गैस सिलेंडर कहानी-भाग 1
गैस सिलेंडर कहानी-भाग 1
कहानी अलवर जिले के करवड गांव से प्रारंभ होती है। सड़क सुविधा से जुड़ा एक ठीक-ठाक सा गांव, उसी गांव में एक मास्टर था छाजू राम।
नई उम्र, नया खून दुनियादारी से बेखबर नए नए दोस्त बनाने का शौकीन। दोस्त घर आते तो उनकी आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ता था पर समय की रफ्तार बदली और लोग ट्वेंटी-20 क्रिकेट की तरह फटाफट हो गए थे उनकी बंदर वाली भागदौड़ महंगाई की तरह बढ़ती जा रही थी और समय औरतों के कपड़ों की तरह कम होता जा रहा था।
दोस्त तो अब भी अक्सर आते थे। बैठते थे। हंसते थे।बतियाते थे परंतु जब उनको पता चलता कि चाय तो नेताओं की तरह देर से आएगी।चूल्हे पर बीरबल की खिचड़ी पकेगी तो फौरन ही समय अभाव की रजाई ओढ़ कर दफा हो जाते और इधर मास्टर जी दोस्तों की आवभगत न कर पाने के कारण दुखी हो जाते थे।
एक दिन की बात है।छाजूराम के कुछ दोस्त उनसे मिलने घर आए। दुआ सलाम हुई और बैठ गए कुछ पैर और कुछ बेसिर पैर की बातें करने लगे तभी उनका बच्चा ट्रे में पानी लेकर आया तो मास्टर जी ने 4-5 कप बनिया वाली चाय का ऑर्डर दे दिया।
चौमासे के दिन थे। लकड़ियां कुछ नम थी अतः वे चूल्हा जलाने के लिए कम से कम फिलहाल तैयार नहीं थी कुछ पढ़े लिखो की तरह इधर-उधर की बातें करके दोस्त चलने के लिए विदा मांगने लगे तो मास्टर जी ने 2 मिनट का अनमोल समय मांग कर बैठने को कहा और अंदर रसोई में चला गया जैसे ही वह रसोई के दरवाजे में पहुंचा तो धुँआ के भभूके ने उसका दूल्हा जैसा स्वागत किया तभी उसकी नजर धुआँ रूपी बादलों के आगोश में लिपटी परी पर पड़ी जो लगातार चूल्हे में फूफू कर रही थी।
" यार कितनी देर लगेगी "-बारात जाने वाली है छाजू ने कहा। तभी आंसुओं से भरी नजरों ने उसे ऐसी अबला की भांति देखा जो जीवन-रक्षा का दान मांग रही हो।
छाजू को धक्का सा लगा। सोचने लगा कि मास्टर की पत्नी का ये हाल, लानत है।
और उधर दोस्त मित्रता निभा कर चले गए उस रात लेखक को नींद नहीं आई सारी रात करवट बदलते हुए निकली रह-रहकर पत्नी का धुआँ में लिपटा चेहरा सामने आ जाता। कभी दोस्तों का ख्याल आ जाता। छाजू सोचने लगता जाएं तो जाएं मेरी बला से, आखिर इसमें मेरी पत्नी का क्या दोष ? एक तो चूल्हा, ऊपर से नाराज लकड़ियां और फिर दोस्त ऐसे कि मानो अंबानी। कभी सोचने लगता इसमें दोस्तों का क्या दोष, मेरी दो घूंट चाय के लिए 2 घंटे नमाज थोड़े पढ़ते और फिर मेरी पत्नी का हाल भारतीय हॉकी टीम जैसा उनकी वजह से तो नहीं हुआ ना। तभी उसके दिमाग में ख्याल आया कि उसके दोस्त का एक जानकार रामपुर में गैस कनेक्शन दिलाता है वैसे भी रामपुर मेरे स्कूल के रास्ते में पड़ता है अतः वह गैस कनेक्शन करा देगा तो वहीं से गैस सिलेंडर ले लेगा और परेशानी भी नहीं होगी इस तरह वह दिमाग में चलने वाले आईपीएल मैच को खत्म करके सो गया।
अगले दिन वह अपने दोस्त को लेकर रामपुर पहुंच गया उसकी दुकान पर जाकर मेरे दोस्त रामफूल ने कहा -यार मेरे मित्र की एक पासबुक बनवानी है कितना खर्चा आ जाएगा।
बावन सो रुपए लगेंगे -उसने कहा। तो छाजू बीच में ही बात काट कर बोला -यार मैंने सुना है। 4200 में गंगा स्नान हो जाता है। कहीं और ही गंगा स्नान कर भाई। मेरे पास इतना समय भी नहीं है उसने कहा। नाराज क्यों होता है भैया- बता तो सही 5200 किस तरह होंगे। बस इसके बाद तो वह छाजू के बाल एक एक्सपर्ट नाई की तरह काटने लगा। भाई साहब - 2200 का गैस सिलेंडर, 700 की गैस और 1500 की पासबुक, 700 का चूल्हा। बचे सो रुपए तो मैं 30 किलोमीटर जूनागढ़ मंडी जाऊंगा तो उसका खर्चा।
बात समझते हुए छाजू ने कहा- हूं... पर भाई साहब गैस सिलेंडर तो 380 में भरता है तू 400 ले ले।
मैंने चने की रहड़ी थोड़े ही लगा रखी है। लेना है तो ले नहीं तो... वह भड़कते हुए बोला।
बात बिगड़ती देख छाजू पेप्सी की तरह ठंडा होकर बोला ठीक है। मिल तो आज ही जाएगा ना। फिर वह भी नरम पड़ते हुए बोला ले जाना पर कल मुझे एक फोटो व राशन कार्ड दे जाना ओके।
ओके राजू ने कहा और नोट गिनने लगा रुपए देकर दुकान से बाहर आया और अपनी धर्मपत्नी को फोन लगाया और सारी बातें फोन पर बता दी। आज वह बहुत खुश था उसने सिलेंडर बाइक पर बांधा और दोस्त को वहीं छोड़ एक फिल्मी गाना गुनगुनाते हुए घर की ओर रवाना हुआ।और उधर श्रीमती जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। गैस एजेंसियों में फैले भ्रष्टाचार से अनजान आरती का थाल सजाने में लगी हुई थी। पहली बार घर में जो सिलेंडर आ रहा था अब उसके हाथ नहीं जलेंगे, धुआँ में नहीं मरणा पड़ेगा मिनटों में खाना बन जाएगा। चूल्हे की फू फू से छुटकारा मिल जाएगा।
तभी उसका 8 वर्षीय बेटा कर बोला- मम्मी खाना बना दो मुझे भूख लगी है।
नहीं बेटा अभी नहीं, तेरे पापा के आने पर ही बनाऊंगी।
मम्मी बहुत जोर से भूख लगी है।
अच्छा बता तेरे पापा क्या ला रहे हैं ?
मुझे नहीं मालूम।
अरे पागल वह गैस सिलेंडर ला रहे हैं, गैस सिलेंडर
मुझे नहीं खाना गैस सिलेंडर, मैं तो रोटी ही खाऊँगा
अरे ! बुद्धू वह खाने का नहीं है, खाना बनाने का है। आगोश में भरते हुए उसकी मम्मी बोली। बच्चा ना समझी का भाव ले मम्मी के यहां आंचल में छुप गया।
ठगा ठगा सा छाजू राम मास्टर खुशी से झूमता था घर पहुंचा तो सिलेंडर देखकर श्रीमती जी की आंखें ऐसे चमकने लगी मानव भूखी बिल्ली को दूध का कटोरा मिल गया हो छाजू सिलेंडर लेकर रसोई में जाने लगा तो श्रीमती जी रोकते हुए बोली रुको जरा आरती तो कर लूं पहली बार आया है ना और आरती करने के बाद ही अंदर जाने दिया, फिर शुरू हुआ फटाफट खाना बनाने का प्रोग्राम सब ने जी भर के खाया चेहरे पर ऐसी संतुष्टि का भाव था मानो पहली बार भरपेट खाया हो। उस रात छाजू चैन की नींद सोया।