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Sanjita Pandey

Inspirational

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Sanjita Pandey

Inspirational

स्वाभिमान

स्वाभिमान

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मैंने आज लगभग भागते हुए ट्रेन पकड़ी, लगा आज तो ट्रेन छूट ही जाएगी, बीच रास्ते में ही ऑटो पंचर हो गई थी।

मैं दिल्ली आई थी संस्कृत प्रवक्ता का इंटरव्यू देने। खैर ट्रेन में बैठते ही मैंने राहत की सांस ली। खिड़की से बाहर देखा तो जोरदार बारिश शुरु हो गई थी।वैसे भी मुझे बारिश बहुत पसंद है।

 "ये बारिशों के दिन, तुम्हारी यादों में सिसकीयां

बेमिसाल हो रही है, चाय सर्द सबेरों की।।"


खैर खचाखच भरी ट्रेन में ना बारिश का आनंद ले पा रही थी ना चाय का।

ट्रेन थोड़ी दूर आगे बढ़ी तो थोड़ी शांति लगी।

 मैंने झट अपने बैग से कालिदास की

"मेघदूत" निकाली और शांति से पढ़ने लगी।

सामने बर्थ पर अंकल आंटी थे। काफी संपन्न लग रहे थे। बीच-बीच में अपनी संपन्नता का बखान भी कर रहे थे।

अचानक ट्रेन में कुछ कहासुनी हो रही थी मेरा ध्यान बार-बार भटक जा रहा था। फिर भी मैं अपनी किताब में डूबी हुई थी।

तभी मुझे कुछ घसीटने की आवाज आई, नीचे देखा तो एक आदमी था। उसके दोनों पैर कटे हुए थे। वह अपनी चप्पल के सहारे घुटनों से घसीटते हुए कुछ बेच रहा था।

उसे देखते ही सामने वाले अंकल चिल्लाने लगे, "इसको अंदर कौन आने दिया? इस भिखारी को ,यह लोग चोर होते हैं! चप्पलें और सामान चुरा लेते हैं!"

तभी वह आदमी हाथ जोड़कर बोला साहब चोर नहीं हूं। अपने बैग से कुछ किताबें निकाल कर उनकी तरफ बढ़ाकर बोला किताबें बेचता हूं साहब। आप भी कुछ अपने बच्चों के लिए ले लीजिए। अब अंकल उस से मोलभाव करने लगे, "बाहर तो यह इतने में ही मिलती है तुम तो 5 रुपए बढ़ाकर बोल रहे हो।"

उसने बड़े लाचारी से बोला "साहब! हमको टीटी को भी देना पड़ता है और हां साहब मैं अंबानी बनने के लिए नहीं, पेट भरने के लिए बेच रहा हूं।"

उसकी यह बात सुनते ही मैंने किताब के पृष्ठ को मोड़ा और उसे देखने लगी बड़े ध्यान से।

बहुत कुछ था उसके चेहरे पर, वह अपनी किताबें समेट कर बैग में रखकर आगे बढ़ गया। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने पुकारा "रुको भैया, मुझे भी कुछ किताबें दे दो।" उसने बड़े दृढ़ विश्वास से कहा "मैं एक रुपए भी कम नहीं करूंगा।"

मैंने बोला अच्छा यह बताओ यह सारी किताबें कितने की है आप मुझे सारी दे दो।

उसने हाथ जोड़कर बोला उपकार नहीं चाहिए मैडम। मैं स्वाभिमान से जीना चाहता हूं।

मेरी स्थिति पर तरस मत खाइए, आपको जो लेना है वही लीजिए।

उसकी बातें सुनकर ना जाने क्यों उसके स्वाभिमान के लिए मेरे दोनों हाथ अपने आप जुड़ गए।



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