पहली मुलाकात
पहली मुलाकात


फोन की घंटी बज रही थी और संजू की धड़कन बढ़ रही थी।
सभी के जाने के बाद करीब 10:30 बजे फिर फोन बजा वह बेतहाशा दौड़ते हुए उसने रिसीवर उठाया। उधर से प्रेम की आवाज आई, क्या हुआ इतना हाफ क्यों रही हो? सांस लेते हुए बोली क्या करूं सुबह से तुम फोन कर रहे हो, कोई ना कोई इस रूम में बैठा है। संडे को फोन क्यों किया? तुमको तो पता है सबके सामने में फोन पर बात नहीं कर सकती ।
प्रेम ने कहा क्या करूं बहुत याद आ रही है सोचा तुम्हारी आवाज ही सुन लेता हूं।बहुत हो गया संजू हम 2 साल से सिर्फ फोन पर बात कर रहे है। मैं मिलना चाहता हूं, तुम्हें देखना चाहता हूं। किसी भी तरह तुम बनारस आ जाओ संजू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करें उसने कहा मेरा भी तो मन है कोशिश करती हूं।
संजू ने अपने मन की व्यथा अपने सहेली शालू को बतायी ।उसने कहा आ जाओ बाकी मिलाने की जिम्मेदारी मेरी है।
बी-एड के फॉर्म में बनारस को सेंटर डालते हुए संजू फूले नहीं समा रहे थी।
वह दिन भी आया जब संजू बनारस पहुंची।
छोटे व मध्यवर्गीय शहर वाले संजू को अब सामाजिक लोक लाज का भय सताने लगा। तभी शालू के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई । वह बोली ,चलो काशी विश्वनाथ जी का दर्शन कर लेंगे वही गंगा घाट पर मुलाकात भी हो जाएगी । घंटों लाइन में लगने के बाद बाबा विश्वनाथ का दर्
शन पूजन किया फिर दशाश्वमेध घाट पहुंचे। शालू ने बोला मेरा काम खत्म ,मैं यहां बैठती हूं तुम लोग नाव से गंगा उस पार घूम के आओ। संजू प्रेम के हाथों का सहारा लेकर नाव पर बैठी थी और सोचने लगी यह कोई स्वप्न तो नहीं । एक दूसरे को नजर भर देखते देखते वह दोनों उस पार पहुंच गए।
प्रकृति का इतना सुंदर स्वरूप देखकर संजू बच्चों की तरह उछलने लगी
पीले -पीले सरसों के फूल खेतों में लहलहा रहे थे । पीले फूलों की खुशबू पूरे वातावरण में फैली हुई थी। अत्यंत ही मनोहर दृश्य था। वो दोनों उस वातावरण में खोए हुए थे। तभी नाविक की आवाज आई टाइम हो गया और दोनों अपने रेत से सने जूते हाथ में लिए वापस आ गए। नाव से उतर कर घाट की सीढ़ियों पर बैठे ही थे तभी शंख की ध्वनि सुनाई दी। प्रेम ने कहा, लगता है गंगा आरती होने वाली है मैं फूल और दीपक लेकर आता हूं। प्रेम जलता हुआ दीपक, कुछ फूल लेकर आया और संजू के हाथ में रख दिया। उस वक्त चारों तरफ शंखनाद हो रहा था। मंदिर की घंटियां बज रही थीं ।मंत्रोचार हो रहा था और प्रेम का हाथ संजू के हाथों में था तभी हल्की हल्की बारिश होने लगी ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं ईश्वर उन दोनों केप्रेम को अपनी स्वीकृति दे रहे हो।।
यह पहली मुलाकात आज 15 साल बाद भी संजू को याद आती है और चेहरे पर उसके मुस्कुराहट खिल जाती है।