कद की बराबरी
कद की बराबरी
उषा आज अपनी बेटी को सप्राइज देने के लिये बिना बताए ही उसके घर जा पहुंची।घर की आंतरिक साज सज्जा देख उसका मन अब हर्षित है।बेटी के कामकाजी होने के बावजूद भी उसने घर काफी अच्छी तरह संभाल रखा है।
वहां पहुचने पर उसे इस बात की अनुभूति सहज ही हो गई।वो अपने मन के इन्ही सब विचारों में कहीं गुम थी।की उसी पल अपने जमाई राजीव को घर के मर्तबान जमाते देख उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
उसकी मनोदशा को भांपते हुए,अब उसके पास बैठी बेटी उससे बोली।
"माँ जिस तरह मैं ऑफिस में राजीव के काम मे उनकी मदद करती हूं।ठीक उसी तरह राजीव भी घर के कुछ कामो में मेरा सहयोग करते हैं ताकि हम अपनी गृहस्थी ठीक तरह से चला सके और अपने व्यस्त जीवन मे से कुछ समय खुद के लिए निकाल सकें।"
बेटी की बात सुन वह कुछ पल को हर्षित हुई फिर आज अचानक उषा को भी अपने अतीत के वो दिन याद आ गए जब सारा दिन स्कूल में बच्चो को पढ़ाकर घर पहुँचती उषा को, उसकी ओर ठीक से देखे बिना ही उसका पति चाय व नाश्ते की फरमाइश कर देता था।
