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Ajeet dalal

Romance

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Ajeet dalal

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कब्बू भाग 2

कब्बू भाग 2

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आपने 1 भाग मे पढ़ा कि मन अपने खेत में बने कमरे के बरामदे में दीवार से पीठ लगाए ,आंखें बंद करके बैठा था वह पूरी तरह से कब्बू की याद में खोया हुआ था ।


शाम का सूरज ढल चुका था। अंधेरा होने को आया ,परंतु मन को इन सब बातों का मानो ध्यान ही नहीं था। वह प्रश्न कि कब्बू ने 14 साल बड़े आदमी से दोस्ती क्यों की। वह भी एक शादीशुदा आदमी से ।आखिर क्या चाहती थी वह ?

ऐसे सवाल मन को उलझन में डाल रहे थे ।इसी सोच में डूबे मन के चित पटल पर गुजरी जिंदगी एक फिल्म की भांति चली जा रही थी।एक दिन मन किसी कारणवश कब्बू के घर पहुंच गया तो पता चला कि वह एक निर्धन परिवार की लड़की थी ।मन को कब्बू की पारिवारिक स्थिति देखकर, अपने बचपन के दिन याद आने लगे थे। वह भी तो ऐसे ही परिवार से था ।पढ़ाई के दिनों में उसने भी कितना संघर्ष किया था तब जाके सॉफ्टवेयर इंजीनियर बना था ।जिसकी वजह से वह आज एक मध्यमवर्गीय परिवार में खुद को स्थापित कर पाया था ।परन्तु् उसने सोच लिया था कि इन संघर्ष के दिनों में वह कब्बू की हर संभव मदद करेगा। ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके।

कब्बू ने बीटेक के बाद B.Ed कर ली थी और वह अब कानपुर में अध्यापक भर्ती की तैयारी कर रही थी उसी बाबत मन उसे कमरा दिला कर आया था।

मन और कब्बू में अच्छी पट रही थी और अब तो मन उसे और ज्यादा चाहने लगा था। मन महीने भर बाद फिर मन कानपुर कब्बू से मिलने गया ।

कब्बू के कमरे पर रुकना संभव नहीं था तो मन ने पास के एक होटल में कमरा बुक कर दिया था। शाम को कब्बू को छोटी मोटी शॉपिंग कराई और उस होटल में खाना खा कर के सोने के लिए अपने कमरे में चले गए।

 कब्बू ने बाहों में बाहें डाल कर मन से कहा-" यार कुछ मदद करोगे मेरी"

" हां बोलो"

" देख मेरी बात को अन्यथा मत लेना "

"ठीक है बोलो"

" कुछ रुपए की मदद करोगे"

 "हां ,लेकिन एक शर्त पर"

 -मन ने कहा ।

" हां बोलो "

"वादा करो कि मेरे पैसों का मिस यूज नहीं करोगी"

" ओके आई प्रॉमिस"

 " देखो कब्बू, मेरे पास मेरी मेहनत के पैसे हैं उसे मैं तेरे फैशन पर अथवा अनावश्यक खर्च पर बर्बाद नहीं कर सकता । हां, सिर्फ तेरी पढ़ाई के वास्ते खर्च कर सकता हूं, जब तो बोलो"

जी सर ,जो हुक्म मेरे आका "

 -बोलकर मन के सीने से लता की भांति लिपट गई कब्बू।

 इस तरह देर रात तक दोनों प्यारी-प्यारी बातें करते रहे ,कब आंख लग गई पता ही नहीं चला ।

सुबह लगभग 10:00 बजे मन की आंख खुली तो कब्बू को जगाया। फिर फ्रेश होकर, नहा धोकर, खाना खाने गए। फिर वह कब्बु को उसके कमरे पर छोड़ कर के आया ।शाम के 4:00 बज चुके थे ।जब मन घर के लिए रवाना हुआ था,कानपुर से ।

धीरे-धीरे समय पंख लगाकर उड़ा चला रहा था ।कभी चैट, कभी वीडियो कॉल पर मन की बात होती रहती थी। लेकिन इसी बीच कब्बू कई बार फोन नहीं उठाती थी तो मन बेचैन हो उठता था ।फिर वह कई बार रिंग मारता तब जाकर कब्बू फोन उठाती और उधर कब्बू को बार-बार रिंग मारने से चिड़न सी होने लगी। कब्बू ने झल्लाकर कहा -

"कितनी बार बोला है कि जब एक बार मे फोन नहीं उठाती हूं तो दोबारा फोन मत किया कर ,क्योंकि मैं दोबारा तो अपनी मम्मी का भी फोन नहीं उठाती"

जाने यह उसकी जिद थी या उसका अहम था । समझ नहीं पाया मन। लेकिन मन कहांँ मानने वाला था उसको तो जैसे बिना बात किए चैन ही नहीं पड़ता था। बार-बार कॉल करके उसे परेशान करता रहता था ।एक दिन की बात है ।मन खेत में घूमने जा रहा था तो सोचा कि आज कब्बू से जी भर के बात करेगा। तो उसने खब्बू को फोन किया, पर कब्बू ने फोन नहीं उठाया तो दो-तीन बार फोन करता ही रहा ।तब जाकर उसने फोन उठाया और चिल्लाकर बोली "के आफत आ गयी"

 "कुछ नहीं " मन शांत स्वर मे बोला ।

" तो फिर बार-बार घंटी करके क्यों परेशान कर रहा है "

"याद आ रही है कब्बू ,बहुत जोर से।

" भाड़ में गई तेरी याद,मैं यहाँँ पढ़ने आई हूं भगवत कथा करनेे नहीं, कितनी बार कहा है कि मुझे बार-बार फोन मत किया करो "चिल्ला कर बोली वह ।अवाक सा रह गया मन ,उसके मुंह से कोई बोल नहीं निकल रहा था उसे काबू से ऐसा व्यवहार की उम्मीद नहीं थी ।सन्न रह गया ।मन बहुत स्वाभिमानी था। जिंदगी में इससे पहले किसी ने इस तरह की बात मन से नहीं की थी आज पहली बार मन को महसूस हुआ कि उसने गलत लड़की से पंगा ले लिया है। वह भी, वह नहीं निकली ,जिसकी उसे तलाश थी। खैर कोई बात नहीं उस दिन के बाद मन कब्बू से डरता- डरता बात करता था कि कहीं उस दिन की तरह बेइज्जत ना होना पड़े। कई बार सोचता की यार, सही ढंग से जी रहा था ।कहाँँ फालतू के चक्कर में पड़ गया । कभी सोचता कि चल आगे से वह बात करेगी तो ही, मैं बात करूंगा। मैं पहले उसे कभी फोन नहीं करूंगा अगर उसका मूूंड सही रहा तो ठीक, नहीं तो काट दिया करूंगा। वह कब्बू को भूलना चाह रहा था पर कैसे? समझ नहीं पा रहा था ।उसे  विश्वास ही नहीं था कि कब्बू ऐसा बोल सकती है। और बोलती है तो ,आखिर वह चाहती क्या है? क्यों दोस्ती की उसने । अगर ऐसा ही करना था तो.. बस इसी उधेड़बुन में दिन रात करते जा रहे थे। नींद भी मुकम्मल रूप से पूरी नहीं हो पा रही थी। तो एक दिन मन ने सोचा कि आज ड्रिंक करूंगा और पूरी रात सोऊंगा ।ऐसा सोचकर वह बोतल उठा कर के छत पर चला गया और ड्रिंक करने लगा लेकिन हर पैग के साथ कब्बू की याद बढ़ती जा रही थी और जब उससे रहा नहीं गया तो उसने कब्बू को फोन मिला दिया। उधर कब्बू् ने फोन उठाया और चिल्लाकर बोली-

" समझ नहीं आता क्या ? एक बार समझाने से"

 "क्यों ?क्या ? हो गया ।"

"क्यों? बार-बार फोन करता है"

" याद आती है ना, इसलिए"। मन ने शांत स्वर में कहा। 

"तो मैं क्या करूं? सारे दिन यही काम है क्या मुझे? फोन रख "...चिल्ला कर बोली वह।

 मन भौचक्का सा रह गया। लेकिन वह नशे में था और पूरी तरह बहक गया। मन भी उसी भाषा में बोलने लगा -" क्या समझती हो ,अपने आप को ?

 विश्व सुंदरी हो? अरेे, तेरी जैसी कितनी आई और कितनी गई। किस चीज घमंड है, तेरे को । है ही क्या तू ,क्या है तेरे पास । जो इतना रोब जमा रही हो। ऐसा क्या है तुझ में, गुलाम हूँ क्या तेरा, जो मन में आएगा वो बोलोगी ।" मन लगातार बोले जा रहा था और उधर खब्बू को जैसे सांप सूंघ गया था। आवाज नहीं निकल रही थी उसकी। आज मन का दिन था धीरे-धीरे शराब अपना रंग दिखा रही थी और मन बहकता जा रहा था

" एक महीने से तेरी गटर -पटर सुन रहा हूं । अरे! तू क्या समझती है खुद को। मुझे पता नहीं है कि, किस लालच में तूने मुझसे दोस्ती की। तूने मुझ से नहीं ,मेरे पैसों से प्यार किया है तूने क्या सोचा ?, मैं कमाता हूं जमकर लुटाऊंगा ।चूतिया समझा हैै क्या ?मैं सब जानता हूँ ।तुुुझ जैसी चटोरी लड़कियों को। खाओ, पीओ उड़ाओ माल, बिल भरेगा नंदगोपाल।

 मूर्ख, लड़की मेरी जिंदगी इतनी सस्ती नहीं है कि मर जाऊंगा तेरे बिना, अरे ! यह तो मैंने तेरे पर तरस खाकर तेरी मदद की है। ना कि तेरे शरीर के लालच में। और तू क्या समझती है कि मैं सदा तेरी मदद करता रहूंगा ? पागल है तू, मैं तेरी मदद सिर्फ तेरे टीचर के पेपर होने तक करूंगा ।जिस दिन तेरा पेपर हो जाएगा ,उस दिन दोस्ती खत्म, मदद भी खत्म, ओके। "

मन शराब के नशे में बड़बड़ाता जा रहा था ।उस पर नशा हावी हो चुका था । वह अनाप-शनाप जो मुंह में आ रहा था, बके जा रहा था और उधर कब्बू के मन पर एक एक शब्द हथौड़े की तरह वार कर रहा था । वह बेचारी रोए जा रही थी। रोए जा रही थी। पर मन को कहाँ होश था वह बेकाबू हो चुका था। पता नहीं, कब तक मन बड़-बड़ करता रहा और बेचारी कब्बू् सुनती जा रही थी ।

उस दिन के बाद कब्बू के मन में मन के लिए नफरत पैदा हो चुकी थी ।कई दिनों तक बातों का सिलसिला रुक सा गया था। मन का मन बहुत करता था। कब्बू से बात करने को ।परंतु वह अपने व्यवहार पर बड़ा शर्मिंदा हो गया था। पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कब्बू से बात करें। वह कब्बू खोना नहीं चाहता था।औरएक बात थी कि कब्बू के पेपर सर पर थे। वह नहीं चाहता था कि कब्बू सेे इस वक्त दोस्ती खत्म हो ,क्योंकि वह सोचता था कि अगर इस वक्त दोस्ती खत्म हो गई तो कब्बू का पेपर खराब हो सकता है । उसने सोच लिया था जब तक कब्बू के पेपर नही हो जाते तब तक चाहे कितना भी उसे झेलना पड़े ,वह झेलेगा और उसकी मदद जितनी भी करनी पड़ेगी वह करेगा। एक दिन हिम्मत जुटा करके उसने कब्बू को फोन मिलाया और उधर जैसे कब्बू उसके फोन के इंतजार में ही थी

" गुड मॉर्निंग कब्बू "

"कैसी हो"

" ठीक हूं"

" सॉरी "

किसलिए"

' उस दिन के लिए,

 "कुछ ज्यादा ही बोल गया था मैं '

"कोई नहीं ,आपने वही बोला था जो सच था "

"प्लीज यार, मुझे शर्मिंदा मत करो"

" नहीं ,मैं तो लालची हूं, मैंने तो तेरे पैसों के लिए दोस्ती की है बोल।"

" अब माफ भी कर दो यार, प्लीज कब्बू् कान पकड़ता हूं फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा। भूल जा ना उन बातों को और पहले जैसी हो जाओ "

"इट्स ओके ,पता है आपको मैं उस दिन बहुत रोई ,शायद जिंदगी में पहली बार इतना रोई हूं। मुझे नहीं पता था इतना रोना पड़ता है वरना, मैं कभी दोस्ती नहीं करती ।"

"सॉरी सॉरी सॉरी डिअर "

"एक बात बोलूं"

 "हां ,बोलो "

"लव यू "

"लव यू टू "

और इसी के साथ फोन डिस्कनेक्ट हो गया । परंतु आज कब्बू ना चिल्लाई, ना ज्यादा बोली ,ना हंँसी, ना रोई, ऐसा लग रहा था जैसे तूफान के गुजर जाने के बाद खामोशी छाई हो। .......





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