरा जरूर याद करना।बड़ी मन्नतों के बाद तुझे पाया है हम लोगों ने आशा चुपचाप मां से लिपट गई।3 महीने का समय बीत गया लेकिन कुछ भी भूलता नहीं है।अनीता ने बोला अनुराधा भाभी आई हैं तुझे बुलाया है।बहुत हिम्मत जुटाकर आशा मिलने गई करीब 30 मिनट तक चुपचाप दोनों बैंठी रहीं। अनुराधा भाभी ने एक हरे रंग की डायरी मेरे हाथों में पकड़ा कर कहा उसने मुझे सब कुछ बताया था काश कि तुम मेरी.........कह कर रोने लगी।
कांपते हाथों से आशा ने डायरी को खोला उसमें उसके भेजे हुए पत्र सहेज के रखे हुए थे, उसका दिया हुआ रूमाल और बहुत सारा अनपढापत्र था, डायरी के अंत में लिखा था कि मेरा एक सपना है कि मैं एक विद्यालय बनवाऊ जिसमें मैं निशुल्क शिक्षा दे सकूं यह पढ़ते ही आशा को जैसे एक दिशा मिल गई।
मोबाइल के अलार्म से उसकी तंद्रा भंग हुई देखा तो सुबह के 5:00 बज चुके थे !
"आशा का दीपक" के नाम से आशा ने विद्यालय खोल लिया और अपना जीवन लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया।8 अगस्त बीत चुका था लेकिन आशा की स्मृति में यह अमिट हैं।