कड़वा सच
कड़वा सच
कड़वा सच
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“पापा! इंटरव्यू की तारीख़ आ गई है।”
दिवाकर जी ने पूछा -“कब है बेटा?”
“परसो है, पापा!”
विपिन कसमसाता सा,दिवाकर जी के आस पास मंडरा रहा था।कुछ कहना चाह रहा था पर हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
विपिन की हरकतों से दिवाकर जी ने भाप लिए हो न हो कुछ दुविधा में है बच्चा।कुछ कहना चाह रहा है पर कह नहीं पा रहा है।बचपन से क़िल्लत ही तो दे पाए थे।किसी तरह चार बच्चों को पढ़ा पाए थे।
“क्या बात है?बोलो बेटा कुछ कहना चाह रहे हो?”
सूखते गले को थूक से तर करते हुए विपिन ने कहा “पापा !राकेश बता रहा था इंटरव्यू में पास होने के लिए पाँच लाख देने होते हैं।नहीं तो….”
“अच्छाऽऽऽ लेकिन लिखित परीक्षा में तुम्हारे सबसे अधिक अंक आए हैं मेरिट लिस्ट में पहले नंबर पर हो…”
विपिन की नौकरी से घर वालों को बहुत आशा थी।विपिन ने जो कहा था वो समाज का कड़वा सच साबित हुआ।
होनहार विपिन का नाम चयनित कैंडिडेट के लिस्ट में नहीं निकला।