गैस सिलेंडर भाग -2
गैस सिलेंडर भाग -2
अरे ! ये क्या, सप्ताह भर बाद ही सिलेंडर की हवा निकल गई। पत्नी ने पुनः सिलेंडर भरवाने की अर्जी लगाई तो छाजू की भी हवा निकल गई।₹100 प्रतिदिन खाना बनेगा तो सारी तनख्वाह तो सिलेंडर खा जाएगा। परंतु मरता क्या नहीं करता। उठा सिलेंडर, चला रामपुर। दुकान पर पहुंचकर बोला," अरे भाई यह तो 1 सप्ताह भी नहीं पकड़ा, फुल नहीं भरा था क्या ?" "यार ! तुम पहले ग्राहक तो हो नहीं, मेरा तो रोज का काम है। अगर ऐसे काम करूंगा तो चल गई दुकानदारी।"
"अच्छा ठीक है।यह बता पासबुक बनी।" "पासबुक तो बन गई परंतु अभी जूनागढ़ मंडी में ही पड़ी है। "
"तो फिर यार मेरे को सिलेंडर लेना है।"
" ले जाओ ₹700 लगेंगे।"
"अरे यार, अब तो पासबुक भी बन गई फिर भी ब्लैक में भरोगे ?"
" पासबुक तो आई नहीं ना।अब तो इतने में ही लेना पड़ेगा।"
छाजू राम समझ गया कि कलयुग में कालाबाजारी के बिना कुछ नहीं होगा। वह ₹700 देकर सिलेंडर लेकर आया। अब तो छाजू की नींद ही उड़ गई थी।
रोज सुबह जब पत्नी चाय के लिए आवाज देती तो मन संका से भर जाता कि सिलेंडर भरवाने के लिए करेगी। एक-एक करके 3 महीने गुजर गए फिर अगला भी गुजर गया छाजू के समझ में आ गया था कि पिछला सिलेंडर क्यों धोखा दे गया था ? आखिर 4 महीने साथ निभाने के बाद सलेंण्डर ने जवाब दे दिया तो छाजू सिलेन्डर लेकर रामपुर गया। परंतु दुकान खाली दुकानदार गायब देखकर दंग रह गया। इधर उधर से पता लगाया तो पता चला कि वह दुकान छोड़कर चला गया है। बड़ी भारी परेशानी में पड़ गया था छाजू राम।बार-बार ढीली होती पतलून को पकड़ पकड़ कर ऊपर करता रहा।आखिर अपने गांव वाले दोस्त रामफूल को फोन लगाया तो पता चला कि पास बुक जूनागढ़ मंडी में एक दुकानदार के पास पड़ी है। वह जाएगा तो ले आएगा। फिर कई दिनों बाद उसके मित्र रामफूल का फोन आया कि उसके पास बुक के ₹300 बकाया थे। अब ₹300 दे दो पासबुक मिल सकती है। सांप के मुंह में छछूंदर आ गया। क्या करता छाजू। हांं भर ली और उसके दोस्त ने पास लाकर उसको दे दी।फिर एक दिन छाजू नहा धोकर जूनागढ़ मंडी पहुंचा तो देखा कि गैस एजेंसी के सामने समोसा-कचोरी खाने वालों जैसी भीड़ खड़ी थी। छाजू भी वहां खड़ा हो गया तभी एक ने आवाज लगाई," ओ हीरो लाइन में लग जाओ। हम कोई पागल नहीं है, जो 3 घंटे से खड़े हैं। बेचारा छाजू लाइन में सबसे पीछे खड़ा हो गया। पसीने से बुरा हाल, तीन-चार घंटे बाद नंबर आया। रसीद कटवाई तो पता चला कि सिलेंडर तो 2 किलोमीटर दूर तिराहे पर मिलेंगे।रसीद लेकर हांफता-हांफता तिराहे पर पहुंचा। तो सिलेंडर से भरी गाड़ी देख थोड़ी राहत हुई। सीधे गाड़ी वाले से जाकर बोला, "भाई साहब, सिलेंडर लेना है।
" चल चल लाइन में " सिलेंडर का सरदार कड़क कर बोला और ये क्या ? तु एचपी का सिलेंडर भरवाने आया है।
अरें, यह इंडियन की गाड़ी है।"
छाजू राम घनचक्कर हो गया। उसे लगा कि आज तो इंडिया हारेगी। परंतु फिर भी हिम्मत करके बोला, "भाई साहब पासबुुक तो इन्डियन की है। परंतु मुझे यह सिलेंडर किसी ने दे दिया है। कोई उपाय हो तो बताओ ना, कहते हैं हर समस्या का कोई ना कोई समाधान होता है।" छाजू राम की वाणी सुनकर आखिर उसका दिल पसीज गया और बोला" कि बाजार में अमुक दुकान से बदलवालो। बेचारा छाजू, गिरता पड़ता उस दुकान तक पहुंचा और निवेदन किया तो दुकानदार बोला कौन सा गांव है।" भाई साहब करवड़"
"अरे यार, करवड़ की तो, पासबुक तो हमारे पास रखी थी। अभी कुछ दिन पहले करवड़ का लेकर गया है।"
"भाई क्या आप बता सकते हो, वह किसकी थी। "
"यार, कोई छाजू राम नाम था।"
"आपने कितने में दी? "
"अरे वह तो पहले ही बनी रखी थी उसके रुपए तो पहले ही आ चुके थे। छाजूराम को दिलवाले फिल्म की याद आने लगी, हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था।
छाजू राम को बार बर ठगे जाने का अफसोस हो रहा था। फिर उसने दुकानदार से पूरी डिटेल पूूूँँछी।
" भाई साहब यह पासबुक कितने में बनती है?"
" भाई साहब पासबुक तो ₹900 में बनती है। परंतु पूरे सेट के ₹4200 लगते हैं।लेकिन तुम क्यों पूछ रहे हो।"
"बस यूं ही मुझे एक पासबुक बनानी है।फिलहाल तो आप यह सिलेंडर बदल दो।बड़ी मेहरबानी होगी।"
" ठीक है सो रुपए दो और वह उठा ले जाओ।"
छाजू ₹100 देखकर इंडियन का सिलेंडर लेकर ऐसे दौड़ा। मानो, मैराथन दौड़ जीतनी है। वहां जाकर देखा तो सैकड़ों आदमी लाइन में लगे थे। और सिलेंडर 5-7 रखे थे।छाजू भी लाइन में खड़ा हो गया तो अगले व्यक्ति ने कहा, " भाई साहब क्यों परेशान होते हो। कल फिर आना है।"
"क्यों ? राजू ने उत्सुकतावस पूछा।
"सिलेंडर के चार पांच ही बचे हैं। किस-किस को मिलेंगे।"
"यार, अभी तो गाड़ी भरी खड़ी थी।"
"गाड़ी गई ब्लैक में, अब तो कल ही बात" उसकी बात सुनकर छाजू राम के पैरों तले जमीन खिसक गई।.30 किलोमीटर आज आया। स्कूल से छुट्टी ली और 30 किलोमीटर कल आना पड़ेगा। एक और छुट्टी होगी, सो अलग। छाजू ऐसा सोच ही रहा था कि उसके सामने एक घटना ने उम्मीद बनाई। वह उस घटना को ध्यान से देखने लगा। अभी कुछ मिनट पहले दो लड़कियां सिलेंडर लेकर गई थी और फिर से सिलेंडर ले रही थी।
मास्टरमाइंड राजू को समझते देर नहीं लगी कि माजरा क्या है। उसने इधर उधर देखा तो लड़कियों का ठेकेदार नजर आया।
छाजू भाग कर उसके पास आया और निवेदन करने लगा।
" भाई साहब, मेरा भी एक सिलेंडर भरवा दो भरवा दो।"
उस लड़के ने कहा," ₹100 लगेंगे।"
"₹100 तो ज्यादा है।"
" ज्यादा है, तो कल आ जाना। "
" ₹50 दे दूंगा।"
50 वाले तो कई आलिये भाई, भरवाना है तो जल्दी कर, दो ही सिलेंडर बचे हैं।"
"ठीक है, यह लो पासबुक और पैसे "
छाजू पैसे व पासबुक उस लड़के को देता है। लड़का उन लड़कियों को आवाज देता है और लड़कियां शेष बचा, अकेला सिलेंडर राजू को लाकर देती हैं।
राजू राहत की सांस लेता है तभी एक व्यक्ति छाजू को आकर कहता है,
"यार तुझे तो आज ही मिल गया। "
" हां यार, खुदा की मेहरबानी हो गई वैसे कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है। ठीक है, दोस्त चलते हैं। भूख लग रही है।"
छाजू ने कहा और बाइक लेकर विश्व विजेता की तरह बाइक घर चल पड़ा।
पत्नी ने भी विश्व विजेता की तरह ही स्वागत किया।
रात को छाजू सोच रहा था। आज तो सिलेंडर जैसे तैसे मिल गया लेकिन अगला कैसे मिलेगा राम जाने........
